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छत्तीसगढ़ के तीनों टाइगर रिजर्व अब माओवादी क्षेत्र में

आलोक प्रकाश पुतुल

छत्तीसगढ़ के दो टाइगर रिजर्व पहले से माओवादी क्षेत्र में थे अब तीसरे यानी अचानकमार टाइगर रिजर्व को भी माओवाद प्रभावित जिलों में शामिल कर लिया गया है.

राज्य में बाघ संरक्षण की तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है. 2014 की गणना में राज्य में 46 बाघ थे, जबकि 2018 की गणना में लगभग 19 बाघों के होने का अनुमान है. और अब तीनों टाइगर रिजर्व के माओवाद प्रभावित क्षेत्र में आ जाने से संरक्षण की राह अभी और मुश्किल होगी.

जमीनी स्तर पर काम कर रहे कर्मचारियों की बात मानें तो माओवाद से प्रभावित क्षेत्र में पड़ने वाली टाइगर रिजर्व में संरक्षण काफी मुश्किल है. कैमरा ट्रैप से लेकर बाघों के खाने-पीने के लिए जरूरी जीव-जंतुओं पर नजर रखना सब मुश्किल होता है.

छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में भी अब माओवादी गतिविधियों का ख़तरा मंडराने लगा है. केंद्र सरकार ने हाल ही में राज्य के मुंगेली को माओवाद प्रभावित ज़िलों में शामिल किया है, जहां अचानकमार टाइगर रिजर्व स्थित है. मुंगेली ज़िले को केंद्र सरकार ने सुरक्षा संबंधी व्यय योजना के अलावा देश के उन आठ ज़िलों में भी शामिल किया है, जिन्हें ‘डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कंसर्न’ के तौर पर वर्गीकृत किया है.

छत्तीसगढ़ में तीन टाइगर रिज़र्व में से दो, उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व और इंद्रावती टाइगर रिजर्व के अधिकांश इलाकों में बरसों से माओवादियों का दबदबा रहा है. अब अचानकमार टाइगर रिजर्व में भी माओवादियों की दस्तक ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है.

यह ख़बर ऐसे समय में सामने आई है, जब छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या आधी से भी कम रह गई है. 2014 की गणना में राज्य में 46 बाघ थे, जबकि 2018 की गणना में लगभग 19 बाघों के होने का अनुमान है. इस गणना के बाद से अब तक टाइगर रिजर्व में तीन बाघों की मौत भी हो चुकी है.

हालत यह है कि माओवादियों का हवाला दे कर राज्य के बड़े हिस्से में वन विभाग की गतिविधियां पहले से ही ठप्प पड़ी हुई हैं. माओवादी दहशत के कारण वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी जंगल के भीतर कदम रखने में डरते हैं.

अब नये इलाके में माओवादियों की उपस्थिति को लेकर, भारत में प्रोजेक्ट टाइगर के अतिरिक्त महानिदेशक और नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के सदस्य सचिव डॉक्टर एसपी यादव ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “वामपंथी उग्रवाद के कारण बाघ संरक्षण के प्रयास, नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे. इस समस्या की वजह से टाइगर रिजर्व क्षेत्र में वन विभाग के फ्रंटलाइन वर्कर्स की पहुंच और उपस्थिति बेहद कमज़ोर हो जाती है. परिणामस्वरुप बाघों और उसके भोज्य जीव की निगरानी कमज़ोर पड़ जाती है, शिकार विरोधी गतिविधियां भी कमजोर होती हैं और संरक्षण प्रयासों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.”

माओवादियों का इलाका

छत्तीसगढ़ के इलाके में सबसे पहले 1983 में इंद्रावती टाइगर रिज़र्व को अधिसूचित किया गया था. 2799.07 वर्ग किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिज़र्व का 1258.37 वर्ग किलोमीटर कोर क्षेत्र है. इंद्रावती टाइगर रिजर्व एक ओर छत्तीसगढ़ के ही उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व और अचानकमार टाइगर रिजर्व होते हुए मध्य प्रदेश के कान्हा और महाराष्ट्र के पेंच तक जुड़ता है. वहीं दूसरी ओर यह टाइगर रिजर्व आंध्र प्रदेश के कवल से होते हुए महाराष्ट्र के ताडोबा और सिरोंचा तक जुड़ती है. इस टाइगर रिजर्व का एक हिस्सा उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व से होते हुए ओडिशा के सोनेबेड़ा अभयारण्य तक जुड़ता है.

जिस बीजापुर ज़िले में यह टाइगर रिजर्व है, वहां पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से माओवादियों का दबदबा है और यहां माओवादी हिंसा की घटनाएं लगातार होती रहती हैं. इस साल 3 अप्रैल को इसी बीजापुर में माओवादियों के हमले में सुरक्षाबलों के 22 जवान मारे गये थे. पिछले ही साल सितंबर में भैरमगढ़ रेंज में पदस्थ इंद्रावती टाइगर रिजर्व के रेंज अफसर रतिराम पटेल की भी संदिग्ध माओवादियों ने हत्या कर दी थी.

माओवादी हिंसा के कारण ही इंद्रावती टाइगर रिजर्व में पिछले कई सालों से पर्यटन पूरी तरह से बंद है. अधिकारियों का कहना है कि बाघों की गणना के लिए बफर एरिया में भी कैमरा ट्रैप लगाना संभव नहीं हो पाता. हालत ये है कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व हो या उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व, माओवादियों के विरोध के कारण आज तक इन दोनों ही टाइगर रिज़र्व के 107 में से एक गांव को भी हटाने में वन विभाग को सफलता नहीं मिली है.

केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट कहती है कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व पिछले दो दशकों से अधिक समय से वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित है और इसका अधिसूचित कोर इलाका, फील्ड स्टाफ के लिए सीमा से बाहर है. परिणामस्वरूप, विकास कार्यों और निगरानी गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

हालांकि इंद्रावती टाइगर रिजर्व से लगभग 170 किलोमीटर दूर अपने कार्यालय में बैठे इस टाइगर रिजर्व के फिल्ड डायरेक्टर अभय श्रीवास्तव भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं कि फिल्ड स्टॉफ ज़रुरत के हिसाब से अपना काम बखूबी निभा रहा है. वे बताते हैं कि टाइगर रिजर्व के इलाके में 76 पैदल गार्ड तैनात हैं और वे पेट्रोलिंग भी करते हैं.

दादा लोगों की मर्जी

मोंगाबे-हिंदी से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमारा मैदानी अमला बहुत चुनौतीपूर्ण तरीक़े से अपना काम कर रहा है. हमारे तीन रेंज बफर में हैं और पांच कोर क्षेत्र में हैं. कोर क्षेत्र में तो हम नहीं जा पाते लेकिन बफर के इलाके में मैदानी अमला तमाम मुश्किलों के बाद भी बहुत ही सुंदर तरीके से काम करता है. जितना संभव हो पाता है, हम अपना काम करते हैं.”

इंद्रावती टाइगर रिजर्व में काम करने वाले एक पैदल गार्ड ने मोंगाबे-हिंदी से बातचीत में कहा कि दादा लोग यानी माओवादियों की मर्जी के बिना किसी भी इलाके में घुमना संभव नहीं है. जंगल के भीतर क्या हो रहा है, यह किसी को नहीं पता. लेकिन वन और वन्यजीव की ख़राब स्थिति का सारा ठीकरा, माओवादी, सरकार की नीतियों पर थोपते रहे हैं.

टाइगर रिजर्व के इलाके के गांवों को हटाये जाने के एनटीसीए के आदेश के ख़िलाफ़ जारी, माओवादियों की दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प की एक विज्ञप्ति कहती है, “यह जगजाहिर है कि सदियों से जंगलों में वन्यजीव एवं आदिवासी साथ-साथ रहते आए हैं और वनों, वन्यजीवों व आदिवासियों के बीच संतुलन, सामंजस्य, संरक्षण व संवर्धन बेजोड़ जारी रहा. आदिवासियों की वजह से वन्यजीव या पर्यावरण न कभी नष्ट हुए हैं और न होंगे. पहले अंग्रेजी साम्राज्यवादियों, बाद में भारत के शोषक-शासक वर्गों द्वारा बनाए गए वन क़ानूनों, उनके द्वारा अपनायी गई जन विरोधी, आदिवासी विरोधी नीतियों, जल-जंगल-ज़मीन व संसाधनों के अंधाधुंध दोहन व लूट, जंगल कटाई, सरकारी संरक्षण व भागीदारी से वन माफियाओं, खनिज माफियाओं, वन्यजीव शिकार माफियाओं द्वारा जारी लूट की वजह से वनों, वन्यजीवों व आदिवासियों के बीच तालमेल बिगड़ गया और आदिवासियों की जीवनशैली भी बुरी तरह प्रभावित हो गई. वन्यजीवों का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ गया.”

इंद्रावती टाइगर रिजर्व से लगे हुए राज्य के उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व की कहानी भी इससे अलग नहीं है. 2009 में 1842.54 वर्ग किलोमीटर में अधिसूचित इस टाइगर रिजर्व का 851.09 वर्ग किलोमीटर कोर क्षेत्र है.

हालांकि उन्होंने अब तक वन अमले के किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया है.

उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व के उप संचालक आयुष जैन कहते हैं, “विकास से जुड़ा कोई भी काम, जो उनके लक्ष्य को प्रभावित करता है, उसे माओवादी रोक देते हैं. यहां कैमरा ट्रैप लगाना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है. कुल्हाड़ीघाट के इलाके में बाघ का मूवमेंट है लेकिन साल में 5-10 दिन भी कैमरा ट्रैप लगा पायें तो ये हमारे लिए बड़ी उपलब्धि होती है. यही कारण है कि बाघों की गणना भी ठीक से नहीं हो पाती.”

नए इलाके में नई चुनौतियां

माओवादी गतिविधियों से अब तक बचे रहे अचानकमार टाइगर रिजर्व के इलाके में समय-समय पर माओवादियों के आने-जाने की ख़बरें पिछले 20 सालों से आती रही हैं लेकिन इन ख़बरों को हमेशा ख़ारिज किया गया. अब, जबकि बस्तर के इलाके में माओवादियों पर सुरक्षाबलों का दबाव और बढ़ा है तो माओवादियों ने अपनी एमएमसी कमेटी यानी महाराष्ट्र मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ कमेटी का विस्तार शुरु किया और मुंगेली ज़िले के अचानकमार के जंगलों में भी अपनी गतिविधियां शुरु की हैं, पुलिस और वन विभाग के अधिकारी बताते हैं. कुल 914.017 वर्ग किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिजर्व का 626.195 वर्ग किलोमीटर कोर क्षेत्र है और यह टाइगर रिजर्व भोरमदेव से होते हुए कान्हा टाइगर रिजर्व तक जुड़ता है.

बिलासपुर रेंज के आईजी पुलिस रतनलाल डांगी कहते हैं, “ऐसी संवेदनशील जगह जहां पर भविष्य में ऐसी गतिविधियों के बढ़ने की संभावना है, वहां पर सुरक्षाबलों की संख्या बढ़ाया जाना ज़रुरी है. हम किसी भी स्थिति में मुंगेली एरिया को नक्सलियों के कब्ज़े में नहीं आने देना चाहते.”

हालांकि अचानकमार टाइगर रिजर्व के फिल्ड डायरेक्टर एस जगदीशन का कहना है कि अभी तक ऐसी कोई गतिविधियां नज़र नहीं आई हैं, जिसके आधार पर कहा जाए कि अचानकमार में माओवादी सक्रिय हैं.

राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक नरसिंहा राव इस बात से ही अनभिज्ञ हैं कि राज्य सरकार ने मुंगेली को माओवाद प्रभावित ज़िलों में शामिल किया है, जहां अचानकमार टाइगर रिज़र्व है. वे इंद्रावती टाइगर रिजर्व और उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में भी माओवादी हस्तक्षेप के कारण किसी मुश्किल से इंकार करते हैं. वे पर्यटन नहीं होने के सवाल पर कहते हैं, “इसकी मूल में माओवादियों से जुड़ी समस्या नहीं है. वहां विकास होना चाहिए, रुकने की व्यवस्था होनी चाहिए. इन्हीं कारणों से पर्यटन में थोड़ी मुश्किल है.”

लेकिन जाने-माने वन्यजीव विशेषज्ञ डॉक्टर राजेश गोपाल ने मोंगाबे-हिंदी से बातचीत में कहा कि मध्यप्रदेश का कान्हा हो या झारखंड का पलामू टाइगर रिजर्व या छत्तीसगढ़ का अचानकमार टाइगर रिजर्व, माओवादी गतिविधियों का वन विभाग के कर्मचारियों पर नकारात्मक असर ही पड़ता है. इससे बाघ समेत दूसरे वन्यजीवों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. राजेश गोपाल का कहना है कि छत्तीसगढ़ बाघों के लिहाज से आदर्श इलाका है लेकिन बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए समन्वित प्रयास किये जाने की ज़रुरत है.

भारत में प्रोजेक्ट टाइगर के समन्वयक और एनटीसीए के सदस्य सचिव रह चुके डॉक्टर राजेश गोपाल कई दशकों तक मध्य भारत के कई टाइगर रिजर्व की कमान संभाल चुके हैं. इन दिनों ग्लोबल टाइगर फोरम के महासचिव डॉक्टर राजेश गोपाल की राय है कि माओवादी हस्तक्षेप को महज पुलिस के भरोसे छोड़ देने से बात नहीं बनेगी. वे कहते हैं, “इस चुनौती का सामना करना होगा. पुलिसिंग के साथ-साथ उस इलाके में माओवादियों को जगह क्यों मिली, इस पर विचार करना होगा. रोजगार और विकास समेत कई ऐसी चीजें हैं, जिस पर ध्यान देने की ज़रुरत होगी. अगर हम ऐसा नहीं कर पाये तो वन विभाग के लोगों को मुश्किल हो सकती है.”

मोंगाबे हिंदी से साभार.

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