टाटा-एस्सार पर सरकार लेगी फैसला
जगदलपुर | संवाददाता: बस्तर में टाटा और एस्सार के स्टील प्लांट की सुगबुगाहट फिर से शुरु हुई है. इसके लिये 20 अगस्त को रायपुर में राज्य सरकार ने बैठक बुलाई है. जाहिर है, बैठक में टाटा और एस्सार के साथ-साथ उन कंपनियों को लेकर भी चर्चा होगी, जिन्हें आयरन ओर के खदान आवंटित किये जा चुके हैं लेकिन माओवादियों के विरोध के कारण उनका काम अटका पड़ा है.
गौरतलब है कि 4 जून, 2005 को टाटा स्टील कंपनी ने बस्तर के लोहण्डीगुड़ा में इस्पात संयंत्र लगाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के साथ एक एमओयू किया था. 10 हज़ार करोड़ रुपये की लागत से 5 मिलियन टन की वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले इस इस्पात संयंत्र के लिए 10 गांवों की ज़मीन का अधिग्रहण भी पूरी तरह नहीं हो पाया है.
सरकार और टाटा स्टील ने करोड़ों रुपये खर्च करके सारे उपाये कर लिए लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ पाया.
इसी तरह 5 जुलाई 2005 को छत्तीसगढ़ सरकार ने एस्सार ग्रुप के साथ दंतेवाड़ा के धुरली और भांसी में 3.2 मिलीयन टन का इस्पात संयंत्र लगाने के लिए एमओयू किया था. ज़मीन अधिग्रहण का काम ही नहीं हो पाया.
जगदलपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर नगरनार में भी राष्ट्रीय खनिज विकास निगम ने 90 के दशक में इस्पात संयंत्र लगाने की योजना पर काम शुरु किया था. लेकिन अब कहीं जा कर इस्पात संयंत्र बनाने के काम ने ज़ोर पकड़ा है. हालांकि इस निर्माणाधीन संयंत्र को लेकर विरोध जारी है.
सरकार ने निको जायसवाल को भी आयरन ओर के खदान आवंटित किये थे. लेकिन उनका काम भी अब तक शुरु नहीं हो पाया है. माना जा रहा है कि सरकार ताज़ा हालात में किसी भी तरीके से टाटा और एस्सार का काम-धाम शुरु करवाना चाहती है. हालांकि एक बड़ा वर्ग मानता है कि टाटा और एस्सार की सारी कवायद स्टील प्लांट से कहीं अधिक आयरन ओर के लिये है. इसके अलावा बस्तर में माओवादी भी इन दोनों कंपनियों के स्टील प्लांट का विरोध कर रहे हैं.