चाईबासा का अनूठा जूता बैंक
रांची | समाचार डेस्क: झारखंड के चाईबासा में एक अनूठा जूता बैंक है. जहां पर लेन-देन में न तो पैसे लगते हैं और न ही मिलते हैं. यहां पर लोग अपने पुराने जूते छोड़ जाते हैं तथा ऐसे लोग जो जूते खरीदने की सामर्थ्य नहीं रखते हैं मुफ्त में जूते ले जाते हैं. इस जूता बैंक की शुरुआत अक्टूबर 2016 से हुई है. यहां से अब कर करीब 400 लोगों ने जूते ले लिये हैं. इनमें से कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार जूता पहना.
चाईबासा के इस जूता बैंक की शुरुआत पश्चिमी सिंहभूम के डीसी शांतनु अग्रहरि ने करवाई थी. यहां से औसतन 5-6 लोग रोज जूते ले जाते हैं तथा करीब इतने ही लोग अपने पुराने जूते दे जाते हैं. यह जूता बैंक जनता के सहयोग से चल रहा है केवल देखरेख करने वाले कर्मचारियों को सरकार वेतन देती है.
शांतनु अग्रहरि ने बीबीसी से कहा, ”दीवाली की साफ़-सफ़ाई में पुराने जूते फेंक या जला दिये जाते हैं. जबकि पुराने जूते किसी के लिए नये सरीखे साबित हो सकते हैं. ऐसे में मुझे लगा कि क्यों न एक ऐसी जगह बने, जहां लोग अपने पुराने जूते दान कर सकें. ताकि उन्हें गरीबों मे बांटा जा सके. इसी सोच के तहत मैंने यहां चरण पादुका बैंक की शुरुआत कराई.”
जूता बैंक में जूता लेने आये दैनिक मजदूर मांगिया देवगम ने बीबीसी से कहा, “हम तो पहली बार जूता पहने. चप्पल पर मोजा पहनते थे तो पानी में भीग जाता था. सारी ठंड पैरों के रास्ते ही शरीर में घुसती थी. जूता मिल जाने से अब ठंड नहीं लगेगी. पहले कभी हिम्मत नहीं हुई कि जूता खरीदें. किसी ने दिया भी नहीं. पुराने चप्पल पर ही जिंदगी काट दी. अब जूता पहनने का सपना पूरा हो गया है.”
(बीबीसी हिन्दी से इनपुट)