एनएमडीसी का मुख्यालय बस्तर लाने की मांग ने पकड़ा ज़ोर
जगदलपुर | संवाददाता: भारत सरकार के राष्ट्रीय खनिज विकास निगम यानी एनएमडीसी का मुख्यालय बस्तर लाने की मांग एक बार फिर ज़ोर पकड़ने लगी है. बस्तरिया राज संगठन ने शनिवार को इस मांग को लेकर बड़ा प्रदर्शन किया.
शनिवार के प्रदर्शन का असर यह हुआ कि एनएमडीसी की खदानों में मज़दूर नहीं पहुंच पाए. खनन का बड़ा काम रुका रहा.
गौरतलब है कि 15 नवंबर, 1958 को स्थापित राष्ट्रीय खनिज विकास निगम भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक और निर्यातक है. यह एक सार्वजनिक उपक्रम है, जो भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है. इसके अधिकांश खदान छत्तीसगढ़ के बस्तर और कुछ खदान कर्नाटक में स्थित हैं. इनमें बैलाडीला लौह अयस्क खदान- किरंदुल कॉम्प्लेक्स, बैलाडीला लौह अयस्क खदान- बचेली कॉम्प्लेक्स, डोनिमलाई लौह अयस्क खदान और कुमारस्वामी लौह अयस्क खदान शामिल हैं.
एनएमडीसी ने बस्तर ज़िला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर, 20000 करोड़ रुपये की लागत से हाईस्मेल्ट प्रौद्योगिकी पर आधारित 3 एमटीपीए क्षमता का ग्रीनफील्ड, नगरनार स्टील प्लांट स्थापित किया है.
लेकिन यह दिलचस्प है कि इस सार्वजनिक उपक्रम का पंजीकृत कार्यालय हैदराबाद में है. बस्तर के आदिवासी समय-समय इस बात की मांग करते रहे हैं कि एनएमडीसी का मुख्यालय बस्तर में लाया जाए. जिससे बस्तर का विकास हो.
1997 में अविभाजित मध्यप्रदेश में बस्तर के विधायक मनीष कुंजाम ने मुख्यालय बस्तर में स्थापित करने की मांग को लेकिर विधानसभा में अशासकीय संकल्प लाया था. लेकिन यह मांग आज तक हाशिये पर है.
अब हाल ही में मनीष कुंजाम के नेतृत्व में गठित बस्तरिया राज संगठन ने इस मांग को लेकर मोर्चा खोल दिया है.
शनिवार को तो तड़के पांच बजे से बस्तरिया राज संगठन से जुड़े आदिवासियों ने बचेली पोस्ट पर धरना दे दिया. इस धरने में बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, नारायणपुर, बस्तर इलाके के आदिवासी शामिल थे.
इन आदिवासियों ने बचेली पोस्ट के रास्ते से खदान में जाने वाले सैकड़ों श्रमिकों और कर्मचारियों को खदान से बाहर ही रोक दिया.
दूसरी पाली में दोपहर में जब मज़दूर और कर्मचारी जाने लगे तो उन्हें भी भीतर नहीं जाने दिया गया.
इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा-“एनएमडीसी 90 फ़ीसदी लाभ बैलाडीला और बस्तर से अर्जित कर रहा है और इसका मुख्यालय हैदराबाद में रहेगा, यह अब नहीं चलेगा. हमारी साफ़ मांग है कि मुख्यालय बस्तर लाया जाए. अब हम लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं. हमारी मांग पूरी होने तक यह लड़ाई चलेगी.”
बस्तरिया राज संगठन ने मांग की है कि खदानों से निकलने वाले लाल पानी से प्रभावित गांवों का सर्वेक्षण और मुआवजा दिया जाए. खलासी के पदों पर शतप्रतिशत स्थानीय लोगों की भर्ती की जाए. उच्च पदों पर शैक्षणिक रुप से मज़बूत स्थानीय युवाओं को भर्ती में आरक्षण का लाभ दिया जाए.
इसके अलावा संगठन ने मांग की है कि पश्चिम हिस्से में 40 से 50 गांव लाल पानी व ध्वनि प्रदूषण से ग्रस्त हैं, उन गांवो का अभी तक सर्वे भी नहीं हो पाया. उन गांवों का तत्काल सर्वे कर 25 वर्ष पूर्व से उनको क्षतिपूर्ति दी जाए.