रोहित वेमुला का अंतिम पत्र
हैदराबाद | संवाददाता: रोहित वेमुला की आत्महत्या को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. एक बड़ा वर्ग साफ तौर पर मानता है कि रोहित वेमुला की आत्महत्या असल में हत्या है. एक व्यवस्था द्वारा सोची समझी हत्या. बहुत विस्तार में न जाया जाये तो अधिकांश आत्महत्यायें असल में हत्या ही तो होती हैं. यहां हम रोहित वेमुला के मृत्युपूर्व लिखे पत्र को प्रकाशित कर रहे हैं, जिसका हिंदी अनुवाद भरत तिवारी ने किया है.
गुड मॉर्निंग,
जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं यहाँ नहीं होऊंगा. मुझसे नाराज़ नहीं होना. मुझे मालूम है कि आप में से कुछ लोग सच में मेरी परवाह करते थे, मुझे प्यार करते थे और बहुत अच्छा व्यवहार करते थे. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे तो हमेशा ख़ुद से ही दिक्कत होती थी. मुझे अपनी आत्मा और शरीर के बीच बढ़ती दूरी महसूस हो रही है. और मैं एक क्रूर-इन्सान (मॉन्स्टर) बन गया हूँ. मैं हमेशा से ही एक लेखक बनना चाहता था. कार्ल सगन की तरह विज्ञान का एक लेखक. और अंत में यही एक पत्र है-जो मुझे लिखने को मिला.
मैं विज्ञान, सितारों और प्रकृति से प्यार करता था और साथ ही मैं इंसानों से भी प्यार करता था- यह जानने के बावजूद कि इंसान अब प्रकृति से अलग हो गया है. हमारी भावनाएं अब हमारी नहीं रहीं. हमारा प्यार कृत्रिम हो गया. हमारे विश्वास, दिखावा. कृत्रिम-कला, हमारी असलियत की पहचान. बगैर आहत हुए प्यार करना बहुत मुश्किल हो गया है.
इंसान की कीमत बस उसकी फौरी-पहचान और निकटतम संभावना बन के रह गयी है. एक वोट. एक गिनती. एक चीज़. इंसान को एक दिमाग की तरह देखा ही नहीं गया. सितारों के कणों का एक शानदार सृजन. पढाई में, गलियों में, राजनीति में, मरने में, जिंदा रहने में, हर जगह.
मैं ऐसा ख़त पहली दफ़ा लिख रहा हूँ. पहली बार एक अंतिम चिट्ठी. अगर यह बेतुका हो तो मुझे माफ कर देना.
हो सकता है दुनिया को समझने में मैं शुरू से ही गलत रहा होऊं. प्यार, पीढ़ा, ज़िन्दगी, मौत को समझने में गलत रहा होऊं. कोई जल्दी भी तो नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में रहा. जीवन शुरू करने को बेताब. इस सब के बीच कुछ लोगों के लिए जीवन ही अभिशाप है. मेरा जन्म एक बड़ी दुर्घटना है. मैं बचपन के अकेलेपन से कभी बाहर नहीं आ सका. अतीत का वह उपेक्षित बच्चा.
मुझे इस वक़्त कोई आघात नहीं है. मैं दुःखी नहीं हूँ. मैं एक शून्य हो गया हूँ. अपने से बेपरवाह. यह दयनीय है. और इसीलिए मैं यह कर रहा हूँ.
मेरे जाने के बाद लोग मुझे कायर कह सकते हैं. या स्वार्थी या बेवकूफ. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई मुझे क्या कहता है. मृत्यु के बाद की कहानियों, भूत, या आत्माओं इन सबमे मैं विश्वास नहीं करता. अगर मैं किसी चीज में भरोसा करता हूँ तो – मैं सितारों का सफ़र कर सकता हूँ अपने इस विश्वास में. और दूसरी दुनियाओं को जानूँ.
अगर आप, जो यह पत्र पढ़ रहे है, मेरे लिए कुछ कर सकते हैं, मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी है, एक लाख पचहत्तर हज़ार रुपये. कृपया देखिएगा कि यह मेरे परिवार को मिल जाये. मुझे चालीस हज़ार रुपये रामजी को देने हैं. उन्होंने ये पैसे कभी वापस मांगे ही नहीं. लेकिन कृपया उन्हें इन पैसों में से ये वापस दे दीजियेगा.
मेरे अंतिम संस्कार को शांत रहने दीजियेगा. ऐसा सोचियेगा कि मैं बस दिखा और चला गया. मेरे लिए आंसू नहीं बहैयेगा. यह बात समझिएगा कि मैं जिंदा रहने से ज्यादा मर कर खुश हूँ.
‘परछाइयों से सितारों तक’
उमा अन्ना, माफ़ कीजियेगा – इस काम के लिए आपका कमरा यूज़ किया.
एएसए [अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन] परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आपने मुझे बहुत प्यार किया. अच्छे भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएं.
एक आखिरी बार के लिए,
जय भीम
मैं औपचारिकताओं को लिखना भूल गया.
अपने आप को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है.
यह करने के लिए किसी ने मुझे उकसाया नहीं है, न अपने कृत्य से, न अपने शब्दों से.
यह मेरा निर्णय है और अकेला मैं ही इसके लिए ज़िम्मेदार हूँ.
मेरे दोस्तों और मेरे दुश्मनों को मेरे जाने के बाद इसके लिए परेशान न कीजियेगा.