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जुर्म करने की भड़ास निकालने का मौका देने वाली रोबो-डॉल

सुनील कुमार
जैसे-जैसे विज्ञान और टेक्नालॉजी अपनी सारी तरक्की लेकर लोगों की निजी जिंदगी को सहूलियतों से भरने में जुट गए हैं,समाज के तौर-तरीके और लोगों की अपनी सोच भी सामानों के साथ बदल रही है. एक वक्त जिन लोगों के बीच ओहदों या उम्र, या रिश्तों के फासलों का लिहाज रहता था, आज वे वॉट्सऐप पर एक-दूसरे को कोई उत्तेजक तस्वीर या फिल्म भेजने में पल भर भी नहीं सोचते. एक कमरे में बैठकर लोग टीवी पर ऐसे प्रोग्राम तो देखते हुए अब एक पीढ़ी गुजार चुके हैं, जिन्हें किसी वक्त दो पीढिय़ां एक साथ नहीं देख पाती थीं. अब कम ही चीजें बिल्कुल अकेले वाली रह गई हैं.

टेक्नालॉजी ने बढ़ते-बढ़ते अब मशीनी इंसान बना लिए हैं, और मशीनी मजे की जिंदगी शुरू हो गई है. आज दुनिया भर में सेक्स-डॉल्स का बाजार खुल गया है और लोग बाजार से एक पुतला लेकर आ सकते हैं जो कि बड़े जटिल कम्प्यूटर से लैस भी है, और उससे अपने हमबिस्तर साथी की तरह मजा भी ले सकते हैं. अब यह मजा बढ़ते-बढ़ते इंसान की तमाम जरूरतों को पूरा करने जा रहा है. इन जरूरतों में लोगों की अपनी सेक्स की पसंद-नापसंद का ख्याल तो रखा ही जा रहा है, लेकिन इससे परे भी कुछ ऐसी बातों का भी ख्याल रखा जा रहा है जो कि जुर्म की दर्जे में आती हैं.

अभी कल की ही खबर है कि एक ट्रू कम्पेनियन नाम की कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर जो नए सेक्स रोबो बिक्री के लिए रखे हैं, उनमें उस रोबो-डॉल के मूड की सेटिंग में एक ऐसी सेटिंग भी रखी गई है जो कि उसे सेक्स में दिलचस्पी न लेने वाली बना देती है. अब ऐसी गुडिय़ा जो बर्फीली मिजाज की कही जाएगी, उसके साथ सेक्स एक किस्म से बलात्कार जैसा होगा, और इसी मकसद से यह नई सेटिंग जोड़ी गई है. इस तरह इंसान की एक सामान्य सेक्स की जरूरत को पूरा करने के बाद अब उसके असामान्य और हिंसक सेक्स को पूरा करने के लिए उसे एक ऐसी मशीनी लड़की दी जा रही है जिससे वह बलात्कार की तरह का सेक्स कर सकता है.

आज हिन्दुस्तान जैसे देश सेक्स-अपराधों के शिकार हैं, और यह सिलसिला बढ़ते ही चलते दिख रहा है. दूसरी तरफ जिन देशों में इंसानी समाज ने अपने तौर-तरीके उदार रखे हैं, और लोगों को अपनी निजी जिंदगी के शारीरिक और मानसिक फैसले तय करने का पूरा हक दिया है, वहां पर सेक्स-जुर्म घटते भी जा रहे हैं, कहीं-कहीं खत्म सरीखे भी हैं. दूसरी तरफ जापान जैसे देश में निजी जिंदगी भी मशीनों पर इस कदर टिकती जा रही है कि लोग नए भावनात्मक या शारीरिक रिश्ते बनाने से डरने और कतराने लगे हैं, और उन्हें मशीनों से रिश्ता रखना ज्यादा महफूज लगने लगा है. लोग समाज में उठना-बैठना कम करने लगे हैं, शादियां घट गई हैं, प्रेम-संबंध और सेक्स-संबंध तेजी से घटते जा रहे हैं, और ऐसे ही समाज से मशीनी सेक्स की टेक्नालॉजी निकल रही है.

कुछ बरस पहले अमरीका के एक सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय एमआईटी के वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला था कि जिस रफ्तार से मशीनी इंसान बन रहे हैं, और वे असली इंसानों के करीब आ रहे हैं, सन् 2050 तक इंसानों और मशीनों में कानूनी शादियां होने लगेंगी. अभी इस दिन को 30 से अधिक बरस बचे हैं, और इंसान ने बलात्कार के लायक रोबो भी तैयार कर लिए हैं, और इस हद तक तैयार कर लिए हैं कि वे बाजार में हैं, महज प्रयोगशाला में नहीं.

अब बाजार के अपने कायदे रहते हैं, और वह दिन भी अधिक दूर नहीं है जब कम उम्र के रोबो बनते-बनते ऐसे छोटे बच्चों जैसे रोबो सेक्स के लिए बनने लगेंगे जिस पर आज कड़ी सजा है. और फिर समाज यह सोचने लगेगा कि क्या सेक्स-रोबो की सहूलियत समाज में सेक्स-अपराधों को घटा भी सकती है? मशीनें निजी सोच और सामाजिक सोच को किस तरह बदलती हैं, यह टीवी और मोबाइल फोन ने दिखा दिया है, और आगे यह सिलसिला और भी देखने मिलते रहेगा.

दो और छोटी-छोटी खबरें अभी सामने आईं, एक खबर में न्यूयार्क में एक सुरक्षा-रोबो इमारत में बने पानी के एक टैंक में गिर गया, तो पल भर में पूरी दुनिया में उसकी तस्वीरें फैल गईं कि रोबो ने खुदकुशी कर ली. अधिकतर लोगों ने इसे मान भी लिया. लेकिन इसी के आसपास एक दूसरी खबर निकलकर आई कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से विकसित रोबो या मशीनें अगर किसी समय इंसानों को मारने पर उतारू हो जाएंगे, जैसे कि फिल्मों में आज हर दिन ही देखने मिलता है, तो इंसान उन्हें कैसे रोकेंगे? कैसे उन मशीनों के दिमाग को हिंसा से दूर रखने की कोशिश हो सकेगी?

एक तीसरी खबर कुछ ही दिन पहले आई कि किस तरह एक घर में पति-पत्नी के बीच कुछ हिंसक बातें हो रही थीं, और उस घर में लगे हुए एक उपकरण ने उन बातों को सुनकर हिंसा रोकने के हिसाब से पुलिस के नंबर पर खुद ही फोन लगा लिया, पुलिस वक्त पर पहुंच गई, और हिंसा को रोक दिया. अब यह बात उठ रही है कि घर के मामूली काम करने के लिए, लाईट या टीवी शुरू-बंद करने के लिए लगे ऐसे उपकरण अगर आसपास की बात सुनकर खुद फोन लगाकर पुलिस या किसी और को खबर करने लगें, तो ऐसी टेक्नालॉजी कौन-कौन सी संभावनाएं, और कौन-कौन सी आशंकाएं खड़ी करती है.

एक बार फिर जापान की एक मिसाल देना ठीक है जहां पर बाजारों में ऐसे पार्लर बने हुए हैं जिनके भीतर जाकर लोग भुगतान करके अपनी भड़ास निकाल सकते हैं. वे कुछ सामान भी खरीद सकते हैं, और एक खाली कमरे में जाकर उन सामानों को तोड़कर अपना गुस्सा उतार सकते हैं, अपनी कुंठाओं से मुक्ति पा सकते हैं.

दूसरी तरफ जापान में ही ऐसी सेक्स-सेवा मौजूद है जो सेक्स-कामगारों को स्कूली पोशाक में मौजूद रखती है क्योंकि बहुत से जापानी आदमी स्कूली छात्रा को अधिक उत्तेजक पाते हैं. इस तरह आज बाजार का कारोबार और टेक्नालॉजी इन दोनों की सोच लोगों की जरूरतों को पूरा करने की है. और जिस तरह आज लोगों की मोबाइल-ऑनलाईन जिंदगी के चलते निजी दोस्तों की जरूरत घट गई है, और दोस्ती की सामाजिकता कमजोर होती जा रही है, उसी तरह आज देह-सुख के लिए, और हो सकता है कुछ बरस जाकर मानसिक शांति के लिए भी लोग मशीनी साथियों के साथ हमबिस्तर होना बेहतर समझेंगे.

जापान पर अभी बनी एक गंभीर डॉक्यूमेंट्री फिल्म में वहां के बहुत से लोगों ने कहा कि उन्हें इंसानों से रिश्ते बनाने में जटिलताओं की वजह से घबराहट होती है. कई लोगों ने यह कहा कि रिश्तों का बोझ ढोना उन्हें मुमकिन नहीं लगता है. जाहिर है कि ऐसा समाज ही जीवन साथी जैसे रोबो बनाने में उत्साह दिखा रहा है, और यह सिलसिला जापान से परे भी हर उस समाज तक पहुंचेगा जो कि ऐसे रोबो खरीदने की ताकत रखेगी. मशीनों के साथ लोगों को यह सहूलियत होगी कि साथी का सच्चा या झूठा ऐसा बहाना सुनना नहीं पड़ेगा कि आज वे बहुत थक गए हैं, या कि सिर दर्द हो रहा है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.

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