बलात्कार की धमकी देता हिंसक राष्ट्रवाद
सुनील कुमार
दिल्ली के एक कॉलेज में होने जा रहे कार्यक्रम में कश्मीरी मुद्दों को उठाने वाले जेएनयू के छात्र उमर खालिद को भी बोलने के लिए बुलाया गया था. उमर खालिद को अलगाववादी करार देते हुए कुछ संगठन लगातार उसे देशद्रोही कहते आ रहे थे. इस कार्यक्रम में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी के नेताओं ने पहुंचकर खूब जमकर मारपीट की, और वहां मौजूद पुलिस उम्मीद के मुताबिक उसे देखती रही. अब इसे लेकर सोशल मीडिया पर एक बार फिर देश के कुछ लोगों को गद्दार और देशद्रोही करार देने का सिलसिला शुरू हो गया है.
कारगिल में शहीद हुए एक हिन्दुस्तानी सैनिक की बेटी ने एबीवीपी की इस गुंडागर्दी के खिलाफ एक पोस्टर लेकर अपनी तस्वीर अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की, और इस पोस्टर में लिखा था कि वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गुंडागर्दी से नहीं डरती है, और पूरे देश के छात्र उसके साथ हैं. यह कारगिल में शहीद हुए एक फौजी कैप्टन की बेटी है, और अपनी इस तस्वीर के बाद से लगातार उसके फेसबुक पेज पर उसे गद्दार लिखा जा रहा है, देशद्रोही लिखा जा रहा है, और उसे बलात्कार की धमकियां दी जा रही हैं.
बलात्कार की धमकी उन लोगों का बड़ा पसंदीदा हथियार है जो कि इस देश की संस्कृति को जिंदा रखने का दावा करते हैं. हिन्दूवादी, राष्ट्रवादी, साम्प्रदायिक, और हिंसक सोच के ठेकेदार लगातार उन सारे लोगों को देशद्रोही करार देते आ रहे हैं जो हिंसक-राष्ट्रवाद, धर्मान्धता, और युद्धोन्माद पर भरोसा नहीं रखते. ऐसे लोग कश्मीर की आजादी के नारे को तो गद्दारी मानते ही हैं, ऐसे लोग विचारों की आजादी, असहमति की आजादी को भी देशद्रोह मानते हैं, और यह सिलसिला सरकार की मंजूरी से हो रही हिंसा तक फैले चले जा रहा है. कहीं दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के एक बहुत ही प्रतिष्ठित वकील प्रशांत भूषण का मुंंह काला करने तक यह सिलसिला फैल रहा है, तो कहीं कश्मीर में शांतिवार्ता के हिमायती दूसरे लोगों को पाकिस्तानी करार देने तक जा रहा है.
आज ही एक अंग्रेजी अखबार में नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का एक लंबा साक्षात्कार छपा है जिसमें उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालयों में, और भारत में वैचारिक विविधता पर आधारित बहस के खात्मे पर फिक्र जाहिर की है. और यह फिक्र अकेले अमर्त्य सेन की नहीं है, सोचने-विचारने वाले, लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले, अंधविश्वासी पाखंड का विरोध करने वाले, इंसानियत पर भरोसा रखने वाले तमाम लोगों में है. आज असहमति का विरोध इतने हिंसक और इतने आक्रामक तरीके से हो रहा है कि बहुत से कमजोर दिल लोग मुंह खोलने या कि कुछ लिखने का हौसला भी नहीं जुटा पाते हैं.
दुनिया के ऐसे कोई देश लोकतंत्र के साथ महानता तक नहीं पहुंच पाते, जहां पर वैचारिक विविधता नहीं होती. जो लोग अपनी संस्कृति की बात करते हैं, जो हिन्दुस्तान में हिन्दुत्व से परे और कुछ न सोच पाते हैं, न बर्दाश्त कर पाते हैं, उन तमाम लोगों को कुदरत से भी कुछ सीखने की जरूरत है. जब धरती पर हिन्दुस्तान की कोई सरहद नहीं थी, और जब हिन्दू तो दूर, इंसान भी नहीं थे, और जब धरती पर कुदरत ने कदम रखा था या जन्म लिया था, जब पेड़-पौधे बने, और तरह-तरह के पशु-पक्षी और पानी के जानवर बने, जब नदियां बनीं, पहाड़ बने, और पानी बहा, तब से यह बात साफ है कि विविधता के बिना न कुदरत है, न धरती है, और न जीवन है. औरत और मर्द की विविधता न होती, तो इंसानी जिंदगी ही आगे न बढ़ी होती. ऐसी विविधता जिंदगी को लाने और बढ़ाने की पहली अनिवार्य शर्त रही है, और ऐसी विविधता को आज सिर्फ धर्म के आधार पर खत्म करने की यह सोच अप्राकृतिक है, और इससे विविधता की सारी संपन्नता तो खत्म हो ही रही है, पूरी तरह से अवैज्ञानिक, अमानवीय, अन्यायपूर्ण यह जिद, यह कट्टरता, खुद उस समाज को खत्म करने जा रही है, जिसकी शुद्धता का दावा करते हुए, जिसकी शुद्धता को बनाए रखने के लिए हिटलर के नस्लवादी अंदाज में भारत में असहमति को खत्म किया जा रहा है.
यह वह देश है जिसके हिन्दुत्व के दौर के इतिहास में भी शास्त्रार्थ की एक लंबी परंपरा रही है, और वैचारिक मतभेद पर खुलकर चर्चा यहां का इतिहास रहा है. असहमति की वजह से एक-दूसरे के सिर काटने का काम नहीं हुआ है, वह काम धर्म ने आकर जरूर शुरू किया, और धर्म से पहले तक असहमति से सिर नहीं कटे थे. अब ऐसे में आज इक्कीसवीं सदी में आकर मंगलयान भेज देने के बाद, पूरी दुनिया में हिन्दुस्तानियों को बसा देने के बाद, पूरी दुनिया में जगह-जगह भारतवंशियों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री के अभूतपूर्व भाषणों के बाद जब इस देश की राजधानी में तंगदिल और तंगदिमाग लोग नफरत और कट्टरता से असहमति का गला घोंट देते हैं, तो उनको यह अंदाज ही नहीं है कि वे आज की पूरी दुनिया के बीच हिन्दुस्तान का कितना नुकसान कर रहे हैं.
आज अमरीका जैसा देश अगर कामयाब है तो उसके पीछे महज वहां के मूल निवासियों का राज नहीं है, पूरी दुनिया से वहां पहुंचे हर राष्ट्रीयता, हर नस्ल, हर धर्म और हर रंग के लोगों को तकरीबन बराबरी से बढ़ावा देने का दौर जब से अमरीका में बढ़ा, तब से अमरीका एक कामयाब मुल्क हुआ. धीरे-धीरे वहां पर आधुनिक लोकतंत्र ने मूल निवासियों को जरूर कुचलकर रख दिया, लेकिन वह काम तो आज हिन्दुस्तान में भी हो रहा है, और ऑस्ट्रेलिया से लेकर दक्षिण अमरीकी देशों में भी हो रहा है. अमरीका में जो सकारात्मक बात पिछली आधी सदी में हुई है, और जिसने अमरीका को चांद तक पहुंचाया, अमरीकी आंतरिक जीवन शैली को सबसे अधिक लोकतांत्रिक बनाया, उसके पीछे वहां की विविधता रही. अब जब मौजूदा राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उनके हिमायती लगातार भेदभाव करके समाज के भीतर नफरत फैला रहे हैं, और जिस नफरत की हिंसा का शिकार दो दिन पहले वहां पर एक भारतवंशी नौजवान हुआ है, उस हिंसा को अगर हिन्दुस्तान में एक जुड़वां भाई मिल रहा है, तो इससे हिन्दुस्तान का नुकसान छोड़ और कुछ नहीं होगा.
और तो और एक नामीगिरामी क्रिकेट सितारे वीरेन्द्र सहवाग ने इस हौसलामंद युवती के पोस्टर वाली फोटो का मजाक उड़ाते हुए एक घटिया हरकत की है, और अपनी फोटो सहित एक जवाबी पोस्टर अपने ट्विटर खाते पर डाला है. शहीद की इस बेटी ने करीब तीन दर्जन पोस्टर अलग-अलग नारों के साथ पोस्ट किए थे जिसमें से एक यह था कि उसके पिता को पाकिस्तान ने नहीं मारा, जंग ने मारा है. जो लोग जंग के खिलाफ हैं, वे इस हकीकत को जानते हैं. लेकिन जो लोग जंगखोर हैं, उनको यह बात समझ नहीं आएगी, और सहवाग उन्हीं में एक साबित हुए. लेकिन जैसा कि किसी भी मशहूर सितारे के साथ होता है, सहवाग की कही हुई बात लोगों को बड़ी सुहा रही है, और उनके उकसावे के बाद इस हौसलामंद लड़की को कोसने वाले लोगों में खासी बढ़ोत्तरी हो गई है.
अमरीका तो अपने भीतर के मजबूत लोकतंत्र, संघीय ढांचे में राज्यों की मजबूत आजादी, और लोगों के बीच लोकतांत्रिक लड़ाई के एक बेहतर हौसले के चलते ट्रंप से उबर जाएगा, लेकिन भारत लगातार दकियानूसी सोच का नुकसान झेल रहा है. आज सरहद के शहीदों का नाम लेकर राष्ट्रवादी उन्माद फैलाने वाले लोग एक शहीद की बेटी को बलात्कार की धमकी दे रहे हैं. अगर इनके कहे मुताबिक ये देश की संस्कृति के रखवाले हैं, तो इस देश को ऐसी संस्कृति और ऐसे रखवालों की कोई जरूरत भी नहीं है. दिक्कत यह है कि ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार सक्रिय रहते हैं, वहां पर उनके ट्विटर खातों से वे ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं जो चारों तरफ बलात्कार की धमकी को चौराहों पर बंटने वाले पर्चों की तरह बांटते रहते हैं. प्रधानमंत्री को कौन फॉलो करे, इस पर तो प्रधानमंत्री का काबू शायद नहीं हो सकता, लेकिन वे किस-किस को फॉलो करें, यह तो उनकी मर्जी और पसंद की बात रहती है. अगर वे ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं जो नियमित रूप से बलात्कार की धमकियां देते हैं, हत्या की धमकियां देते हैं, तो उनकी ऐसी पसंद से देश में नफरतजीवी लोगों की हौसलाअफजाई होती है, और अमन-पसंद लोग पस्त होते हैं.
लोकतंत्र में एक मुखिया को देश को एक राह भी दिखानी होती है, आज हिन्दुस्तान में ऐसे असरदार नेता रह नहीं गए हैं जो कि नफरत के खिलाफ एक लोकतांत्रिक और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दें, जो इंसाफ को बढ़ावा दें, और बराबरी को बढ़ावा दें. ऐसे में जब देश में वैचारिक असहमति का जवाब हिंसा से दिया जा रहा है, तो देश पर असर रखने वाले ऐसे नेता रह नहीं गए हैं जो कि लोकतंत्र की बुनियादी जरूरत के मुताबिक, और उसके लिए, असहमति का सम्मान करें.
फिलहाल यह बात अच्छी है कि असहमति पर हिंसा करने वाले लोग एक शहीद की बेटी को बलात्कार की धमकी देकर अपने असली तेवर, अपना असली चाल-चलन उजागर कर चुके हैं, और इनके इस हिंसक पाखंडी राष्ट्रवाद का भंडाफोड़ इसी तरह होगा.
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अख़बार ‘छत्तीसगढ़’ के संपादक हैं.