भ्रमचारी-बलात्कारियों का हौसला ठंडा करने का तरीका
सुनील कुमार
केरल से एक दिल दहलाने वाली खबर आई है कि बाईस बरस की एक युवती ने अपने घर पर आए हुए एक हिन्दू, भगवाधारी स्वामी के बलात्कार से थककर चाकू से उस स्वामी का गुप्तांग काट दियाऔर मर्दानगी की उसकी शान को चौपट कर दिया. इसके बाद उसने खुद होकर पुलिस को खबर की, और अब उसे केरल के जागरूक समाज से लेकर मुख्यमंत्री तक की वाहवाही मिल रही है.
इस स्वामी का उस घर में दाखिला इस लड़की के पिता के इलाज के नाम पर हुआ था, और वह पिछले आठ बरस से इससे बलात्कार करते आ रहा था. जाहिर है कि यह सिलसिला तब शुरू हुआ जब यह लड़की नाबालिग बच्ची रही होगी, और जब उसका बर्दाश्त जवाब दे गया, तब उसने आत्मरक्षा में यह हिंसक कार्रवाई की है.
इस स्वामी को केरल के एक बहुत ताकतवर हिन्दू संगठन से जुड़ा हुआ बताया गया है और सुबूत में ऐसी दर्जनों तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आ रही हैं जिनमें यह स्वामी इस हिन्दू ऐक्य वेदी नाम के संगठन के लोगों को लेकर वहां के मुख्यमंत्री से भी मिल रहा है, और इस संगठन के दूसरे कार्यक्रमों में भी शामिल है.
यह मामला महज हिन्दू धर्म तक सीमित नहीं है क्योंकि हम लगातार ऐसी खबरें भी देखते और छापते आ रहे हैं जिनमें पश्चिम के देशों में जहां कानूनी जागरूकता और अधिकार अधिक हैं, वहां पर चर्च के पादरी छोटे-छोटे बच्चों का देह-शोषण करते हैं, और जब ऐसे मामले उजागर भी होते हैं, तो कैथोलिक समुदाय के दुनिया के मुखिया पोप की तरफ से उन्हें माफी भी मिल जाती है, और चर्च उन्हें कानून के हवाले नहीं करता.
अमरीका की एक दूसरी घटना को भी इसी सिलसिले में याद करना जरूरी है जिसमें इस्कॉन नाम के बहुचर्चित हिन्दू संगठन के एक हॉस्टल में बच्चों का देह-शोषण किया गया, और उसके एवज में अदालत से बाहर मामले को निपटाने के लिए इस संगठन ने सैकड़ों करोड़ का भुगतान किया.
दरअसल धर्म से जुड़े हुए संगठनों के साथ यह दिक्कत हमेशा इसलिए बनी रहेगी कि बहुत से धर्मों में बहुत किस्म के काम करने वाले स्वामी, पादरी, या इसी तरह के दूसरे लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे ब्रम्हचारी रहेंगे, शादी नहीं करेंगे, और पूरा जीवन, पूरी ताकत ईश्वर की सेवा में लगा देंगे. धर्म से परे कुछ एक आध्यात्मिक संगठन, या कि योग-ध्यान से जुड़े हुए कुछ संगठनों में भी ऐसे लोग रहते हैं जो कि शादी नहीं करते.
हमारा तजुर्बा यह है कि ऐसे लोग शादी तो नहीं करते, लेकिन बर्बादी बहुत करते हैं. और चूंकि इनकी पहुंच पेशेवर वेश्याओं तक नहीं रहती, इसलिए ये लोग आसपास के बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं, या कि आस्थावान महिलाओं को दबोचते हैं. ब्रम्हचर्य की पूरी की पूरी सोच प्रकृति के खिलाफ है. करोड़ों साल से विकसित होकर बना हुआ मानव शरीर कई तरह की जरूरतों को लेकर इस शक्ल में आया है, और इनमें से भूख और प्यास की तरह ही सेक्स एक बड़ी जरूरत है.
जो कोई ब्रम्हचर्य मानने की बात तय करते हैं, उनको खुद को इस बात का अंदाज नहीं रहता कि उनके इस फैसले के खिलाफ उनके तन-मन कब-कब बागी हो जाएंगे, और किस हद तक उनको परेशान करेंगे. लेकिन होता यह है कि सार्वजनिक रूप से जब एक बार सांसारिकता को छोड़कर लोग धर्म या आध्यात्म में शामिल हो जाते हैं, अलग-अलग रंग के चोले पहन लेते हैं, तो फिर उन्हें वहां से बाहर निकलना आसान भी नहीं लगता , क्योंकि वह बहुत बड़ी शर्मिंदगी की बात होगी.
हमारा यह भी देखा हुआ है कि जिन धर्मों में जिन भूमिकाओं के लिए लोगों की शादी पर रोक नहीं होती है, वैसे लोग बलात्कार या यौन शोषण कम करते हैं, उनके मामले कम सामने आते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि प्रकृति ने तन-मन की जो जरूरतें बनाई हैं, उनके पूरे होने का कोई साधन उनके पास रहता है, और अपनी न्यूनतम जरूरतों के पूरा होने पर अगर वे संतुष्ट रह पाते हैं, तो यह संभावना अधिक रहती है कि वे अपने आप पर अधिक काबू भी पा सकें.
दूसरी तरफ जिन लोगों को ब्रम्हचारी रहने की मजबूरी रहती है, उनके तन-मन उन्हें ईश्वर या आध्यात्म से परे दूसरी तन की तरफ धकेलते रहते हैं, और मासूम बच्चे उनके शिकार होते हैं, अपने परिवार या जीवन से निराश होकर आई हुई आस्थावान महिलाएं अपनी कमजोर या नाजुक मानसिक हालत की वजह से जल्द ही उनकी शिकार हो जाती हैं.
धर्म सेक्स के खिलाफ बहुत सी बातें कहता है, वह सेक्स को मोटे तौर पर केवल मानव जीवन के आगे बढ़ाने के काम के रूप में देखता है, और बाकी तमाम जरूरतों को अनदेखा करता है. हर धर्म में काम वासना के खिलाफ बहुत सारी बातें लिखी जाती हैं, और हिन्दू धर्म सहित बहुत से धर्मों में तो प्रार्थनाओं से लेकर प्रवचन तक में यह बात खुलकर कही जाती है कि अगर किसी को स्वर्ग पाना है, ईश्वर को खुश करना है, तो उसे अपने आपको काम वासना से दूर रखना चाहिए.
एक तरफ तो ईश्वर की ऐसी तस्वीरें और ऐसी कहानियां हिन्दू धर्म में भरी पड़ी हैं जिनमें ईश्वर एक से ज्यादा महिलाओं की तरफ खिंचे रहते हैं, किसी दूसरे की पत्नी पर भी हाथ डाल देते हैं, अपने आसपास के वर्जित रिश्तों के साथ भी बलात्कार कर देते हैं, और दूसरी तरफ उन्हीं देवताओं की पूजा करने वालों को प्रकृति के खिलाफ जाकर सेक्स से दूर रहने की धार्मिक नसीहत दी जाती है.
यह पूरा सिलसिला सेक्स को तो नहीं घटा पाता, सेक्स अपराधों को जरूर बढ़ा देता है. ब्रम्हचर्य की असली शक्ल भ्रमचर्य की है, वे ब्रम्ह को तो हासिल नहीं कर पाते, ब्रम्ह को पाने के भ्रम को जरूर हासिल कर लेते हैं. जो लोग लगातार अपने जीवन को सेक्स से दूर रखने के संघर्ष में लगे रहते हैं, उनसे यह उम्मीद करना एक दिमागी पाखंड है कि वे ईश्वर के करीब जाने का संघर्ष कर रहे होंगे.
जब किसी ब्रम्हचारी या साध्वी-सन्यासी, या कि पादरी का जीवन प्रकृति के खिलाफ संघर्ष से भरा हुआ हो, तब उनके पास इतना वक्त कहां हो सकता है कि वे ईश्वर के करीब जाने का संघर्ष करें.
इस बात को एक दूसरी मिसाल से समझा जा सकता है कि बहुत से धर्मों में बहुत से त्यौहारों पर तरह-तरह से उपवास रखने की प्रथा है. किसी ईश्वर ने ऐसा कहा हो कि उसके लिए उपवास रखें, ऐसा तो नहीं लगता, लोगों ने तरह-तरह की तकलीफें पाने, तरह-तरह से अपने पर काबू पाने को धर्म, और ईश्वर तक पहुंचने का जरिया मान लिया है.
जब धार्मिक उपवास चलते हैं, तो यह जाहिर है कि लोगों का ध्यान इस बात पर लगे रहता है कि भूखे रहने के घंटे कब खत्म होंगे, और कब उन्हें खाने को क्या-क्या मिलेगा, और ऐसे घंटों के लिए लोग तरह-तरह की चीजों का इंतजाम भी करके रखते हैं, उपवास के बाद के तरह-तरह के पकवान तैयार किए जाते हैं. ऐसे लंबे उपवासों के दौरान जब उपवास करने वाले लोग आपस में मिलते हैं, तो उनके बीच बहुत कम ही चर्चा ईश्वर के बारे में होते दिखती है, उनकी अधिक चर्चा उपवास और उपवासी पकवान तक सीमित रहती है, कि क्या-क्या खाया जा सकता है, कैसे-कैसे पकाया जा सकता है.
मतलब यह कि जिस चीज से दूर धकेलने की कोशिश होती है, खासकर प्रकृति की जरूरतों के खिलाफ जाकर जो करने की कोशिश होती है, उस दौरान लोगों के तन-मन उसी तरफ जाने की कोशिश करते हैं. जब लोगों के मन खाने में फंसे हों, तो बिना भोजन भजन आखिर कैसे हो सकते हैं? जब लोगों को मजबूरी में सेक्स से दूर रहना पड़े, तो जाहिर है कि उनके तन-मन उन्हें सेक्स की संभावनाओं की तरफ खींचते और धकेलते रहेंगे, और ईश्वर की बारी तो इस जरूरत के पूरे होने के बाद कभी आएगी तो आएगी.
दूसरी बात यह कि हर किस्म के धर्म में किसी भी पाप से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित के कई तरह के रास्ते बना दिए गए हैं. धर्म को जब शोषण के सबसे बड़े और सबसे दीर्घकालीन हथियार की तरह डिजाइन किया गया, तो उसी साजिश के दौरान यह भी समझ लिया गया था कि इंसान तो इंसान ही रहेंगे, और उनकी इंसानी जरूरतें भी कायम रहेंगी. अगर पाप करने वाले लोगों को धर्म से निकाल देने का सिलसिला शुरू होगा, तो ईश्वर और उसके एजेंट पोप-पुजारी ये सब भूखे ही मर जाएंगे.
इसलिए तमाम किस्म के मुजरिमों और पापियों को धर्म में बनाए रखने के लिए प्रायश्चित नाम की एक ऐसी लॉंड्री खोली गई जहां अपनी आत्मा लाकर लोग कुछ बिल चुकाकर उसे साफ करवा सकते हैं, और फिर छाती पर किसी बोझ के बिना बाकी दुनिया में जाकर एक बार फिर से पाप करना शुरू कर सकते हैं.
पश्चिमी देशों में ईसाई धर्म को मानने वालों के बीच अधिकतर जगहों पर लोकतंत्र कुछ अधिक विकसित है, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान वहां पर धार्मिक भावना के मुकाबले कम नहीं है. इसीलिए अमरीका से लेकर फ्रांस और जर्मनी तक लोगों को धार्मिक पुस्तकों को जलाने की आजादी है, अलग-अलग धर्मों के ईश्वरों को लेकर कार्टून बनाने की आजादी है, और तरह-तरह के लतीफे गढऩे की आजादी है.
ईसाईयों के बीच पश्चिमी देशों में चर्च के कन्फेशन चेम्बर को लेकर अनगिनत लतीफे हैं कि किस तरह लोग वहां जाकर अपने पाप की स्वीकारोक्ति करते हैं, और किस तरह उसके बाद दूसरी तरफ बैठा हुआ पादरी उन पापों को माफ करता है. इस चेम्बर को लेकर पादरियों के सेक्स को लेकर अब तक लाखों लतीफे और कार्टून बन चुके हैं कि वे किस तरह अपराधबोधग्रस्त लोगों का फायदा उठाते हैं, और खुद अपने लिए सेक्स की संभावनाएं ढूंढ लेते हैं.
बहुत से देशों में बहुत से धर्म अपनी खामियों और अपने पाखंड की चर्चा से परहेज करते हैं, न मजाकिया चर्चा, न ही गंभीर चर्चा. नतीजा यह होता है कि वहां पर पाखंड और पनपते चलता है, और उसे दबाकर, छुपाकर रखा जाता है. लोगों को याद होगा कि बहुत से स्वामियों के सेक्स की वीडियो रिकॉर्डिंग पिछले बरसों में सामने आई है, और हमने अपने खुद के इलाके में प्रदेश के सबसे बड़े कुछ मठों के महंतों की सेक्स की कहानियां सुनते-सुनते ही जिंदगी गुजारी है.
यह सार्वजनिक चर्चा रहती है कि ब्रम्हचारी जीवन गुजारने वाले ऐसे महंत के सेक्स संबंधों से उनकी कौन-कौन सी संतानें हैं, और उन्हें मठ की जमीनों में से कौन-कौन सी जमीनें दी गई हैं. यह सिलसिला अनंत है, और चूंकि धर्म को बहुत से लोग कानून और तर्क से परे की चीज मान लेते हैं, इसलिए ऐसे भ्रमचर्य पर भी कोई चर्चा नहीं हो पाती है. ऐसी नौबत में ऐसे भ्रमचर्य का एक आसान और अच्छा इलाज यही है कि तेज धार वाला एक चाकू या उस्तरा रखा जाए, और धर्म की मर्दानगी का ऐसा विसर्जन कर दिया जाए.
हमारा ख्याल है कि देश का कानून भी धर्म के बलात्कार के खिलाफ आत्मरक्षा के लोगों के अधिकार का सम्मान करेगा, केरल में जनता और मुख्यमंत्री ने यह सकारात्मक रूख दिखाया है, और शायद यही तरीका बाकी भ्रमचारी-बलात्कारियों का हौसला ठंडा कर सकेगा.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.