राम माधव और चरित्र का मतलब
चंचल | फेसबुक : राम माधव को हम पसंद नही करते. वह समाज में जहर बोने वालों में से एक हैं, लेकिन उसके लड़कियों के साथ कथित ‘रंगरेलियां'(?) मनाने के सवाल पर हम उनके साथ कतई नहीं, जो माधव को और लड़कियों को कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं. इसके दो कारण हैं.
एक- हम जिस समाज में खड़े हैं, उसने ‘ चरित्र ‘ को इतना चिथड़ा बना दिया है कि वह एक जगह आकर सिमट गया है और वह ‘ कमर के नीचे’ .. आप पेरिस जाकर देश बेचा आइये, चरित्र नही बिगड़ेगा. किसी महिला के साथ हैं तो आपका चरित्र खराब हो गया.
कमबख्त ! यह जानते हो कि इंसान में ‘काम’ एक आवश्यक तत्व है फिर भी उसे प्रताड़ित करते रहते हो.
सियासत के एक मनीषी बोल गए हैं- वायदा ख़िलाफी और बलात्कार छोड़ कर औरत और मर्द के सारे रिश्ते जायज है. डॉ लोहिया का यह कथन केवल रिश्ते के तानेबाने को ही साफ सुथरा नही बनाता, बल्कि समाज को उर्ध्वगामी भी बनाता है.
दिक्कत यह है कि राम माधव जिस चूहेदानी में फंसे हैं, यह उनकी अपनी बनाई कला है, जिसे वे वर्जना में डालते हैं. इस मुल्क में ‘इस चरित्र ‘ को सबसे ज्यादा किसी ने स्थापित किया है तो इन्हीं गिरोहियों ने. यहां तक बापू, नेहरू वगैरह तक को नही छोड़ा.
दो- एक सीधा-सा पैमाना तय होना चाहिए कि औरत और मर्द के रिश्ते अगर आपसी सहमति से हैं तो इसमें काजी साहिब थोड़ा दूर ही रहें, चाहे भगवाधारी ब्रिगेड या सेना हो या पुलिस.
सच तो यह है कि यह उनके अंदर की लड़ाई का एक हथियार है, जिससे एक दूसरे पर हमला करते आ रहे हैं. इसे या तो निहायत गंभीरता से उठाकर इस पार या उस पार का फैसला कर ही लिया जाये या कत्तई गंभीरता से न लिया जाये.