प्रसंगवश

कोई बताये भारत का सबसे गरीब कौन है

जेके कर
बेशक, मुकेश अंबानी देश के सबसे अमीर आदमी हैं. फोर्ब्स के आकड़ों के अनुसार उनके पास 22.7 अरब डॉलर की संपत्ति है. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि देश का सबसे गरीब आदमी कौन है. इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय के पास भी नहीं है.

गोरतलब है कि भारत के सबसे गरीब आदमी की जानकारी मांगने पर उसे देने में प्रधानमंत्री कार्यालय भी असमर्थ रहा था. दरअसल, राजस्थान के सेवानिवृत शिक्षक दीप चंद्र शर्मा ने जून 2015 में प्रधानमंत्री कार्यालय को 1 लाख रुपये भेजे थे कि इसे देश के सबसे गरीब आदमी को दे दिया जाये. आखिरकार उस सेवानिवृत शिक्षक को प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 1 लाख रुपये वापस कर दिये गये थे.

जाहिर है कि जब प्रधानमंत्री कार्यालय इस बात की जानकारी नहीं दे सकता कि देश का सबसे गरीब आदमी कौन है तो उसकी खोज करना बेकार है. हां, इस पर चर्चा जरूर हो सकती है कि कोई क्यों सबसे गरीब है. वैसे भारत ही क्या दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो बता सके उसके यहां का सबसे गरीब नागरिक कौन है.

जब समाज का, व्यवस्था का पूरा फोकस अमीर बन जाने के लिये है तो भला सबसे गरीब को कैसे खोजा जा सकता है. अमीर क्या पहनता है, क्या खाता है, कौन से कप में सुबह उठकर चाय पीता है, किस तरह से जीवन व्यतीत करता है यह समाचारों की सुर्खियां बटोर लेता है परन्तु मुंबई के फुटपाथ पर सोने वाले पांच लोगों को अपनी को टोयोटा लैंड क्रूजर कार से कुचल देने के बाद भी बॉलीवुड का सबसे ‘दबंग’ हीरो बच निकलता है. जिसमें से एक शख्स की मौत हो गई थी. इसे गरीबी का अभिशाप तथा अमीरी की दबंगई कहा जाये तो गलत न होगा.

कुछ समय पहले वित्तीय सेवाओं के लिये जाने जानी वाली संस्था क्रेडिट सुईस ने आगाह किया था कि भारत में अमीर लगातार और अमीर जबकि गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहें हैं. क्रेडिट सुईस के अनुसार भारत की 53 फीसदी दौलत 1 फीसदी लोगों के पास है. भारत की 68.6 फीसदी दौलत के मालिक 5 फीसदी लोग हैं. भारत की 76.3 फीसदी दौलत 10 फीसदी लोगों के पास है. जाहिर है कि बाकी के 23.7 फीसदी दौलत के बंटवारे के लिये 90 फीसदी लोग जूझ रहें हैं.

क्रेडिट सुइस के मुताबिक इनमें भी भारत की सबसे गरीब आबादी सिर्फ 4.1 फीसदी संपत्ति की हिस्सेदार है.

जाहिर है कि समाज में कोई अमीर इसलिये हो गया है क्योंकि उसे बंटवारे में ज्यादा मिला है तथा कोई गरीब इसलिये है क्योंकि बंटवारे में उसे कम मिला है. कई जानकार बात को इस ढ़ंग से रखने का विरोध कर सकते हैं. इसे दूसरे तरह से भी समझा जा सकता है.

मिसाल के तौर पर बेरोजगारी या कम वेतन से घर में कम पैसा आता है. जिससे बच्चों की शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर कम खर्च किया जाता है. अंत में वे भी अच्छी नौकरी न पाने के कारण तंगी में ही रह जाते हैं. इस प्रकार से गरीबी और गरीबी को बढ़ावा देती है. यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है. मूलतः समाज या सरकार के पास कोई ऐसी योजना नहीं है जिसके आधार पर गरीबों को गरीबी से बाहर निकला जा सके.

इसलिये साल दर साल अमीरों की सूचियां ही बनती जायेगी. इतिहास में दर्ज होती जायेगी जिसे गरीबों के बच्चे पढ़ते रहेंगे.

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