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धान में छत्तीसगढ़ सबसे फिसड्डी

रायपुर | विशेष संवाददाता: धान के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में सबसे फिसड्डी राज्य है. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के कटोरे में थोड़ा सा ही धान रह गया है. धान के विपणन तथा चावल के बाजार की हालात पर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यानी सीएसीपी द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार छत्तीसगढ़ अठारह राज्यों की सूची में अठारहवें नंबर पर है. भारत सरकार की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ की इस हालत के लिये राज्य सरकार की नीतियां जिम्मेवार हैं. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के निजी क्षेत्र में प्रतियोगिता कम होने के कारण चावल महंगा है.

भारत में चावल उत्पादन के लिये प्रसिद्ध जिन राज्यों को आधार बना कर यह रिपोर्ट तैयार की गई है, उनमें छत्तीसगढ़, पंजाब, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, केरल, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड तथा उत्तराखंड शामिल हैं.

इन राज्यों में चावल के बाजार की हालत सबसे अच्छी गुजरात में है तथा सबसे खराब हालत छत्तीसगढ़ की है. छत्तीसगढ़ में धान की पैदावार प्रमुखता से होने के बावजूद बाजार में चावल की कमी है, फलतः कीमत अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है.

बढ़ गया उत्पादन
2008-09 में छत्तीसगढ़ के 3.7 मिलियन हेक्टेयर भूमि में धान की पैदावार होती थी, जो 2012-13 में भी इतनी ही है. चावल का उत्पादन 4.4 मिलियन टन से बढ़कर 6.3 मिलियन टन हो गया है. इस प्रकार उत्पादन में वृद्धि 42.2 प्रतिशत हुई है. जबकि इसी दौर में सरकार द्वारा चावल की खरीदी 2.9 मिलियन टन से बढ़कर 4.8 मिलियन टन हो गया है.

आंकड़े बताते हैं कि सरकार द्वारा चावल की खरीदी 67 प्रतिशत बढ़ी है. छत्तीसगढ़ में उत्पादित करीब 90 प्रतिशत धान छत्तीसगढ़ सरकार खरीद लेती है. केवल दस प्रतिशत चावल ही खुले बाजार में जा पाता है, जिसे लोग खरीदते हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में धान पर बोनस के कारण पड़ोसी राज्य ओडीशा, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश से भी अवैध तरीके से ट्रकों में लद कर छत्तीसगढ़ में धान आने की खबर है. राज्य में ऐसे कई मामले पकड़े भी गये हैं. लेकिन ऐसे किसी भी मामले को लेकर सरकार ने कोई खास गंभीरता दिखाई हो, ऐसा नहीं लगता.

लाखों किसान बन गये मजदूर
2001 की जनगणना में जहां छत्तीसगढ़ में कुल कामकाजी लोगों में किसानों की जनसंख्या 44.54 प्रतिशत थी, वह 2011 में घट कर 32.88 प्रतिशत रह गई है. इसके उलट खेतिहर मजदूरों की जनसंख्या आश्चचर्यजनक रुप से बढ़ गई है. 2001 में कुल कार्मिकों में 31.94 प्रतिशत जनसंख्या खेतिहर मजदूरों की थी. 2011 में इसमें चिंताजनक बढ़ोत्तरी हुई है और यह 41.80 प्रतिशत तक जा पहुंची है.

इन आंकड़ों के बीच दिलचस्प तथ्य ये है कि पिछले एक साल में भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया है. 2011-12 में भारत ने चावल निर्यात के मामले में थाईलैंड तथा विएतनाम को पछाड़ दिया है. 2002-07 की दसवीं योजना के वक्त भारत का सकल घरेलू उत्पादन था 7.6 प्रतिशत तथा चावल का उत्पादन हुआ था 2.4 प्रतिशत. 2007-12 की ग्यारहवीं योजना में देश का सकल घरेलू उत्पादन था 8.0 प्रतिशत, तब चावल का उत्पादन हुआ 3.6 प्रतिशत.

कुल मिलाकर देश में चावल का उत्पादन बढ़ा है तथा निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. छत्तीसगढ़ के खुले बाजार में इसकी आवक कम है, जिससे चावल के बाजार की हालात ठीक नहीं कही जा सकती. यही कारण है कि जनता जब बाजार में चावल खरीदने जाती है तो उसे अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है.

सीएसीपी ने कहा कि चावल के बाजार का आकलन एमएसपी के प्रतिशत के रूप में कर, राज्य सरकारों द्वारा धान के लिये घोषित समर्थन मूल्य, कुल चावल उत्पादन में चावल खरीद की प्रतिशत में हिस्सेदारी, भंडार क्षमता, लेवी राइस और राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे सुधार कार्यक्रमों के आधार पर होता है. आयोग ने छत्तीसगढ़ समेत तमाम राज्यों को अपनी हालात सुधारने के लिये सलाह दी है और न्यूनतम नियंत्रण के साथ सिंगल बैरियर फ्री मार्केट बनाने पर जोर दिया है.

कृषि लागत एवम मूल्य आयोग ने राज्य सरकारों से अधिक खरीदारी से परहेज करने के लिये कहा है ताकि निजी क्षेत्र को मौका मिले.

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