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फूल का पता बताने की सजा मौत…

मनीष आज़ाद | फेसबुक
अभी ‘मोदी-बाइडन’ ने दावा किया कि लोकतंत्र उनके DNA में है. भारत की असलियत तो हम जानते ही हैं. अमेरिका की असलियत क्या है?

1944 में अमेरिका का ‘कारोलिना’ प्रान्त ‘गोरे’ और ‘ब्लैक’ के बीच बटा हुआ था. उनके स्कूल/अस्पताल/चर्च सब कुछ अलग थे. प्रान्त के बीच से गुजरने वाली रेलवे ट्रैक गोरे और काले लोगों को अलग करती थी.

काले लोगों के प्रति नफरत इस कदर थी कि उन्हें बात बात पर गोरे लोगों की उन्मादी भीड़ ‘लिंच’ कर देती थी.

गोरे लोगों की एक प्रतिक्रियावादी सेना ‘कू क्लक्स क्लान’ का बोलबाला था. जो अपने चेहरे पर मास्क लगाकर किसी भी काले को मार सकते थे, बलात्कार कर सकते थे या उनका घर जला सकते थे. अपने यहां तो यह सब बिना मास्क लगाये हो रहा है.

इन्हें आमतौर पर उसी तरह राज्य/न्यायालय का संरक्षण प्राप्त था जैसे आज भारत मे हिंदूवादी संगठनों को प्राप्त है.

इसी पृष्ठभूमि में 23 मार्च 1944 को सुबह सुबह रेलव ट्रैक के किनारे किनारे क्रमशः 7 और 11 साल की दो गोरी लड़कियां एक फूल (passionflowers) की तलाश में जा रही थी. सामने से 14 साल का ब्लैक जॉर्ज (George Stinney) और उसकी बहन आ रहे थे. दोनों लड़कियों ने उस फूल के बारे में सहज तरीके से जॉर्ज से पूछा. जॉर्ज ने भी सहज तरीके से यह बता दिया कि यह फूल कहां मिल सकता है.

दोपहर को इन दोनों लड़कियों की लाश रेलवे ट्रैक पर पायी गयी. चूंकि इन लड़कियों की अंतिम मुलाकात जॉर्ज से हुई थी, इसलिए जॉर्ज को पकड़ लिया गया. और महज 24 दिन के ट्रायल के बाद 16 जून 1944 को उसे बिजली के करंट द्वारा मौत की सजा सुना दी गयी. सभी जज गोरे थे और उस दिन करीब 1 हजार गोरे कोर्ट परिसर में मौजूद थे.

लेकिन किसी भी ब्लैक को कोर्ट के अंदर आने की अनुमति नहीं थी. जॉर्ज के परिजनों को भी नहीं. तर्क यह था कि गोरे लोगों की उन्मादी भीड़ उन्हें ‘लिंच’ कर सकती है.

इस तरह 14 साल का जॉर्ज दुनिया में सबसे कम उम्र में मौत की सजा पाने वाला व्यक्ति बन गया.

जॉर्ज
जॉर्ज

‘मौत की कुर्सी’ पर बैठने के लिए जार्ज की ऊँचाई कम थी, तो उसकी ऊँचाई बढ़ाने के लिए नीचे मोटी बाइबल रख दी गयी. आखिर धर्म इंसान को स्वर्ग पहुँचाने का ही तो साधन है.

2013 में कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इस केस को दुबारा से खोलने के लिए कोर्ट में अर्जी दी. केस दुबारा खोला गया और 2014 में 70 सालों बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जॉर्ज निर्दोष था. लेकिन अब क्या हो सकता था.

इन 70 सालों में जॉर्ज की कब्र पर न जाने कितनी बार passionflowers खिल कर मुरझा चुके थे. जिस फूल का पता जॉर्ज ने उन दोनों गोरी लड़कियों को बताया था, अब वह खुद उस फूल में तब्दील हो चुका था.

passionflowers कैरोलिना में अभी भी खिलता है, लेकिन कोई भी उसका पता बताने से डरता है.

इस घटना पर कई फिल्में/डाक्यूमेंट्री/उपन्यास लिखे गए हैं. मेरे आत्मीय मित्र Banshilal Parmar जी ने मुझे इस विषय पर एक फ़िल्म उपलब्ध कराई है.

इसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं और तय कर सकते हैं कि अमेरिका के ‘डीएनए’ में क्या है?? और हां, यह भी कि भारत का इससे क्या रिश्ता है.

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