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पाकिस्तान: बेचारे नवाज शरीफ

नई दिल्ली | एजेंसी: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपने देश में वह रुतबा नहीं मिला है जो उस पद में बैठे व्यक्ति को मिलना चाहिये. कई बार सैन्य शासन के अदान रहने वाले पाक में आज भी सेना ही विदेश नीति को नियंत्रित करती है ऐसा प्रतीत होता है. जाहिर है कि पाक प्रधानमंत्री के द्वारा विदेशों में किये गये वादों को अपने देश में अमलीजामा पहनाने में पसीना निकल आता है. पाकिस्तान के प्रजातंत्र की सच्चाई एक बार फिर उजागर हुई. इस मुल्क की व्यवस्था ने तीन दिन में ही अपने प्रधानमंत्री को उसकी औकात बता दी. नवाज शरीफ ने उफा में भारतीय प्रधानमंत्री के समक्ष जिन बातों को कबूल किया था, पर्दे के पीछे रहकर सत्ता चलाने वालों ने उससे किनारा कर लिया.

यह सब नवाज शरीफ को जानबूझकर नीचा दिखाने के लिए किया गया. दुनिया में यही संदेश गया कि कोई भी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पर पूरी तरह विश्वास न करे, क्योंकि सेना का नियंत्रण उनके वादों को तार-तार करने की हैसियत रखता है.

भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की मुलाकात उफा में हुई थी. शासकों की ऐसी मुलाकातें एक पंथ दो काज की कूटनीति के तहत होती है. इन मुलाकातों का मुख्य उद्देश्य किसी वैश्विक या क्षेत्रीय संगठन में शामिल होने का रहता है. लेकिन खाली समय के बेहतर उपयोग हेतु विभिन्न देशों के नेता एक-दूसरे से मिलते हैं.

मोदी और नवाज शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने के लिए उफा गए थे. जाहिर है यह औपचारिक समझौता वार्ता नहीं थी. फिर भी अक्सर ऐसा होता है, जब ऐसी मुलाकात में ही द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत बनाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हो जाती है. इस दृष्टि से मोदी और नवाज शरीफ की मुलाकात से भी बड़ी उम्मीद थी.

नरेंद्र मोदी ने रिश्ते सुधारने के लिए जो भी प्रस्ताव रखे, वह उपयोगी थे. इन प्रस्तावों में सीमापार का आतंकवाद रोकना, मुंबई हमले के आरोपियों को सजा दिलाने संबंधी प्रस्ताव शामिल थे. यह अच्छा था कि नवाज ने इन पर अमल का वादा किया. यदि पाकिस्तानी सेना अपने प्रधानमंत्री के वादे का सम्मान करती, तो निश्चित ही दोनों देशों के बीच पुन: औपचारिक वार्ता शुरू हो सकती थी. तब सीमा पर शांति कायम होती. आर्थिक व व्यापारिक रिश्ते आगे बढ़ते. लेकिन हिंसक व छोटी सोच के लोग उदार मानवीय बातों को नहीं समझते. पाकिस्तानी सैन्य कमांडरों को यही पसंद है. भारत के साथ रिश्ते अच्छे बनाने, आर्थिक प्रगति करने की जगह उन्होंने लखवी को महत्व दिया, जो कि मुंबई हमले का मुख्य साजिशकर्ता है.

पाकिस्तान की सत्ता पर जिनका वास्तविक नियंत्रण है उनकी सोच लखवी जैसे आतंकियों से शुरू होती है, और कश्मीर मुद्दे पर आकर खत्म हो जाती है. नवाज ने लखवी को सजा दिलाने की बात की. घर लौटे तो पता चला कि लखवी को सजा दिलाने में पाकिस्तान सहयोग नहीं देगा.

नवाज ने उफा में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया, लेकिन घर पहुंचे तो पता चला कि कश्मीर के बिना भारत से बात नहीं हो सकती. बेचारे वजीर-ए-आजम.

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