छत्तीसगढ़ में 60 फीसदी महिलायें सेनेटरी पैड से वंचित
रायपुर | संवाददाता: अक्षय कुमार की पैडमैन को भले ही डॉ. रमन सिंह पंचायतों में मुफ्त दिखा रहे हों लेकिन छत्तीसगढ़ में माहवारी के दिनों में पैड न उपयोग करने के भयावह आंकड़े चिंताजनक हैं. संकट ये है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हवाला दे कर सेनेटरी नैपकिन की कीमत में कोई कमी करने का इरादा सरकार में नजर नहीं आ रहा है. यहां तक कि इस साल सरकार ने सेनेटरी नैपकिन पर खर्च के लिये जितनी रक़म का प्रावधान किया है, वह भी हास्यास्पद है.
छत्तीसगढ़ सरकार, सेनेटरी नैपकिन पर लगाये जाने वाले कर को लेकर हमेशा से केंद्र सरकार की आलोचना करती रही है. यहां तक कि 2012-13 के बजट में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को वितरित की जाने वाली ”फ्री-डेज” सेनेटरी पर लागू 14 प्रतिशत वैट को समाप्त कर इसे कर मुक्त भी किया था. लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद राज्य में फिर से सेनेटरी नैपकिन पर 18 प्रतिशत कर थोप दिया गया है.
नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में सेनेटरी नैपकिन का उपयोग करने में महिलायें काफी पीछे हैं. देश में नंबर वन कहलाने वाले छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में केवल 39.4 प्रतिशत महिलायें ही सेनेटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं. ऐसे में राज्य की बड़ी आबादी तरह-तरह की संक्रामक बीमारियों से जूझती रहती है.
आंकड़े बताते हैं कि राज्य के शहरी इलाकों में भी 72.7 फीसदी महिलायें ही सेनेटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं. यानी शहरी आबादी की 28 फीसदी महिलायें भी संकोच और जागरुकता के कारण सेनेटरी नैपकिन के उपयोग से वंचित हैं.
रायपुर के देवपुरी इलाके की सुनीति देवांगन कहती हैं-“कई साल तो हम कपड़े में मिट्टी भर के उसे ही माहवारी वाले दिनों में उपयोग करते थे. अब कहीं जा कर फटे-पुराने कपड़ों को लपेट कर उसका उपयोग करते हैं.”
लेकिन सुनीति की तरह राज्य में माहवारी के दिनों के हालात बदल गये हों, ऐसा नहीं है. कुछ महीने पहले ही सरकार द्वारा आयोजित कुछ मेडिकल कैंप में यह जानकारी सामने आई थी कि राज्य के कांकेर जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में महिलायें अभी भी माहवारी के दिनों में किसी तरह के पैड के बजाय मिट्टी या गोबर का उपयोग करती हैं. कई महिलाओं ने सूखे पत्तों के उपयोग की भी जानकारी सामने लाई थी. इस तरह के कुछ हेल्थ कैंप में शामिल महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. मानसी गुलाटी के अनुसार महिलाओं को इस बात का पता ही नहीं था कि ऐसा करने से उन्हें कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री रमशिला साहु के पास अपने विभाग के तरह-तरह के आंकड़ें हैं. उनका दावा है कि राज्य में अलग-अलग स्व सहायता समूह को सेनेटरी नैपकिन बनाने के लिये ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है, महिलाओं में सेनेटरी पैड के उपयोग के लिये जागरुकता फैलाई जा रही है.
रमशिला साहु कहती हैं-“सरकार ने राज्य के दो हजार से अधिक शिक्षण संस्थाओं में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें लगवाई हैं और शुचिता योजना के तहत सेनेटरी नैपकिन के लिये 10 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान रखा गया है.”
लेकिन 2011 के जनगणना के आंकड़े देखें तो राज्य में 11 से 55 साल की महिला आबादी 84,62,336 है. इनमें इन सात सालों में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है. लेकिन 2011 के आंकड़ों को ही देखें तो इसके अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रत्येक महिला के लिये सेनेटरी नैपकिन के नाम केवल 11.81 रुपये खर्च करने का प्रावधान किया है. यानी हर महीने छत्तीसगढ़ सरकार प्रत्येक सेनेटरी नैपकिन उपयोग करने वाली महिलाओं के लिये एक रुपये से भी कम की रकम खर्च कर रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता सुमन परिहार कहती हैं-“छत्तीसगढ़ सरकार महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है. इसे आप महज इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि राज्य में कुपोषण खत्म करने के लिये सरकार ने प्रति महिला और बच्चे के लिये हर दिन 7 रुपये 45 पैसे का प्रावधान बजट में किया है. दुनिया में इतने पैसे में कहीं कुपोषण मिट सकता है? यही कारण है कि सुकमा और दंतेवाड़ा जैसे जिलों में कुपोषित लोगों की संख्या पिछले साल की तुलना में बढ़ गई है.”