छत्तीसगढ़

लाखों टन धान बारिश में, छत्तीसगढ़ सरकार ने नहीं माना हाईकोर्ट का आदेश

रायपुर | संवाददाता: समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान को ख़रीदी केंद्र से 30 दिन के भीतर उठाने के हाईकोर्ट के आदेश को राज्य सरकार ने ठेंगे पर रख दिया है. हालत ये है कि हाईकोर्ट के आदेश को 90 दिन हो गये लेकिन राज्य के कई धान खरीदी केंद्र में हज़ारों टन धान पड़ा हुआ है.

इस धान का उठाव नियमानुसार 28 फरवरी 2024 तक कर लेना था. इसके लिए आदेश भी जारी किया गया.

लेकिन हालत ये है कि राज्य के खाद्य मंत्री दयालदास बघेल के गृह ज़िले बेमेतरा में भी ख़रीदे गए पूरे धान का उठाव नहीं हो पाया है.

इसी तरह मुंगेली ज़िले में पिछले ही सप्ताह कलेक्टर राहुल देव ने धान उठाव नहीं कराने पर जिला विपणन अधिकारी को नोटिस देकर जवाब तलब किया है.

बारिश के कारण कई केंद्रों में पड़े हुए धान में अंकुरण आ गया है. कई समितियों में तो अंकुरित धान ने पौधे का रूप ले लिया है. कुछ केंद्रों में धान सड़ने लगा है.

देश में सर्वाधिक 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान ख़रीदने का वादा तो भाजपा सरकार ने ज़रुर निभाया, लेकिन जनता की गाढ़ी खून-पसीने की कमाई से ख़रीदे गए हजारों क्विंटल धान ख़रीदी केंद्रों में ही पड़ा रह गया.

प्रदेश की कई सहकारी समितियों ने धान का समय पर उठाव नहीं होने को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थी.

इसमें मार्कफेड पर लापरवाही के आरोप लगाते हुए समितियों ने करोड़ों रुपए का धान खराब होने की आशंका जताई थी.

याचिका में कहा गया था कि समय के साथ सूखापन के कारण धान के वजन में कमी हो सकती है और आडिट के समय आपत्ति हो सकती है, जिसके कारण धान खरीद केंद्रों के प्रभारियों या उनके प्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.

समिति प्रबंधकों ने याचिका में कहा था कि धान खरीदी के पूर्व मार्कफेड, अपेक्स बैंक और समिति के बीच एग्रीमेंट होता है. इसमें धान का उठाव खरीदी के 72 घंटे के अंदर करने का प्रावधान होता है.

केंद्रों में संपूर्ण धान का उठाव 28 फरवरी 2024 तक किया जाना था.

हाईकोर्ट का आदेश

इस याचिका पर 22 मार्च 2024 को जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की पीठ ने अपने फैसले में सरकार को निर्देश दिया था कि जितनी जल्दी हो सके और यथासंभव 30 दिनों के भीतर प्रदेश की समितियों में पड़े धान का उठाव हर हाल में किया जाए.

लेकिन हाईकोर्ट का आदेश धरा रह गया.

बारिश ने धान खरीदी केंद्र के खुले में रखी धान के लिए मुश्किल पैदा कर दी है. कई केंद्रों में कैप कवर के बावजूद बारिश की बौछार ने धान को गीला कर दिया है. कई इलाकों में लगातार हो रही बारिश के कारण धान के बोरे पानी से तर-बतर हो गए हैं.

अलग-अलग ज़िलों से आने वाली तस्वीरें बता रही हैं कि धान के उठाव को लेकर कम से कम सरकार गंभीर नहीं है. उदाहरण के लिए राज्य के खाद्य मंत्री के गृह ज़िले बेमेतरा की 37 समितियों में लगभग 30 हजार क्विंटल धान का उठाव नहीं हुआ है.

72 घंटों में उठाव का नियम

प्रदेश में इस साल 2023-24 में धान खरीदी का नया रिकार्ड बना है.

शासन द्वारा 130 लाख मिट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इससे ज्यादा 144.92 लाख मिट्रिक टन धान खरीदी की गई. जो पिछले वर्ष से 37.39 लाख अधिक था.

प्रदेश में इस वर्ष 1 नवंबर से 4 फरवरी तक धान खरीदी की गई.

खरीदी के बाद समितियों से धान का उठाव 72 घंटे के भीतर होना था, लेकिन धान खरीदी के चार महीने बीत जाने के बाद भी समितियों से धान का उठाव नहीं हो पाया.

खरीदी के समय भी जनवरी में बेमौसम बारिश हुई थी. उस समय भी समितियों में रख-रखाव और बारदाने के अभाव में धान भीगने की ख़बर राज्य के अलग-अलग इलाकों से आई थी.

प्रदेश के लगभग सभी जिलों में धान के बोरे भीगते नजर आए थे. कई ख़रीदी केंद्र में तो पानी भर जाने के कारण खरीदी बंद करना पड़ता था.

दुर्ग में शत-प्रतिशत उठाव

जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक दुर्ग के जिला अध्यक्ष जागेश्वर साहू का कहना है कि दुर्ग जिले की सभी समितियों से धान का शत-प्रतिशत उठाव हो गया है.

यहां फरवरी और मार्च माह में ही उठाव हो गया था, इसलिए यहां धान खराब नहीं हुआ है.

इस बार संग्रहण केन्द्र में भी धान नहीं रखा गया है. समितियों से ही राईस मिलर्स सीधे धान उठाकर ले गए थे.

खाद्य मंत्री के गृह ज़िले में 30 हजार क्विंटल जाम

राज्य के खाद्य मंत्री दयालदास बघेल के गृह ज़िले बेमेतरा की 37 समितियों में लगभग 30 हजार क्विंटल धान का उठाव नहीं हुआ है.

जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष जगमोहित साहू का कहना है कि यहां अधिकारियों पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं है. खाद्य मंत्री का गृह जिला होने के बाद भी विपणन और खाद्य अधिकारी धान उठाव को लेकर गंभीर नहीं हैं.

उन्होंने सीजी ख़बर से बातचीत में कहा कि परिवहन आदेश को महीनों बीत गये हैं, लेकिन ट्रांसपोर्टर उठाव करने के लिए तैयार नहीं हैं.

जगमोहित साहू ने कहा कि मुश्किल ये है कि धान उठाव नहीं होने का ठिकरा भी हमारे ही माथे पर फोड़ा जाता है. सूखत हो या धान खराब हो, समितियों को ही जुर्माने के लिए बाध्य किया जाता है.

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