धान के कटोरे में मिली कैंसर की संजीवनी
रायपुर| संवाददाता। छत्तीसगढ़ के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई ने मिलकर धान की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जिसके चावल के उपयोग से कई बड़ी बीमारियों से मुक्ति मिल सकती है.
वैज्ञानिकों ने धान की इस किस्म का नाम संजीवनी रखा है.
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा ने बताया कि धान की यह किस्म कई बड़ी बीमारियों को खत्म करने की शक्ति रखती है.
इसके चावल में फाइटोकेमिकल्स, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-कैंसर जैसे गुण मौजूद है.
इसके सेवन से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. खासकर यह स्तन कैंसर जैसी बीमारी की रोकथाम में बेहद मददगार है.
डॉ. शर्मा ने बताया कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक औषधीय धान की किस्म से ही शोध कर इस किस्म को तैयार किया गया है.
मात्र दस दिन सेवन करने से इसका असर दिखने लगता है.
इसका चावल अनेक औषधीय गुणों से परिपूर्ण है. इसके सेवन से शरीर में बृहत्भक्षकाणु (मैक्रोफेज) नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं की वृद्धि होती है.
इसका काम शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया और मृत कोशिकाओं को दूर करना है.
शोध से पता चला है कि संजीवनी चावल के उपयोग से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में व़ृद्धि होती है. यह चावल एंटी-वायरल एवं कैंसर रोग से बचाव में बेहद मददगार है.
यह शोध इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल के नेतृत्व में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई के सहयोग से शुरू किया गया.
शोध में संजीवनी चावल में मानव स्तन कैंसर, फेफड़ों के कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर कोशिकाओं के विरुद्ध शक्तिशाली अवरोधक मिले.
इस परिणाम की पुष्टि के लिए स्तन कैंसर कोशिका के साथ चूहों पर अध्ययन किया गया, जिसमें संजीवनी ब्राउन राइस के सेवन से चूहों में स्तन कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि रुक गई.
केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ और टाटा मेमोरियल इंस्टीट्यूट, मुंबई ने इस पर स्वतंत्र अध्ययन भी किया है. इसमें संजीवनी चावल में प्रारंभिक तौर पर मानव स्तन कैंसर कोशिका के विरुद्ध कैंसर अवरोधी गुण देखे गए हैं.
क्या हैं विशेषताएं
संजीवनी चावल के सेवन से शरीर में पाए जाने वाले मैक्रोफेजे नामक प्रतिरक्षा कोशिकाओं की वृद्धि होती है, जिसका कार्य शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया और मृत कोशिकाओं को दूर करना है.
शोध के अनुसार संजीवनी ब्राउन राइस के उपयोग से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में वृद्धि होती है. संजीवनी चावल एंटी-वायरल एवं कैंसर से बचाव में कारगर है.
संजीवनी चावल के सेवन से प्रतिरोधक क्षमता का विकास, ट्रैंस्क्रिप्शन फैक्टर एनआरएफ-दो के सक्रियण के माध्यम से होता है.
ट्रैंस्क्रिप्शन फैक्टर एनआरएफ-दो कई जींस की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है.
संजीवनी चावल में मेटाबोलाइट्स एनआरएफ2 सक्रियकर्ता का कार्य करते हुए ट्रैंस्क्रिप्शन फैक्टर एनआरएफ-दो को सक्रिय करते हैं.
ट्रैन्सिक्रप्शन फैक्टर एनआरएफ2 के सक्रिय होने पर शरीर में एंटीऑक्सीडेंट का उत्पादन होता है, जिससे प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली क्रिया में वृद्धि होती है.
इससे सूजन में कमी, बेहतर स्टेम सेल का पुनर्जनन और शरीर में विषाक्त पदार्थों का निकासन होता है.
6 साल के शोध का परिणाम
औषधीय गुणों के परिपूर्ण धान की इस किस्म को तैयार करने में वैज्ञानिकों को 6 साल लग गए.
शोध से पता चला कि इस किस्म में उच्च स्तर के फाइटोकेमिकल्स हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और कैंसररोधी हैं.
धान की इस किस्म को लेकर शोध 2017-18 में शुरू किया गया था, जो 2023 तक चला.इसके आगे का शोध अभी भी जारी है.
वैज्ञानिक अब यह पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं कि दूसरे एरिया यानी और कौन सी बीमारियों में यह किस्म फायदेमंद हो सकती है.
‘लायचा’ से तैयार हुई संजीवनी
संजीवनी का विकास छत्तीसगढ़ की पारंपरिक औषधीय धान की किस्म लायचा से किया गया है.
लायचा की कई किस्में हैं, जिनमें से बस्तर क्षेत्र में पाई जाने वाली किस्म का परीक्षण करने पर औषधीय गुण मिले.
इसके आधार पर वैज्ञानिकों ने विस्तृत विश्लेषण कर इस किस्म को तैयार किया है.
लायचा पारंपरिक रूप से बस्तर के क्षेत्र में उपयोग में लाई जाती है. इसके चावल का उपयोग अजन्मे बच्चों की त्वचा रोग रोकने के लिए किया जाता था. इसलिए इसे लायचा के नाम से जाना जाता है.
तीन उत्पाद किए तैयार
वैज्ञानिकों ने इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में संजीवनी चावल से तीन उत्पाद तैयार किए हैं. इनमें संजीवनी इंस्टेंट, संजीवनी मधु कल्क और संजीवनी राइस बार शामिल है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, दो चम्मच संजीवनी इंस्टेंट लें और इसे 30 मिलीलीटर गुनगुने पानी में डालकर 10-15 मिनट ढक कर रखें. फिर पानी को छानकर अलग कर लें.
चावल में दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट नाश्ते से पहले सेवन किया जा सकता है.
संजीवनी मधु कल्क, प्रसंस्कृत ब्राउन राइस पाउडर है. इसका स्वाद च्यवनप्राश की तरह होता है. इसे सुबह खाली पेट नाश्ते से पहले खाया जा सकता है.
वहीं संजीवनी राइस बार, चाकलेट की तरह होता है. इसे संजीवनी ब्राउन राइस के साथ अलसी, कद्दू के बीज, चना, सूरजमुखी के बीज और खजूर आदि से तैयार किया जाता है.
इसे दिन में तीन से चार बार खाया जा सकता है.
इन तीनों उत्पाद को दवा के रूप में लगातार 10-10 दिन लिया जा सकता है.
इसे लेने की शुरूआत किसी एक उत्पाद से की जा सकती है.
इसके 10 दिन सेवन के बाद कम से कम दो महीने का ब्रेक लेना जरूरी है. इसके बाद ही दूसरे उत्पाद या जिसका सेवन कर रहे थे, उसे दोबारा लेना शुरू कर सकते हैं.
तीनों उत्पादों का एक साथ सेवन नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से शरीर में इसकी मात्रा ज्यादा हो जाएगी, जिससे शरीर को नुकसान भी हो सकता है.
पकाने की जरूरत नहीं
शोधकर्ताओं के मुताबिक, संजीवनी चावल को पकाना नहीं चाहिए. यह काफी मुलायम होता है, जो गुनगुने पानी में डालकर रखने मात्र से पक जाता है.
खौलते पानी में पकाने से इसके औषधीय गुण नष्ट हो जाते हैं और प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है.
संजीवनी चावल का उपयोग आहार के रूप में नहीं करना चाहिए. इसे दवा के रूप में ही लिया जा सकता है.
बाजार में मिलने वाले सफेद चावल को भरपेट खाया जा सकता है, लेकिन संजीवनी चावल को ज्यादा खा लेने से शरीर को नुकसान हो सकता है.
धान से चावल निकालने के लिए मिलिंग कराई जाती है, लेकिन संजीवनी को मिलिंग की जरूरत नहीं पड़ती.
सामान्य धान से छिलका निकलने के बाद सफेद चावल मिलता है, लेकिन संजीवनी धान से छिलका निकलने के बाद ब्राउन राइस मिलता है.
मिलिंग कराने से उसकी ब्राउन परत हट जाती है और उसके औषधीय गुण नष्ट हो जाते हैं.
शुरुआती दौर में है उत्पादन
संजीवनी का उत्पादन अभी शुरुआती दौर में है.
वैज्ञानिक अभी तक इसके बीज की बढ़ोत्तरी में लगे हुए हैं.
ठीक मात्रा में बीज तैयार कर लेने के बाद इसके अधिक उत्पादन पर जोर दिया जाएगा.
इसके उत्पादन के लिए किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसके व्यावसाय़िक उत्पादन में अभी कुछ सालों का वक्त और लग सकता है.