नन्हें ओमरान का कसूर क्या है?
रायपुर | जेके कर: सीरिया के नन्हे ओमरान दाकनीश का कसूर क्या है? सीरिया के अलेप्पो शहर में हवाई हमलें में घायल पांच साल के ओमरान को जब मलबे से निकाला गया तो वह जिंदा था. उस वक्त ली गई उसकी तस्वीर पूरी दुनिया में वायरल हो गई है. ओमरान की वही तस्वीर मानव जाति से सवाल कर रही है कि मेरा कसूर क्या था?
सभ्यता के चरम पर पहुंच चुकने का दावा करने वाली व्यवस्था के पास इसका जवाब नहीं है. उसे तो तेल के खेल में, तेल के कुंयें पर कब्जा करने के लिये लड़ी जा रही लड़ाईयों से ही फुर्सत नहीं है.
केवल तेल ही क्यों पूरे दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों पर ऐन-केन-प्रकारेण कब्जा करने की हथियारबंद तथा हथियारविहीन कोशिशों का सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों, बूढ़ों तथा महिलाओं को ही उठाना पड़ता है. ओमरान भी उनमें से एक है.
इससे पहले सीरिया में चल रहे गृह युद्ध से बचने के लिये अपने परिवार के साथ समुद्र के रास्ते यूरोप जाते वक्त तीन साल के ऐलन कुर्दी की मौत हो गई थी. उस समय भी दुनिया कांप उठी थी. लेकिन क्या ऐलन कुर्दी के बाद एक और ओमरान दाकनीश को युद्ध की विभिषिका से बचाया जा सका है. जीं नहीं, जब तक युद्ध होते रहेंगे तब तक ऐसे ऐलन तथा ओमरान इसके शिकार होते रहेंगे.
केवल एलन तथा ओमरान ही क्यों उसके मां-बाप, भाई-बहन तथा परिवार के अन्य सदस्य जिन्हें इस युद्ध में केवल गंवाना ही है इसके शिकार होते रहेंगे.
जिस व्यवस्था के अपने चरम पर पहुंच जाने का दावा किया जा रहा है दरअसल, वह भयानक संकट में फंस गया है. उसके पास माल तो है परन्तु उसे खरीदने वाला खरीददार नहीं है. खरीददार इसलिये नहीं हैं क्योंकि उसके पास पैसा नहीं है. वर्ना, वह भी अपने परिवार के लिये खरीददारी करता.
अब, व्यवस्था ने बिना माल बेचे अपनी संपत्ति बढ़ाने का नुस्खा ढ़ूढ़ लिया है. मामला कुछ-कुछ ‘राम-राम जपना पराया माल अपना’ वाला है. अब मानवता को नहीं वरन् व्यवस्था को बचाये रखने के लिये पूरी दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों जिसमें जमीन के नीचे गड़े तेल, कोयला, खनिज तथा जमीन पर उगे जंगल पर कब्जा करके अपनी संपत्ति को बढ़ाया जा रहा है.
दुनिया की छोड़िये, हमारा देश तथा राज्य छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है. यह दिगर बात है कि यहां के किसी ऐलन या ओमरान की तस्वीरें वायरल नहीं होती हैं. रोज-बरोज छत्तीसगढ़ के सुदूर सरगुजा से हाथियों के उत्पात की खबरें आती रहती हैं. कभी बच्चे किसी तरह से अपनी जान बचा लेते हैं तो कभी हाथी मां-बेटी को मार डालते हैं.
हाथी, किसानों की फसल तथा धान को खाने गांव में आ टपकते हैं. इस दौरान जो कुछ भी उनके सामने आता है उसे तहस-नहस कर देते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि आखिरकार हाथी गांवों में क्यों आ जाते हैं. उसका सीधा सा जवाब है कि हाथी जिन जंगलों में रहते थे उन्हें काट डाला गया है. वहां की जमीन के नीचे बहुमूल्य कोयला दबा पड़ा है. कोयला दूसरी जमीनों के नीचे भी दबा पड़ा है परन्तु सबसे पहले वहां से निकाला जाता है जहां पर खर्च कम आता है.
कोयले से मिले सफेद और काले धन किसी धन्ना सेठ की तिजोरी में जाते हैं परन्तु प्रकृति को नाहक ही छेड़ने की सजा मिलती है गांव के गरीबों को. केवल सरगुजा के जंगल ही क्यों? बस्तर का हाल इससे अलग नहीं है. वहां पर प्राकृतिक संसाधन भरे पड़े हैं जिन पर धन्नासेठों की नजरे लगी हुई है. आज बस्तर में हर 50-60 आदिवासी पर 1 सुरक्षा बल का जवान तैनात है. ठीक उसी तरह से जिस तरह से कहा जाता है कि दुनिया में जहां कहीं पर भी तेल है, उसके उपर जमीन पर अमरीकी सैनिक किसी न किसी बहाने तैनात हैं.
नतीजा भुगतना पड़ता है उस जमीन पर रहने वाले बाशिंदों को जो पीढ़ियों से वहां रहते आये हैं. अब तो छत्तीसगढ़ में यह कहा जाने लगा है कि कहीं बसने से पहले देख लो कि उसके नीचे कोयला तो नहीं है अन्यथा आपकों वहां से खदेड़ दिया जायेगा.
क्या उनकी पीड़ा किसी ऐलन या ओमरान से कम हैं. उनका कसूर क्या है? इस पर गहन चिंतन करने की जरूरत है.
देखें ओमरान दाकनीश की उस तस्वीर को-