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कैलाश, मलाला को नोबेल पुरस्कार

ओस्लो | समाचार डेस्क: समाज की बेहतरी लिये आवाज़ उठाने वाले कैलाश तथा मलाला शुक्रवार को नोबेल पुरस्कार से नवाजें गये. भारत के कैलाश सत्यार्थी ने जहां बचपन बचाओं आंदोलन के माध्यम से बाल श्रम को रोकने के लिये सराहनीय काम किया वहीं, पाकिस्तान की मलाला युसुफजई ने लड़कियों के शिक्षा के लिये आवाज़ उठाई. हालांकि अपनी इस कोशिश में मलाला को गोलियों का भी सामना करना पड़ा परन्तु मलाला ने अपनी लड़ाई जारी रखी. भारत में बाल मजदूरी के खिलाफ काम करने वाले मशहूर कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान के कट्टपंथियों के सामने लड़कियों की शिक्षा के अधिकार को लेकर उठ खड़ी होने वाली किशोरी मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से वर्ष 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है.

नॉर्वेजियन नोबेल कमेटी ने शुक्रवार को यह घोषणा की. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 60 वर्षीय सत्यार्थी को राष्ट्र का गौरव बढ़ाने के लिए बधाई दी. सत्यार्थी ने देश के उन हजारों लाखों गरीबों की लड़ाई लड़ते रहने का वादा किया जिन्हें अपने बच्चों को खतरनाक परिस्थितियों में काम पर भेजने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

सत्यार्थी से पहले इस पुरस्कार से नवाजे गए भारतीय नागरिकों में रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में साहित्य पर, सीवी रमण को 1930 में भौतिकी में, मदर टेरेसा को 1979 में शांति और आमर्त्य सेन को 1988 में अर्थशास्त्र में मिले नोबल पुरस्कार शामिल हैं. इसके अलावा 2007 में इस पुरस्कार से नवाजी गई संस्था जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति की तरफ से राजेंद्र के. पचौरी ने नोबेल पुरस्कार हासिल किया था. पचौरी ने संस्था के प्रमुख की हैसियत से पुरस्कार ग्रहण किया था.

सत्यार्थी बचपन बचाओ आंदोलन के प्रमुख हैं और वर्षो से बाल श्रम उन्मूलन के लिए न केवल प्रचार किया बल्कि फैक्ट्रियों और मिठाई की दुकानों पर पर छापामारी कर अवैध रूप से रखे गए और बेहद कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किए गए बाल श्रमिकों को मुक्त कराया.

एक बयान जारी कर कहा गया है कि वर्ष 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों एवं युवाओं के दमन के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए दिया गया है.

कमेटी ने कहा, “लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए मलाला ने कई वर्षो तक संघर्ष किया है और उदाहरण पेश किया है कि बच्चे और युवा अपनी स्थिति में सुधार के लिए खुद कोशिश कर कामयाब हो सकते हैं.”

बयान के मुताबिक, “ऐसा उसने बेहद खतरनाक स्थितियों में किया है. वीरतापूर्वक संघर्ष के द्वारा वह लड़कियों की शिक्षा के अधिकार की प्रमुख प्रवक्ता बन गई.”

उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2012 में पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाके में स्कूल से घर जाते समय तालिबान के बंदूकधारियों ने उसे गोली मार दी थी. हमले के बाद उसे विशेष चिकित्सा के लिए ब्रिटेन भेजा गया था.

कमेटी के मुताबिक, एक हिंदू और एक मुस्लिम, एक हिंदुस्तानी और एक पाकिस्तानी के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों शिक्षा के अधिकार के लिए और आतंकवाद के खिलाफ समान संघर्ष में शामिल हुए.

कमेटी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूरी दुनिया में आज की तारीख में 16.8 करोड़ बाल मजदूर हैं. वर्ष 2000 में यह संख्या 7.8 करोड़ ज्यादा थी. दुनिया बाल मजदूरी को खत्म करने के नजदीक पहुंच चुकी है.

भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में पैदा हुए सत्यार्थी ने 26 वर्ष की उम्र में विद्युत अभियंता की नौकरी छोड़ दी थी और बाल मजदूरी के खिलाफ संघर्ष में कूद पड़े थे.

पुरस्कार की घोषणा के बाद सत्यार्थी ने बताया, “यह पुरस्कार उन सभी लोगों और कार्यकर्ताओं को मिला है जो बच्चों के लिए संघर्ष में जुटे हैं. मैं उम्मीद करता हूं कि इससे बाल श्रमिक के रूप में जीने वाले बच्चों के संघर्ष को ताकत मिलेगी.”

इधर, कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार की घोषणा के बाद उन्हें बधाई दी गई.

अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने पर हार्दिक बधाई दी है. मुख्यमंत्री ने बधाई संदेश में कहा है कि सत्यार्थी ने ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ के माध्यम से बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. बाल अधिकारों की रक्षा और उन्हें मजबूती से लागू कराने के लिए सत्यार्थी की प्रतिबद्घता अनुकरणीय है. सत्यार्थी ने बच्चों के शोषण के खिलाफ प्रेरक कार्य किया है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल
एमनेस्टी इंटरनेशल के महासचिव सलिल शेट्टी ने बयान जारी कर कहा, “सत्यार्थी और यूसुफजई के काम ने विश्वभर के लाखों बच्चों के संघर्ष को दिखाया है.” उन्होंने भारतीय कार्यकर्ता के संबंध में कहा, “सत्यार्थी ने अपनी जिंदगी भारत के लाखों बच्चों की मदद के लिए समर्पित किया है, जिन्हें दासता और बुरी स्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया था.”

शिवराज सिंह चौहान
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले मध्य प्रदेश निवासी कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुशी जाहिर करते हुए उन्हें बधाई दी है. चौहान ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत और विशेष रूप से मध्यप्रदेश के लिए आज गौरव का दिन है. विदिशा में जन्मे सत्यार्थी ने नोबेल पुरस्कार का वैश्विक सम्मान पाकर पूरे मध्यप्रदेश को गौरवान्वित किया है. चौहान ने कहा कि सत्यार्थी बच्चों के कल्याण के लिए पूर्ण रूप से समर्पित समाजसेवी हैं.

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
राष्ट्रपति ने एक बयान में कहा है, “इस पुरस्कार को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्या के समाधान में भारत के जीवंत नागर समाज के योगदान और देश में हर तरह के बाल श्रम उन्मूलन के राष्ट्रीय प्रयासों में सरकार के साथ मिलकर निभाई गई उनकी भूमिका को मिली मान्यता के रूप में देखा जाना चाहिए.”

डॉ. रमन सिंह
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विश्व शांति के नोबल पुरस्कार के लिए भारत के मध्यप्रदेश निवासी श्री कैलाश सत्यार्थी के चयन पर प्रसन्नता व्यक्त की है. उन्होंने बच्चों के अधिकारों के लिए काम कर रहे श्री सत्यार्थी को इस उपलब्धि के लिए बधाई और शुभकामनाएं दी है. डॉ. रमन सिंह ने पाकिस्तान की स्कूली छात्रा सुश्री मलाला युसूफजई को भी नोबल शांति पुरस्कार मिलने की घोषणा पर खुशी जतायी है और उन्हें बधाई दी है.

डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए नोबल पुरस्कार हेतु श्री कैलाश सत्यार्थी का चयन होने पर भारत का गौरव बढ़ा है. वहीं सुश्री मलाला युसूफ जई का चयन होने पर पूरी दुनिया में आतंकवाद के विरूद्ध काम करने वाले शांतिप्रिय लोगों और दुनिया भर में बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले लोगों तथा संगठनों को भी प्रसन्नता हो रही है.

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