कैश की किल्लत से जीवन कठिन- NYT
न्यूयॉर्क | समाचार डेस्क: प्रतिष्ठित अमरीकी अखबार का मानना है कि नोटबंदी से उपजी कैश की किल्लत ने भारतीयों के जीवन को कठिन बना दिया है. अमरीकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपने 9 जनवरी के संपादकीय में कहा है कि नोटबंदी के 2 माह बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था इसकी पीड़ा झेल रही है. अखबार ने नोटबंदी की आलोचना करते हुये इस बात का उल्लेख किया कि नोटबंदी के कारण मैनुफैक्चरिंग सेक्टर सिकुड़ रहा है, रियल स्टेट तथा कारों की बिक्री घट रही है, खेतों में काम करने वाले मजदूर-दुकानदार-जनता का कहना है कि उनकी जीवन कठिन हो गया है.
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अपने संपादकीय ‘The cost of india’s men made currency crisis’ में इस फैसले को मानव निर्मित संकट करार दिया और कहा कि ‘अत्याचारी तरीके से बनाये और लागू’ किये गये नोटबंदी के फैसले ने आम लोगों के जीवन को काफी कठिन बना दिया है. बैंकों के सामने पुराने नोट जमा कराने तथा नये नोट पाने के लिये लंबी-लंबी कतारें देखी गई क्योंकि सरकार पहले से पर्याप्त मात्रा में नये नोट नहीं छाप सकी थी. नगदी की कमी छोटे शहरों तथा ग्रामीण इलाकों में ज्यादा देखी गई.
संपादकीय में टिप्पणी की गई है कि कोई भी अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी मात्रा में नगदी के बिना कठिनाई में पड़ सकती है खासकर, भारत जैसे देश जहां 98 फीसदी लेनदेन नगदी में ही होता है. इसी के साथ ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने ब्लूमबर्ग के ऑकड़ों का हवाला दिया है. जिसमें बताया गया है कि भारत में 98 फीसदी लेनदेन नगदी से होता है जिसका मूल्य लेनदेन का 68 फीसदी होता है. जबकि मैक्सिको में यह 96 फीसदी, दक्षिण अप्रीका में 94 फीसदी, चीन में 90 फीसदी, जापान में 86 फीसदी, ब्राजील में 85 फीसदी, अमरीका में 55 फीसदी तथा इग्लैंड में 48 फीसदी है.
नोटबंदी से भ्रष्ट्राचार कम होने के दावों पर संपादकीय में कहा गया है कि इस बारें में बहुत कम सबूत हैं कि नोटबंदी से भ्रष्ट्राचार पर लगाम लगाया जा सका है और भविष्य में लगाया जा सकेगा. इसमें भारतीय खबरों का हवाला देते हुये कहा गया है भारतीयों ने ज्यादातर पुराने नोट बैंकों में जमा कराने में सफलता पा ली है.