भाजपा के लिए मुसीबत बने राघवजी
भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी गैरों को गले लगाने में जुटी है, वही अपने से गैर हो चुके राज्य के पूर्व मंत्री राघवजी को लेकर पार्टी कुछ भी तय नहीं कर पा रही है. वहीं राघवजी के तेवर पार्टी को मुसीबत का संदेश दे रहे हैं.
राज्य में इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, भाजपा हर हाल में इस चुनाव में जीत दर्ज कर हैट्रिक बनाना चाहती है. यही कारण है कि सत्ता और संगठन से जुड़े लोग असंतुष्टों को मनाने में लगे हैं और विरोधी दल के बागियों को भी गले लगाने में हिचक नहीं दिखाई जा रही है.
बीते डेढ़ माह के घटनाक्रम पर गौर करें तो एक बात तो साफ हो जाती है कि भाजपा के लिए चुनाव में जीत पहला लक्ष्य है और इसके लिए वह किसी भी तरह का समझौता करने में पीछे नहीं हैं. यही कारण है कि कांग्रेस में बगावत का झंडा बुलंद करने वाले विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को पार्टी में शामिल करने में जरा भी देरी नहीं की गई.
बात यहीं नहीं रुकी, मुरैना से बहुजन समाज पार्टी के विधायक परशुराम मुद्गल के लिए पार्टी के दरवाजे खोले गए और फिर निर्दलीय विधायक मानवेंद्र सिंह को सारे गिले शिकवे भुलाकर गले लगाया गया. पिछले दिनों युवतियों पर टिप्पणी करने पर मंत्री पद से हटाए गए विजय शाह को एक बार फिर मंत्री बनाया गया है.
एक तरफ जहां विरोधी दलों के लोगों के लिए पार्टी के दरवाजे खोले जा रहे हैं वहीं अपने घरेलू नौकर से अप्राकृतिक कृत्य के आरोप में पहले मंत्री पद और फिर पार्टी से निकाले गए राघवजी के मामले ने पार्टी को उलझन में डाल दिया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पार्टी का एक धड़ा अब भी राघवजी के साथ है.
लगभग 38 दिन तक जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा हुए राघवजी ने अपने निष्कासन को पार्टी संविधान के खिलाफ करार देते हुए अपनी बात उचित फोरम पर रखने की घोषणा की है. वे आगे क्या कदम उठाएंगे इसका खुलासा नहीं कर रहे हैं, मगर अपने खिलाफ साजिश रचने का आरोप जरूर लगा रहे हैं.
राघवजी विदिशा से विधायक हैं, यह क्षेत्र लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. राघवजी पांच दशक से राजनीति में हैं और उनका इस क्षेत्र में प्रभाव भी है. इतना ही नहीं उनकी बेटी विदिशा की नगर पालिका अध्यक्ष है. वहीं राघवजी पर समर्थकों का चुनाव लड़ने का दवाब भी है.
भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक-एक सीट पर गणित बैठा रही है, वहीं उसके कभी कद्दावर नेता रहे राघवजी के तेवर मुसीबत का सबब बन सकते हैं.