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माओवादियों ने फिर दी सफाई

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रति महेन्द्र कर्मा शुरू से ही कट्टर दुश्मन रहा. ठेठ सामंती परिवार में पैदा होना और बड़े व्यापारी/पूंजीपति वर्गों के प्रतिनिधि के रूप में ‘बड़ा’ होना ही इसका सहज कारण है. क्रांतिकारी आंदोलन के खिलाफ 1990-91 में पहला जन जागरण अभियान चलाया गया था. इसमें संशोधनवादी भाकपा ने सक्रिय रूप से भाग लिया था. इस प्रति-क्रांतिकारी व जन विरोधी अभियान में कर्मा और उसके कई रिश्तेदारों ने, जो भूस्वामी थे, सक्रिय भाग लिया था. 1997-98 के दूसरे जन जागरण अभियान की महेन्द्र कर्मा ने खुद अगुवाई की थी.

उसके गृहग्राम फरसपाल और उसके आसपास के गांवों में शुरू हुआ यह अभियान भैरमगढ़ और कुटरू इलाकों में भी पहुंच चुका था. सैकड़ों लोगों को पकड़कर, मारपीट करके जेल भेज दिया गया था. लूटपाट और घरों में आग लगाने की घटनाएं हुईं. महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. हालांकि हमारी पार्टी और जन संगठनों के नेतृत्व में जनता ने एकजुट होकर इस हमले का जोरदार मुकाबला किया. इससे कम समय के अंदर ही वह अभियान परास्त हो गया था.

उसके बाद क्रांतिकारी आंदोलन और ज्यादा संगठित हो गया. कई इलाकों में सामंतवाद-विरोधी संघर्ष तेज हो गए. इसके तहत हुए जन प्रतिरोध में महेन्द्र कर्मा के सगे भाई जमींदार पोदिया पटेल समेत कुछ नजदीकी रिश्तेदार मारे गए थे. गांव-गांव में सामंती ताकतों व दुष्ट मुखियाओं की सत्ता को उखाड़ फेंककर क्रांतिकारी जन राजसत्ता के अंगों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई. गांवों मंल जन विरोधी व सामंती तत्वों से जमीनें छीनकर जनता में बंटवारा करना, अतीत में जारी कबीले के मुखियाओं द्वारा नाजायज जुर्माने वसूले जाने की पद्धति को बंद कर जनता का जनवादी शासन को शुरू करना कट्टर सामंती अहंकार से सराबोर महेन्द्र कर्मा को बिल्कुल रास नहीं आया.

महिलाओं की जबरिया शादियां करवाने पर रोक, बहुपत्नीत्व आदि रिवाजों को हतोत्साहित करना आदि प्रगतिशील बदलाव भी सामंती ताकतों के गले नहीं उतरे. उसी समय बस्तर क्षेत्र में भारी परियोजनाएं शुरू कर यहां की जनता को बड़े पैमाने पर विस्थापित कर यहां की प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन करने की मंशा से उतरे टाटा, एस्सार जैसे कार्पोरेट घरानों के लिए भी यहां का विकासशील क्रांतिकारी आंदोलन आंखों की किरकिरी बना था. इसलिए उन्होंने सहज ही महेन्द्र कर्मा जैसी प्रतिक्रांतिकारी ताकतों से सांठगांठ कर ली. उन्हें करोड़ों रुपए की दलाली खिला दी ताकि अपनी मनमानी लूटखसोट के लिए माकूल माहौल बनाया जा सके.

दूसरी ओर, देश भर में सच्चे क्रांतिकारी संगठनों के बीच हुए विलय के बाद एक संगठित पार्टी के रूप में भाकपा (माओवादी) के आविर्भाव की पृष्ठभूमि में उसे कुचल देने के लिए शोषक शासक वर्गों ने अपने साम्राज्यवादी आकाओं के इशारों पर प्रतिक्रांतिकारी हमला तेज कर दिया. अपनी एलआईसी नीति के तहत महेन्द्र कर्मा जैसी कट्टर प्रतिक्रांतिकारी ताकतों को आगे करते हुए एक फासीवादी हमले की साजिश रचाई. इस तरह, कांग्रेस और भाजपा की सांठगांठ से एक बर्बरतापूर्ण हमला शुरू कर दिया गया जिसे ‘सलवा जुडुम’ नाम दिया गया.

रमन सिंह और महेन्द्र कर्मा के बीच कितना बढ़िया तालमेल रहा इसे समझने के लिए एक तथ्य काफी है कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रीमण्डल का ‘सोलहवां मंत्री’ कहा जाने लगा था. सोयम मूका, रामभुवन कुशवाहा, अजयसिंह, विक्रम मण्डावी, गन्नू पटेल, मधुकरराव, गोटा चिन्ना, आदि महेन्द्र कर्मा के करीबी और रिश्तेदार सलवा जुडूम के अहम नेता बनकर उभरे थे. साथ ही, उसके बेटे और अन्य करीबी रिश्तेदार सरपंच पद से लेकर जिला पंचायत तक के सभी स्थानीय पदों पर कब्जा करके गुण्डागर्दी के बल पर राजनीति करते हुए, सरकारी पैसों का बड़े पैमाने पर गबन करते हुए कार्पोरेट कम्पनियों और बड़े व्यापारियों का हित पोषण कर रहे हैं.

और सलवा जुडूम ने बस्तर के जन जीवन में जो तबाही मचाई और जो क्रूरता बरती उसकी तुलना में इतिहास में बहुत कम उदाहरण मिलेंगे. कुल एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्या कर, 640 गांवों को कब्रगाह में तब्दील कर, हजारों घरों को लूट कर, मुर्गों, बकरों, सुअरों आदि को खाकर और लूटकर, दो लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित कर, 50 हजार से ज्यादा लोगों को बलपूर्वक ‘राहत’ शिविरों में घसीटकर जनता के लिए सलवा जुडूम अभिशाप बना था.

सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. कई महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. कई जगहों पर सामूहिक हत्याकाण्ड किए गए. हत्या के 500, बलात्कार के 99 और घर जलाने के 103 मामले सर्वोच्च अदालत में लम्बित हैं तो यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन अपराधों की वास्तविक संख्या कितनी ज्यादा होगी. सलवा जुडूम के गुण्डा गिरोहों, खासकर पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों, नगा और मिज़ो बटालियनों ने जनता पर जो कहर बरपाया और जो जुल्म किए उसकी कोई सीमा नहीं रही. ऐसी कई घटनाएं हुईं जिसमें लोगों को निर्ममता के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में काटकर नदियों में फेंक दिया गया. चेरली, कोत्रापाल, मनकेली, कर्रेमरका, मोसला, मुण्डेर, पदेड़ा, परालनार, पूंबाड़, गगनपल्ली… ऐसे कई गांवों में लोगों की सामूहिक रूप से हत्याएं की गईं. सैकड़ों आदिवासी युवकों को एसपीओ बनाकर उन्हें कट्टर अपराधियों में तब्दील कर दिया गया.

महेन्द्र कर्मा ने खुद कई गांवों में सभाओं और पदयात्राओं के नाम से हमलों की अगुवाई की. कई महिलाओं पर अपने पशु बलों को उकसाकर बलात्कार करवाने की दरिंदगी भरे उसके इतिहास को कोई भुला नहीं सकता. जो गांव समर्पण नहीं करता उसे जलाकर राख कर देने, जो पकड़ में आता है उसे अमानवीय यातनाएं देने और हत्या कर देने की कई घटनाओं में कर्मा ने खुद भाग लिया था. इस तरह महेन्द्र कर्मा बस्तर की जनता के दिलोदिमाग में एक ****** और बड़े पूंजीपतियों के वफादार दलाल के रूप में अंकित हुआ था. पूरे बस्तर में जनता कई सालों से हमारी पार्टी और पीएलजीए से मांग करती रही कि उसे दण्डित किया जाए.

कई लोग उसका सफाया करने में सक्रिय सहयोग देने के लिए स्वैच्छिक रूप से आगे आए थे. कुछ कोशिशें हुई भी थीं लेकिन छोटी-छोटी गलतियों और अन्य कारणों से वह बचता रहा. आखिरकार, कल, जनता के सक्रिय सहयोग से किए गए इस बहादुराना हमले में हमारी पीएलजीए ने महेन्द्र कर्मा का सफाया कर बस्तर की जनता को बेहद राहत पहुंचाई.

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