छत्तीसगढ़ में मलेरिया के जीन्स में बदलाव, दवाएं बेअसर
नई दिल्ली | संवाददाता: मलेरिया फैलाने वाले परजीवी में दवाओं के प्रति बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता इस खतरनाक बीमारी के उन्मूलन में सबसे बड़ी बाधा है. भारतीय शोधकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्र बैकुंठपुर में मलेरिया परजीवी के जीन्स में होने वाले रूपांतरणों का पता लगाया है, जो दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं.
शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में मलेरिया के उपचार में उपयोग होने वाली दवाओं में शामिल क्लोरोक्वीन के प्रति उच्च प्रतिरोधी जीनोटाइप और सल्फाडॉक्सीन-पाइरीमेथमीन के प्रति मध्यम एवं उभरते प्रतिरोधी जीनोटाइप पाए गए हैं. एक अच्छी खबर यह है कि आर्टीमिसिनिन आधारित थैरेपी के प्रति मलेरिया के परजीवी जीन्स में रूपांतरण नहीं पाया गया है.
जनजातीय बहुल छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर जिले के जनकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में यह अध्ययन किया गया है. मलेरिया परजीवी प्लैजीमोडियम फैल्सीपैरम के छह जीन्स (पीएफसीआरटी, एमडीआर1, डीएचएफआर, डीएचपीएस, एटीपीएएसई6 और के-13 प्रोपेलर) में होने वाले रूपांतरण का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं. जबलपुर स्थित राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया है.
अध्ययन के दौरान 6,718 लोगों की स्क्रीनिंग गई थी, जिसमें से 352 मरीज मलेरिया से ग्रस्त मरीज पाए गए. इनमें 271 मरीज मलेरिया के परजीवी प्लैजीमोडियम फैल्सीपैरम और 79 मरीज प्लैजीमोडियम विवैक्स से संक्रमित थे. जबकि दो मरीज इन दोनों परजीवियों से संक्रमित पाए गए. प्लैजीमोडियम फैल्सीपैरम से संक्रमित मरीजों में से पॉलिमेरेज चेन रिएक्शन के लिए पॉजिटिव पाए गए 180 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया गया है.
अध्ययनकर्ताओं की टीम में शामिल प्रियंका पटेल ने बताया कि “जिन छह जीन्स का हमने अध्ययन किया है, वे मलेरिया के उपचार मे उपयोग होने वाली दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. हम देखना चाहते थे कि जनजातीय क्षेत्र जैसे दूरदराज के पिछड़े इलाके, जहां मलेरिया के कारण मौतों के मामले अधिक पाए जाते हैं, वहां इसके परजीवी में किस हद तक रूपांतरण हुआ है और उपचार के लिए उपयोग होने वाली दवाएं उन पर कितना असर करती हैं.”
वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. प्रवीण के. भारती के अनुसार “मलेरिया परजीवी में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने के कारण इसके उपचार में उपयोग होने वाली दवाएं बेअसर होने लगती हैं. अध्ययन में मलेरिया परजीवी के जीन्स में हुए रूपांतरण के स्तर का पता लगाया गया है. हमें ऐसे तथ्य मिले हैं, जो इस बीमारी के उपचार के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने में मददगार साबित हो सकते हैं.”
मलेरिया प्रोटोजोआ समूह के परजीवी प्लैजिमोडियम फैल्सीपैरम द्वारा फैलता है. प्लैजिमोडियम फैल्सीपैरम को मलेरिया के अधिकतर मामलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. केवल चार प्रकार के प्लैजिमोडियम परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते है, जिनमें प्लैजिमोडियम फैल्सीपैरम तथा प्लैजिमोडियम विवैक्स सर्वाधिक खतरनाक माने जाते हैं. इसके अलावा प्लैजिमोडियम ओवेल तथा प्लैजिमोडियम मलेरिये भी इन्सान को प्रभावित करते हैं.
मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनफ्लीज मच्छर है. इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं और उनकी संख्या बढ़ने लगती है, जिससे रक्तहीनता (एनीमिया) के लक्षण उभरने लगते हैं. गंभीर मामलों में रोगी की मौत तक हो जाती है. दवा के अभाव या गलत इलाज से भी स्थिति बिगड़ सकती है.
राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के अलावा अध्ययन में कतर स्थित वील कॉर्नेल मेडिसिन कॉलेज, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, कतर फाउंडेशन, छत्तीसगढ़ के जनकपुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, डिब्रूगढ़ स्थित पूर्वोत्तर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च और महाराष्ट्र के सिंबॉयसिस स्कूल ऑफ बायोमेडिकल सांइसेज के शोधकर्ता शामिल थे.
अध्ययनकर्ताओं की टीम में प्रियंका पटेल और प्रवीन के. भारती के अतिरिक्त देवेंद्र बंसल, नाजिया अली, राजीव रमन, प्रद्युम्न महापात्रा, राकेश सहगल, जगदीश महंत, अली एस. सुल्तान और नीरू सिंह शामिल थे. अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स के ताजा अंक में प्रकाशित किए गए हैं.