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नवाबों के शहर में ‘डब्बावाले’

लखनऊ | एजेंसी: उत्तर प्रदेश की राजधानी के प्रबंधन छात्र, कारोबारी और अन्य संस्थानों के प्रतिनिधि इस शनिवार को मुंबई के मशहूर ‘डब्बावालों’ के कारोबार का गुर सीखेंगे.

डब्बावाले मुंबई में रोज दफ्तर जाने वाले हजारों लोगों को लंच बॉक्स यानी डब्बे में भोजन की आपूर्ति करते हैं और अपने कारोबार को बेहतरीन तरीके से अंजाम देने के लिए यह पूरी दुनिया में विख्यात हो चुके हैं.

भारतीय उद्योग परिसंघ लखनऊ चैप्टर का यंग इंडियन चैप्टर यहां इस परिचर्चा सत्र का आयोजन कर रहा है, जिसमें डब्बावालों के कारोबार के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी.

डब्बा कारोबार की शुरुआत 1890 में हुई थी और 1956 से यह कारोबार एक चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत चल रहा है. इसके करीब 5,000 कर्मी रोज दो लाख लोगों को डब्बे की आपूर्ति करते हैं.

इस सत्र का औचित्य स्थापित करते हुए वाईआई लखनऊ के अध्यक्ष गौरव प्रकाश ने कहा, “इस आयोजन का विचार इसलिए आया क्योंकि हम इस बात से खासे प्रभावित हैं कि एक औसत डब्बावाला आठवीं तक पढ़ा होता है, फिर भी कभी भी बारिश या अन्य मौसमी वजहों से उनकी सेवा बाधित नहीं हुई. गत 120 से अधिक वर्षो में उन्होंने कभी भी हड़ताल नहीं की.”

उन्होंने कहा कि कारोबार का विस्तार करने वाले लोगों को इस परिचर्चा से कुछ सीखने का मौका मिलेगा.

प्रकाश ने कहा कि डब्बावालों की सफलता की गाथा दुनियाभर में कई मंचों पर दुहराई जा चुकी है, तो लखनऊ में क्यों नहीं?

मनोबल बढ़ाने वाले वक्ता पवन गिरधारी अग्रवाल इस सत्र को संबोधित करेंगे. वह डब्बावालों से जुड़े हुए हैं. उन्होंने ‘मुंबई में डब्बावालों के लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रंखला प्रबंधन पर एक अध्ययन’ पर पीएचडी की है.

अग्रवाल कमलाबाई शैक्षिक और चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत मुंबई के डब्बावालों के लिए एजुकेशन सेंटर चलाते हैं. उन्हें डब्बावालों की कार्यप्रणाली तथा जीवन की गहन जानकारी है.

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