जब नेहरू को लाल श्याम शाह के साथ जाना पड़ा था
नई दिल्ली | संवाददाता: मध्य भारत में 1950-60 के दशक में एक ऐसा आदिवासी नेता भी हुआ था, जिसकी वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को आदिवासियों से मिलने के लिए उनके मंच तक आना पड़ा था.
यह वाकया करीब 58 वर्ष पुराना है, जब छत्तीसगढ़ के रायपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सम्मेलन आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में नेहरू और कांग्रेस अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी के साथ ही पार्टी के तमाम दिग्गज नेता मौजूद थे. उसी दौरान आदिवासी सेवा मंडल के अध्यक्ष लाल श्याम शाह तकरीबन तीस हजार आदिवासियों के साथ पदयात्रा करते रायपुर पहुंचे थे. लाल श्याम शाह आदिवासियों के मुद्दों पर नेहरू से मिलना चाहते थे. 27-29 अक्टूबर 1960 के दौरान हुए कांग्रेस अधिवेशन के मौके पर इतन सारे आदिवासियों को देखकर प्रशासन भी हैरान रह गया था.
आखिरकार नेहरू को लाल श्याम शाह के साथ आदिवासियों के मंच तक जाकर उनकी बात सुननी पड़ी थी. वरिष्ठ पत्रकार और अमर उजाला दिल्ली में स्थानीय संपादक सुदीप ठाकुर की इस आदिवासी नेता के जीवन पर केंद्रित किताब, लाल श्याम शाह, एक आदिवासी की कहानी में दर्ज है. इस किताब का 12 जनवरी को विश्व पुस्तक मेला दिल्ली में लोकार्पण होगा. मूलतः छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के निवासी सुदीप ठाकुर ने लंबे समय तक रायपुर और बस्तर में काम किया है. वे देशबंधु पत्र समूह के संदर्भ ग्रंथ संदर्भ मध्यप्रदेश के संपादक मंडल के सदस्य, अक्षर पर्व के संस्थापक संपादक और बस्तर में हाईवे चैनल के संपादक भी रहे हैं. उन्होंने दैनिक भास्कर और इंडिया टुडे में वरिष्ठ पदों पर काम किया है.
लाल श्याम शाह मूलतः राजनांदगांव जिले के मोहला पानाबरस आदिवासी रियासत के जमींदार थे. 1950-80 के दौरान उनका मध्य भारत में आदिवासी क्षेत्रों में खासा प्रभाव था. वह पुराने मध्य प्रदेश में दो बार विधायक और 1960 में चांदा (चंद्रपुर) से सांसद भी चुने गए थे. दलगत राजनीति से इतर जंगलों की अवैध कटाई और आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष करने वाले लाल श्याम शाह का 1988 में निधन हो गया था. उनकी परवरिश राजकुमारों की तरह हुई थी, लेकिन उन्होंने आदिवासियों के बीच रहकर बहुत सादगी और गांधीवादी तरीके से ही जीवन बिताया. सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे से भी उनकी न केवल करीबी थी, बल्कि वह उनके ट्रस्ट के सदस्य भी थे.
यह किताब बताती है कि जब 1960 में वरोड़ा (चंद्रपुर) में बाबा आमटे का राजनीतिक कारणों से विरोध किया जा रहा था, तब लाल श्याम शाह ने उन्हें छत्तीसगढ़ चलकर आश्रम बनाने की पेशकश की थी.
जाने माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इस किताब की प्रस्तावना में लिखा है कि लाल श्याम शाह आदिवासियों की अंतरात्मा और आवाज थे और उन्होंने अपने लिए राजनीतिक शक्ति अर्जित करने के लिए नहीं, बल्कि आदिवासियों के स्वाभिमान के लिए संघर्ष किया.