Social Media

क्यों न पहनें औरतें गहने

असद ज़ैदी | फेसबुक

क्यों न पहनें औरतें गहने

इस तरह हो सकती है एक कविता शुरू
सोचा भूल न जाऊं तो लिख लिया
एक काग़ज़ के पुरज़े पर
जो बाजी के यहां छूट गया
फिर मैं भी उसे भूल गया।

काग़ज़ के पुरज़े जीते हैं
अराजक और रहस्यमय जीवन।

एक बरस बाद उसने पूछा
“क्या लिखने वाले थे तुम?”

बाजी कुछ बीमार थी, मैं उसका
हाथ थामे बैठा था, वह
आंखें बंद किए लेटी थी।

“कि किसलिए गहने नहीं पहनने चाहिएं औरतों को?
या कि उनकी मर्ज़ी है… बेशक पहनें?”

मैं झेंप गया, कहा उससे :
“तंग न करो बाजी!”

ओ बे-रहम बहना, पूछकर
तूने सारी बात बिगाड़ दी,
मेरे दिमाग़ में निबंध नहीं था,
कविता थी कविता!

अब खो गई हमेशा के लिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!