‘द अन्सीन इंदिरा गांधी’
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: इंदिरा गांधी के निजी चिकित्सक ने उन पर अपने संस्मरण लिका है. वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू होने के एक दिन बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बेहद शांत नजर आ रही थीं और उन्हें उस दिन अपने बिस्तर की चादर भी खुद ही बदलते देखा गया. इसका खुलासा के.पी. माथुर की नई किताब ‘द अन्सीन इंदिरा गांधी’ में किया गया है, जिसका प्रकाशन ‘कोणार्क पब्लिशर्स’ ने किया है. इंदिरा के निजी चिकित्सक रह चुके माथुर ने अपनी इस किताब में खुलासा किया है कि युद्ध शुरू होने के अगले दिन वह अपने घर में खुद ही ‘डस्टिंग’ करती भी नजर आईं, जो संभवत: वह अपना एक दिन पहले का तनाव दूर करने के लिए कर रही थीं.
पुस्तक में माथुर ने लिखा है, “मैंने प्रधानमंत्री को खुद ही अपने दीवान की चादर बदलते देखा. यह बांग्लादेश युद्ध शुरू होने के एक दिन बाद का वाकया है. इससे पहले की रात उन्होंने देर तक काम किया था.”
बकौल माथुर, “सुबह जब मैं उनसे मिलने गया तो मैंने देखा कि वह घर में डस्टिंग भी खुद ही कर रही थीं. शायद इससे उन्हें पिछली रात का तनाव दूर करने में मदद मिल रही थी.”
इस 151 पृष्ठों की पुस्तक में सफदरजंग अस्पताल के पूर्व चिकित्सक ने इंदिरा गांधी के साथ अपनी 20 साल की संगति के दौरान के कई वाकयों का जिक्र किया है. वह इंदिरा की 1984 में हत्या तक उनसे जुड़े रहे.
माथुर के अनुसार, पाकिस्तान ने तीन दिसंबर, 1971 को जब भारत पर आक्रमण कर दिया था, उस वक्त इंदिरा कोलकाता में थीं. वह तुरंत दिल्ली लौटीं.
उन्होंने लिखा, “विमान में वह शांत थीं, हालांकि उनके दिमाग में निश्चित तौर पर युद्ध की रणनीति और आगे के कदमों पर सोच-विचार चल रहा था.”
हालांकि यही इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनने के शुरुआती वर्षो में बेहद परेशान रहा करती थीं.
माथुर के अनुसार, “प्रधानमंत्री बनने के बाद एक या दो साल तक वह अक्सर तनाव में और परेशान रहती थीं. खुद को लेकर वह आश्वस्त नहीं थीं. उन्हें कोई सलाह देने वाला नहीं था और उनके मित्र भी नहीं थे..”
उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री बनने के बाद के शुरुआती दिनों में उन्हें पेट की समस्या भी रहती थी, जो मेरे ख्याल से उनके परेशान या तनाव में रहने का नतीजा था.”
माथुर ने पुस्तक में इंदिरा को ‘एक खुशमिजाज, दूसरों की परवाह व मदद करने वाली इंसान’ बताया है, जो अपने आवास के नौकरों से भी सही तरीके से बात करती थीं और सभी को उनका नाम लेकर बुलाती थीं.
बकौल माथुर, इंदिरा बेहद साधारण जीवन जीती थीं, जिसमें अमीरी का कोई दिखावा नहीं होता था. मितव्ययिता उनका मूल सिद्धांत था. उन्होंने तीन मूर्ति हाउस जाने से मना कर दिया था और 1968 में राजीव गांधी की सोनिया से शादी के बाद ही अपने आवास में दो अन्य कमरों को जोड़ा.
इंदिरा जब कभी कहीं घूमने जाया करती थीं तो कनाट प्लेस के साउथ इंडियन कॉफी हाउस से नाश्ते के ऑर्डर दिए जाते थे.
माथुर ने अपनी किताब में लिखा है, “राजीव-सोनिया की शादी के बाद प्रधानमंत्री इस बात को लेकर बहुत उत्सुक थीं कि सोनिया देश के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को जल्द से जल्द सीख लें. वह घर में किसी से भी बात करते समय सोनिया को ‘बहुरानी’ कहकर ही बुलाती थीं.”
इंदिरा को ‘एक प्यारी मां, दादी मां और समझदार तथा हस्तक्षेप न करने वाली सास’ करार देते हुए माथुर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि वह सोनिया को बहुत जल्द पसंद करने लग गईं और सोनिया ने भी बहुत जल्द घर की जिम्मेदारी संभाल ली.
बकौल माथुर, इंदिरा शनिवार को अक्सर आराम के मूड में होती थीं, जबकि रविवार और अन्य छुट्टियों के दिन वह किताबें पढ़ने को तवज्जो देती थीं. इनमें भी उनकी पसंद महान लोगों की जीवनियां होती थीं.
वह शरीर व मस्तिष्क से सबंधित विषयों की किताबें पढ़ना भी पसंद करती थीं और उन्हें वर्ग-पहेली (क्रॉसवर्ड पजल्स) हल करना भी बहुत पसंद था.
बकौल माथुर, “दोपहर के भोजन के बाद वह कभी-कभी कार्ड खेलना पसंद करती थीं. उनका पसंदीदा कार्ड गेम ‘काली मैम’ था.”
उन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि 1977 के आम चुनाव में हार को इंदिरा ने बेहद शिष्टता के साथ स्वीकार किया.
माथुर के अनुसार, “चुनाव हारने के बाद वह काफी हद तक अकेलापन महसूस करने लगीं. उनके पास करने के लिए कुछ नहीं था. कोई फाइल उनके पास नहीं आती थी..”
“उनके पास कोई दफ्तर, कोई स्टाफ कार या उनकी अपनी कार भी नहीं थी. उन्हें आवंटित स्टाफ कार उनसे ले ली गई थी. उनके पास मदद के लिए कोई टेलीफोन ऑपरेटर भी नहीं था और वह अपने मित्रों के टेलीफोन नंबर भी भूल गई थीं.”
पुस्तक में इंदिरा को धार्मिक व्यक्ति के साथ-साथ कुछ मामलों में अंधविश्वासी भी बताया गया है. इसके अनुसार, वह आध्यात्मिक गुरु आनंदमयी मां से प्राप्त रुद्राक्ष की माला पहनती थीं.
माथुर ने लिखा है, “मैं नहीं जानता कि प्रधानमंत्री रोजाना पूजा करती थीं या नहीं, लेकिन उन्होंने एक अलग कमरे में कई देवताओं की छोटी मूर्तियां व तस्वीरें फ्रेम कर लगवा रखी थीं. कमरे में जमीन पर एक छोटी सी चटाई बिछी होती थी, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह यहां बैठकर पूजा करती थीं.”
उन्होंने लिखा, “वह देश के किसी भी हिस्से में जाने पर वहां के प्रसिद्ध मंदिर जाने का कार्यक्रम अवश्य बनाती थीं. उन्होंने बद्रीनाथ, केदारनाथ और कई दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रार्थना की. वह कई बार तिरुपति और वैष्णोदवी भी गईं.”