मैगी: हंगामा क्यों है बरपा
रायपुर | जेके कर: मैगी टू मिनट्स नूडल्स में लेड पाये जाने से खाद्य पदार्थो के सुरक्षित होने पर सवालिया निशान लग गये हैं. मैगी के अलावा नेस्ले के दूध नैन में भी लारवा मिलने की खबर है. मामला चूकिं खाद्य पदार्थो का है इसलिये इसका स्वास्थ्य से सीधा संबंध है.
सब्जियों की जांच कैसे हो
छत्तीसगढ़ खबर को फूड एंड ड्रग विभाग के उच्च सूत्रों ने बताया, ” कच्चे सब्जियों की जांच करना संभव नहीं है क्योंकि फूड सेफ्टी एक्ट के अनुसार किसी भी सैंपल की जांच रिपोर्ट 14 दिनों के भीतर देना पड़ती है. सब्जियां को इतने दिनों तक सुरक्षित रखने की कोई व्यवस्था नहीं है. छत्तीसगढ़ में जांच के लिये एकमात्र राजधानी रायपुर में ही व्यवस्था है, जहां तक सब्जियों के सैंपल पहुंचाने के पहले ही वे खराब हो जायेंगी.” जाहिर है कि मैगी की खपत के तुलना में सब्जियां बड़ी मात्रा में खाई जाती है परन्तु उनकी जांच करने की कोई व्यवस्था नहीं है.
बिलासपुर के प्रदीप शर्मा जो पेट्रोलियम इंजीनियर हैं तथा कृषि मामलों के जानकार हैं उनका कहना है कि ” Monocrotophos का उपोयग हरी पत्तियों तथा सब्जियों को कीट-पतंगों से बचाने के लिये किया जाता है जबकि स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ” उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी Monocrotophos को खतरनाक माना है तथा 46 देशों में इसके उपयोग पर बैन लगा हुआ है. इन सब के बावजूद भी यह पेस्टीसाइड भारत वर्ष में धड़ल्ले से किसानों द्वारा उपयोग में लाया जाता है. इसका कारण है कि यह पेस्टीसाइड सस्ता मिलता है.
गौरतलब है कि इस पेस्टीसाइड को सीबा-गायगी नामक विदेशी कंपनी बनाती है. वर्तमान में सीबा-गायगी को विदेशी महाकाय दवा तथा पेस्टीसाइड कंपनी नोवार्टिस ने खरीद लिया है. कृषि मामलों के कई जानकारों ने इस पर बैन लगाने की मांग की है परन्तु केन्द्र सरकार इसके उपयोग के खिलाफ नहीं है.
साल 2013 के जुलाई में इसी Monocrotophos के कारण बिहार के 23 स्कूली बच्चों की मौत के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सरकार से इस पेस्टीसाइड पर बैन लगाने के लिये कहा था. ज्ञात्वय रहे कि बिहार के स्कूल में मिड-डे मील खाने के बाद 23 बच्चों की मौत हो गई थी.
प्रदीप शर्मा ने बताया कि गांवों में गिलहरी, कौवें तथा गौरैया इन्ही के कारण कम दिखाई पड़ते हैं. उनकी संख्या दिन पर दिन कम होती चली जा रही है.
फूड एंड ड्रग विभाग के सूत्रों ने छत्तीसगढ़ खबर को बताया कि मिठाइयों में नान एडिबल कलर मिलाये जाते हैं, खोवा में वनस्पति घी मिलाया जाता है. जिसकी जांच करने के बाद जुर्माना लगाया जाता है तथा उन खाद्य पदार्थो को फिंकवा दिया जाता है. यदि इस प्रक्रिया को जारी रखा जाये तो खाद्य पदार्थो में मिलावट को रोका जा सकता है.
सभी पैक्ड फूड की जांच हो
मैगी में लेड पाये जाने की बात करने पर बिलासपुर में रहने वाले छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ फीजिशियन सरोज तिवारी ने सवाल उठाया कि, ” मैगी ही क्यों, सभी पैक्ड खानों की जांच की जानी चाहिये आखिर मामला जनता के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है.” उन्होंने बताया कि लेड से किडनी, स्कीन तथा स्नायुतंत्र के रोग होते हैं. हालांकि, डॉ तिवारी ने मैगी में लेड पाये जाने से दहशत में न आने के लिये आगाह करते हुये बताया कि इसका स्वास्थ्य पर कुप्रभाव धीरे-धीरे पड़ता है.
उन्होनें कहा कि मैगी की घटना के बाद सचेत होने की जरूरत है तथा बाकी के खाद्य पदार्थो की भी कड़ी जांच की जानी चाहिये. डॉ तिवारी ने सवाल उठाया कि इतने दिनों तक जिन मैगी को बच्चों ने खाया है उसकी जांच पहले से क्यों नहीं की गई. उन्होंने अमरीका का उदाहरण देते हुये कहा वहां पर तो खाद्य पदार्थो को ठंडा रखने के लिये पूरी तरह से कोल्ड चेन की व्यवस्था है. जिसमें खाद्य पदार्थो को उनके उत्पादन के स्थान से लेकर परिवहन तथा भंडारण तक एक ही तापमान में रखा जाता है. यहां तक कि जिस स्थान पर खाद्य पदार्थो का भंडारण किया जाता है वहां कभी भी बिजली नहीं जाती है.
विषाक्त अपशिष्ट से बचाव जरूरी
मैगी में लेड पाये जाने के बाद बिलासपुर के सर्जन विजय दीक्षित ने सवाल किया कि, ” क्या मैगी में जिस आटे-मैदे या गेहूं का उपयोग किया जाता है उसकी जांच की गई थी कि नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि उनमें लेड मिला हुआ था. डॉ दीक्षित ने फैक्ट्रियों से निकलने वाले टॉक्सिक वेस्ट के बारे में कहा कि इनमें खतरनाक पदार्थ होते हैं जिनसे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.” उन्होंने पूछा कि कहीं फैक्ट्रियों से निकलने वाले विषाक्त अपशिष्ट पानी में मिलकर उन खेतों तक तो नहीं गये जहां के गेहूं का उपयोग मैगी में किया जाता है?
इसके अलावा विजय दीक्षित ने कहा कि लेड यदि पानी में मिल गया हो तो उसे अल्ट्रावायलेट किरण या साधारण फिल्टर से छानकर पृथक नहीं किया जा सकता है. पानी को लेड से मुक्त करने के लिये इसका वाष्पीकरण जरूरी है. उन्होंने सवाल किया कि क्या नेस्ले मैगी बनाने के लिये डिस्टिल वाटर का उपयोग करती है?
आगे से ऐसी गड़बड़ी रोकी जाये
इंडियन मेडिकल एसोसियेशन के छत्तीसगढ़ के पूर्व अध्यक्ष तथा शिशु एवं बाल्य रोग विशेषज्ञ डॉ किरण वासुदेव देवरस ने मैगी में लेड जाने पर कहा, ” फिर तो कुरकुरे तथा अन्य चिप्स की भी जांच होनी चाहिये क्योंकि आजकल के बच्चे इन्हें ही ज्यादा खाते हैं.” उन्होंने जोर इस बात पर जोर दिया कि केवल जांच करना पर्याप्त नहीं है बल्कि दोषियों को सजा दिया जाना चाहिये तथा आगे से ऐसी गड़बड़ी दुबारा न हो इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिये.