केजरीवाल और लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर
सत्यम श्रीवास्तव | फेसबुक
आज केजरीवाल ने ऐसी मांग कर डाली है, जिसकी हिम्मत कम से कम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा में नहीं है बावजूद तमाम दम खम के. जानते हैं क्यों?
क्योंकि देश का जो कथित बुद्धिजीवी है वो इसे भाजपा को टक्कर देने वाला मानता है. लेफ्ट इसकी परस्ती करने से नहीं चूकता और सिविल सोसायटी इससे कभी खफा नहीं होता.
ये तीनों हलके मोदी की हर हरकत पर नजर रखता है लेकिन केजरीवाल के धतकर्मों पर इसकी निगाह नहीं जाती.
अगर आप कभी इसका जिक्र करें तो उनके पास बहुत आसान जबाव है- मैंने ऐसा बयान नहीं सुना,देखा,पढ़ा. लेकिन अगर दिया है तो गलत दिया है.
यह भी अनौपचारिक चर्चा में ही आएगा.
खुलकर इस व्यक्ति और इसकी संघ से भी घटिया और देश तोड़क विचारधारा की कोई औपचारिक आलोचना नहीं होती. इस वर्ग के लोगों को यह भी नहीं दिखता कि ये संघ दीक्षित है या यह एक ईको सिस्टम की पैदाइश है. जिसके खिलाफ कोई मीडिया कभी नहीं बोलेगा.
ये बंदा उस छद्म वैक्यूम को भरने का काम करते दिखाई देता है जो इसने खुद पैदा किया है. और ऐसा करते वक्त इसने एक साथ फासिस्ट और लिबरल खेमों को अपने साथ ले लिया है.
खैर, इस बयान को भी भाजपा का पटखनी देने वाला बताते हुए इसे सहज ग्राह्य मान लिया जाएगा. आखिर हर्ज ही क्या है जिस गांधी को एक ने शौचालय में महदूद किया, दूसरे ने इसे आधिकारिक रूप से दफ्तरों से बाहर फेंका और अब मुद्रा से भी बाहर फेंक दे.
लेकिन गणेश लक्ष्मी को नोटों पर लाने का विचार इस लिहाज से अच्छा है कि अब UAPA के लिए देश की मुस्तैद मशीनरी को ज्यादा मेहनत मशक्कत नहीं करना होगी.
अब हर वो विधर्मी संदेह की बिना पर जेलों के लिए अर्ह होगा जिसकी जेबों में कुछ मुड़े तुड़े नोट मिल जायेंगे. और नोट किसके पास नहीं होते.
उम्मीद है लिबरल्स ने ये बयान देखा होगा. और मन ही मन में कह लिया होगा कि ऐसा नहीं कहना चाहिए.