सुरंग तो खुल गई पर किस्मत नहीं
मोहम्मद रेयाज मल्लिक | पुंछ : एशिया की सबसे लंबी सुरंग राष्ट्र के नाम समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री कहते हैं कि “एक तरफ कुछ भटके हुए नौजवान पत्थर मारने में लगे हुए हैं तो दूसरी तरफ उसी कश्मीर के युवा पत्थर काटकर कश्मीर की किस्मत बदलने में व्यस्त हैं”. प्रधानमंत्री के वाक्य में वृद्धि करते हुए सीमावर्ती पुंछ ब्लॉक मंडी के निवासी कहते हैं “तीसरी तरफ हम लोग अपने सिर को पत्थरों से टकरा कर अपनी किस्मत पर रो रहे हैं कि हमारी किस्मत पर पत्थर क्यों पड़े हैं? जहां एक ओर एशिया की सबसे लंबी सुरंग हिमालय पर्वत श्रृंखला पर लगभग चार हजार फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है, जिससे 44 किलोमीटर की यात्रा साढ़े दस किलोमीटर में तय हो जाएगी, और राजमार्ग पर यात्रा करने वाले यात्रियों के दो घंटे और प्रतिदिन की 27 लाख रुपये के ईंधन की बचत हो गई है. वहीं हमारे क्षेत्र में सड़क के नाम पर जनता को धोखा दिया जा रहा है.”
अड़ाई गांव के 24 साल के मसउद अजहर जो दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं कहते हैं कि “बहुत दिनों से सोच रहा हूँ कि सरकार जो कुछ कर रही है. वह सही में जनता के हित में है या नही? धरातल स्तर पर गांव अड़ाई की सड़क 1970 के दशक से.लेकर आज तक कागज पर कई बार बनी और समाप्त हो गयी. कभी PWD (पब्ल्कि वेलफेयर डिपार्टमेंट) के रुप में तो कभी BRGF (बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड) और कभी PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) के रुप में. ऐसा लगता है कि लक्ष्य सड़क बनाना नहीं बल्कि जनता को अपाहिज कर अपनी जेब गर्म करना है. ऐसा हुआ भी है कम से कम इस सड़क ने तीन पीढ़ियों को बदलते देखा है. 47 साल की अवधि में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, न सड़क बनी न ठेकेदारों की लालच पूरी हुई. यहां तक कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भी असफल दिखायी दे रही है.”
फौज में रह चुके हाजी मुहम्मद अय्यूब के अनुसार “किसी गांव या बस्ती के विकास का वास्तविक रहस्य सड़क निर्माण से है. परंतु दुर्भाग्य से अड़ाई इस सुविधा से वंचित हैं और तो और बारिश आते ही सड़क से संपर्क भी कट कर रह जाता है. सड़क का कुछ भाग जो दरिया में बनाया गया है वह भी हल्की बारिश से ही बह जाता है. क्योंकि यहाँ से सर्वे के निशान 20 से 30 तीस मीटर उंचाई पर अब भी मौजूद हैं. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना विभाग ने यहाँ अपनी सक्रिय भूमिका भूल कर नदी के मुंह पर मलबा डाल कर सड़क को हवेली अड़ाई तक बनाया. तारकोल डालने के कुछ दिन बाद ही वाहन के लिए खुला था कि 2014 के तूफ़ानी सैलाब ने सड़क के अधिकांश हिस्से को बहा दिया. रही सही कसर 2016 की बारिश ने पूरी कर दी है. थोड़ी राहत महसूस हो रही थी कि जनवरी 2017 में हुई एक सप्ताह बारिश ने लोगों का जीवन मुसिबत में डाल रखा है. जगह जगह से मिट्टी खिसकने से यहां के निवासियों के परिवहन और गर्भवती महिलाओं को भारी नुकसान पहुंचता है. परिस्थिति यह हैं कि पुराने समय की तरह हम पैदल यात्रा करने के लिए मजबूर हैं .”
मुलकां पंचायत के 46 वर्षीय निवासी मोहम्मद असलम ने बताया कि” मोरियां खोड़ि के रहने वाले मोहम्मद शरीफ के दो बच्चे मौहम्मद रफीक और शफीक अहमद थे. ग्यारह और आठ साल की उम्र के ये बच्चे अपनी मां के साथ मंडी की ओर रवाना हुए. एक घंटा पैदल यात्रा के बाद जैसे ही सुमों कार में सवार हुए और लगभग सौ मीटर ही गाड़ी चली थी कि गाड़ी पलट गयी. यात्रियों से खचाखच भरी इस कार से बच्चे एक ही झटके में बाहर आ पड़े. वाहन उनके ऊपर पलटी दोनों मौके पर ही मारे गए. अधमरी हालत में बच्चा बच्चा करती हुई मां को मंडी से पूंछ जिला अस्पताल पहुंचाया गया. माँ के सामने दोनों बच्चों को सुपुर्दे खाक कर दिया गया. अगर सड़क मंत्रालय इस ओर गंभीर होती तो मामला कुछ और होता. दो मासुम बच्चों की मौत ने पूरे अड़ाई के निवासियों को सदमें मे डाल दिया था.”
इस संबध में जब हवेली के विधायक शाह मोहम्मद तानतरे से बात की गई तो उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि “अड़ाई गांव की 60 प्रतिशत आबादी अब भी सड़क सुविधा से वंचित है. जिसको लेकर हमने राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से अनुरोध किया था तो उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए सड़क को दुबारा प्रधानमंत्री पैकेज में रखकर केंद्र के पास मंजूरी के लिए भेजा है. ताकि हमें कुछ अधिक राशि मिल सके जिससे हम उर्पयुक्त सड़क को और विशाल बना सकें.” तानतरे के अनुसार एक विधायक के पास इतने फंड्स नहीं होते जो किसी सड़क पर खर्च कर सके. इसलिए इसे पीएम पैकेज में ही रखा गया है. उम्मीद है कि अप्रैल 2017 से पहले मंजूरी मिल जाए ताकि इस सड़क का काम शुरू किया जा सके. दूसरी ओर उधमपुर और रामबन के बीच राजमार्ग पर एशिया की सबसे लंबी सुरंग राष्ट्र के हवाले करने के बाद रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री की उपस्थिति में प्रधानमंत्री ने कहा कि “हम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को विकास दिखाना चाहते हैं.”
उपर्युक्त क्षेत्र के निवासी भी प्रधानमंत्री के साथ मिलकर अपना विकास पड़ोसी देश को दिखाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन एक सवाल उन्हें खाए जा रहा है कि सीमा क्षेत्र में विकास ही नहीं है तो दिखाएगें क्या? सुरंग तो खुल गई पर हमारी किस्मत कब खुलेगी?
(चरखा फीचर्स)