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पीआईएल के जनक जस्टिस भगवती का निधन

नई दिल्ली | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पी एन भगवती नहीं रहे.जनहित याचिका यानी पीआईएल के जनक के रुप में उनको जाना जाता था. अपने बहुचर्चित फैसलों के लिये दुनिया भर में लोकप्रिय जस्टिस भगवती पिछले कुछ सालों से बीमार चल रहे थे. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया है.

विचारों की अभिव्यक्ति को लेकर जस्टिस भगवती का एक फैसला बहुचर्चित रहा है.

1972 में गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बतौर सरकार द्वारा गुजराती किताब ‘माओ त्से तुंग के वक्तव्य’ पर प्रतिबंध लगाने को चुनौती दी गई थी. भगवती ने कहा कि यह सरकार नहीं, लोग तय करेंगे कि उन्हें वामपंथ या माओ त्से तुंग के फलसफे में यकीन करना है या नहीं.

अपने फैसले में उन्होंने लिखा था- मेरा ऐसा मानना है कि इन वक्तव्यों को ‘देशद्रोही’ कहते हुए खारिज कर देने का मतलब है, ज्ञान के दरवाज़ों को बंद कर देना। एक ऐसे फलसफे का सिर्फ इसलिए बहिष्कार कर देना क्योंकि वह समाज के पोषित नियमों को चुनौती देता है और जीवन जीने के एक नए तरीके को अपनाने की बात कहता है। वह तरीका जो उन मौजूदा तरीकों से अलग है जिसके लोग आदी हो चुके हैं।’

भगवती ने अपने फैसले में लिखा-यह सरकार नहीं लोग तय करेंगे कि उनके लिए क्या सही है, क्या गलत और वह अपने विवेक और बुद्धिमानी से सही फैसला ले सकें इसके लिए जरूरी है कि सभी तरह के विचारों का खुला प्रचार हो सके.

21 दिसम्बर 1921 को गुजरात में जन्में जस्टिस प्रफुल्लचंद नटवरलाल भगवती यानी पी एन भगवती 12 जुलाई 1985 से 20 दिसम्बर 1986 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे. इस दौरान एक पोस्टकार्ड को इन्होंने जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार करते हुये मामला दर्ज किया. इसके बाद ही भारत में जनहित याचिका यानी पीआईएल की शुरुआत हुई. जस्टिस भगवती ने गुजरात हाईकोर्ट में भी न्यायाधीश के तौर पर अपनी सेवायें दी थीं.

जस्टिस भगवती मानवाधिकार और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अंतिम समय तक सक्रिय रहे. 1999 में इन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया. कई देशों ने संविधान और मानवाधिकार के मुद्दे पर जस्टिस भगवती की सेवायें लीं.

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