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झारखंड में राष्ट्रपति शासन का रास्ता साफ

नयी दिल्ली | विशेष संवादताता: लोकसभा ने आज झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी राष्ट्रपति की उद्घोषणा को मंजूरी प्रदान कर दी. झारखंड में राष्ट्रपति शासन के दौरान परोक्ष रुप से कांग्रेस पार्टी का शासन चलाए जाने की विभिन्न दलों के सदस्यों की आशंकाओं के बीच गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सदस्यों की चिंताओं को निराधार बताया और कहा कि केंद्र कभी भी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के पक्ष में नहीं था लेकिन राजनीतिक दलों की करतूतों के चलते यह कदम उठाने को मजबूर होना पडा है.

उन्होंने झारखंड में केंद्र में मुख्य विपक्षी दल भाजपा या उसके सहयोग से बनी पिछली सरकारों का जिक्र करते हुए कहा कि भाजपा को गठबंधन सरकार चलाना प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सीखना चाहिए. राष्ट्रपति शासन को लंबा खींचे जाने की केंद्र की मंशा से इनकार करते हुए शिंदे ने कहा कि इसमें केंद्र सरकार को कोई खुशी नहीं मिल रही है और तीन दिन तक राज्यपाल सरकार गठन का दावा पेश किए जाने का इंतजार करते रहे.

आदिवासियों तथा उनकी जमीन के संरक्षण के संबंध में उठाए गए मुद्दों पर शिंदे ने कहा कि सरकार इस मामले में चौकस रहेगी तथा विभिन्न दलों को भी इस मामले में अपनी जिम्मेदार का निर्वाह करना होगा. गौरतलब है कि झारखंड में सरकार के अल्पमत में आने के बाद मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की उद्घोषणा की गयी थी.

इससे पूर्व संकल्प पर हुई संक्षिप्त चर्चा में हिस्सा लेते हुए झारखंड से भाजपा के रवींद्र कुमार पांडेय ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने पर विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि राज्य में तत्काल विधानसभा चुनाव कराके नई सरकार बनाई जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि केंद्र की अनदेखी के कारण झारखंड में अस्थिरता है और किसी भी क्षेत्र में उसे केंद्र सरकार से सहयोग नहीं मिल रहा. यह राज्य का दुर्भाग्य है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस नीति के साथ राज्य के निर्माण की घोषणा की थी,वह हकीकत का रुप नहीं ले सकी.

कांग्रेस के जगदंबिका पाल ने झारखंड में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव को आम सहमति से मंजूर किये जाने का समर्थन करते हुए कहा कि ऐसा नहीं होगा तो वहां का बजट पारित नहीं हो पाएगा. उन्होंने झारखंड में भाजपा के सहयोग से चली सरकारों पर आदिवासियों की जमीन कार्पोरेट को देने का आरोप लगाते हुए कहा कि वहां 13 साल में आठ सरकारें बनी हैं और राष्ट्रपति शासन भाजपा के अंहकार के कारण लगा है.

सपा के शैलेंद्र कुमार ने कहा कि राष्ट्रपति शासन किसी राज्य के प्रशासन के लिहाज से बहुत अच्छा नहीं होता और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले ही राज्य में विधानसभा चुनाव कराये जाने चाहिए. बसपा के बलिराम ने कहा कि अजरुन मुंडा के शासनकाल में कानूनों में संशोधन कर अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों की जमीन कोरपोरेट घरानों को दे दी गयी. उन्होंने इस कानून को बदले जाने की मांग की. उन्होंने साथ ही प्रदेश में जल्द लोकतंत्र बहाली की भी वकालत की.

झारखंड में अथाह खनिज संपदा होने के बावजूद 64 फीसदी बच्चों के कुपोषण से ग्रसित होने तथा 70 फीसदी घरों में शौचालय नहीं होने पर अफसोस जाहिर करते हुए जनता दल यू के भूदेव चौधरी ने कहा कि प्रदेश में जल्द चुनाव कराए जाने की मांग की. भाजपा के निशिकांत दुबे, झारखंड विकास मोर्चा के अजय कुमार और निर्दलीय इंद्र सिंह नामधारी ने भी चर्चा में हिस्सा लिया.

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