बहुत शोर सुनते थे
कनक तिवारी
लोकसभा चुनाव बाद जनमानस की शुभ संकेतों की दाईं आंख फड़कने लगी थी. उसने जैसा वोट दिया, वैसी मोदी सरकार 26 मई को सत्ता पर काबिज़ हो गई. नारा मनमोहन सिंह ने दिया था ‘अच्छे दिन आने वाले हैं‘. पतंग उड़ाने की गुजराती परम्परा के नरेन्द्र मोदी ने मांझा लूटने की शैली में मनमोहन सिंह की पतंग काट ली. यह पतंग अर्थात नारा अब नरेन्द्र मोदी और भाजपा आसमान में उड़ा रहे हैं. उनके अनुसार अच्छे दिन आ गए हैं.
एक लोकप्रिय मंत्री की दुर्भाग्यजनक मौत हो गई. बिहार में भयंकर रेल हादसा हुआ. मानसून देश से रूठ गया. चीन ने घुसपैठ की भूमिका बांधनी शुरु कर दी. सुप्रीम कोर्ट की समझाइश के बावजूद राज्यपालों की छुट्टी शुरू हुई. सरकारी भ्रष्टाचार का भांडाफोड़ करने वाली स्वैच्छिक संस्थाओं को खुफिया एजेंसियों से प्रमाणपत्र लेकर विदेशी एजेंट बताया गया. कांग्रेसी परम्परा का अनुसरण करते लोकसभा में दस प्रतिशत से कम सीटें पाने के कारण कांग्रेस को विपक्षी नेतृत्व देने से सरकार कतरा रही है. महंगाई भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार से भी ज़्यादा तेज़ी से बढ़ा दी.
जनता भौंचक है. वह नागनाथ और सांपनाथ में किसे चुने. वह गुड़ खाए तो गुलगुलों से परहेज़ कैसे करे. प्रसिद्ध पत्रकार राजेन्द्र माथुर ने लिखा था. कांग्रेस कभी नहीं मरेगी. जो पार्टी सरकार में आएगी, वही कांग्रेस हो जाएगी. हादसे पर भी लगातार मुस्कराने वाले सदानन्द गौड़ा ने रेल बजट रखा. पहले से तय था कि भाजपा और समर्थक दल उसे प्रगतिशील, भविष्यमूलक और कल्याणकारी बताएंगे.
कांग्रेस और बाकी विपक्ष रेल बजट को दिशाहीन, पिछड़ा और जनविरोधी बताएंगे. बजट को पढ़े बिना मीडिया के लिए प्रतिक्रियाएं नेता पहले से तैयार रखते हैं. गंभीर तथा तनावपूर्ण दिखने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश का सामान्य बजट रखा. उस पर भी दोनों ओर से परस्पर विरोधी विशेषण चिपकते गए. दोनों पक्ष जानते हैं कि वे झूठ बोल रहे हैं. फिर भी लगभग 55 वर्षों से झूठ बोले चले जा रहे हैं.
भाजपा और सहयोगी दल तथा पूरा विपक्ष एक स्वर में मानेगा कि कश्मीर धरती का स्वर्ग है. भारत एक महान सांस्कृतिक देश है. गंगा नदी का भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है. भगतसिंह जैसा कोई नौजवान क्रांतिकारी नहीं हुआ है. मां के प्यार से बड़ी कोई चीज़ दुनिया में नहीं हो सकती. सबसे गरीब आदमी के लिए काम करने से ही इतिहास में सम्मानजनक जगह मिलती है. पूंजीवाद नाबदान है. उसमें अत्याचार और शोषण के कीड़े पैदा होते हैं. जो नेता जनता की पीठ पर छुरा मारते हैं, उन्हें नर्क के अलावा कहीं जगह नहीं मिलती. पुलिस से डरना चाहिए. सब जानते हैं कि अदालतों में अमीर ही जीतते हैं.
राजनेता रेलवे बजट और सामान्य बजट के ज़रिए देश में आर्थिक क्रांति कैसे कर पाएंगे. लेकिन ये औपचारिक, परंपरावादी और कामचलाऊ बजट नहीं बनेंगे तब भी देश कैसे चलेगा. बुलेट ट्रेनें चलें. शानदार रेलवे प्लेटफॉर्म हों. ब्रांडेड खाना मिले. एयरकंडीशन्ड रेलगाडि़यां चलें. ऑनलाईन टिकट बुकिंग हो. रेलवे विश्वविद्यालय खुले. रेल में विदेशी पूंजी निवेश बढ़े. देशी पूंजीपति एजेन्ट बनें. इन घोषणाओं से रेलमंत्री कौन से सब्ज़बाग दिखाना चाहते हैं. क्या भारत में इन्द्रसभा का निर्माण होने जा रहा है?
धर्म का मिथक है कि मरने पर हिन्दू इस बात के लिए लालायित बनाए जाएं कि वे स्वर्ग जाकर रम्भा, उर्वशी और मेनका का नृत्य देखें. क्या देश दो चार करोड़ कुलीनों और अमीरों का ही है? गरीबों के लिए तो कुछ नहीं हुआ. पैसेंजर ट्रेनें नहीं बढ़ीं. उनमें साफ सफाई और सुरक्षा का वायदा नहीं है. पिछली एन.डी.ए. सरकार के रेल मंत्री ने ही सस्ती दरों पर रेलवे भोजन और रेल निवास का प्रबंध शुरू किया था. सरकार ने वाजपेयी के फोटो के नीचे बैठकर उनके कार्यों को ही फनां कर दिया.
संडास के पानी से यात्रियों का भोजन पकाने की खबरें आएं. रेलवे के ठेकेदार पांच वर्षों में अरबपति बन जाएं. यात्रियों से रेलवे का स्टॉफ जानवरों की तरह सलूक करे. सस्ते रैनबसेरे नहीं खुलें. नौजवान या तो बेरोजगार हैं अथवा विदेश जाने के कुलांचे भर रहे हैं. मोदी की रेल उन्हें ऐसे गंतव्य तक ले जाने की खुशफहमी दे रही है, जो मुकाम आने वाला ही नहीं है.
सामान्य बजट न तो बुरा है, न ही अच्छा. पिछली सरकार को कोसा जा रहा है. सांप के चले जाने के बाद लाठी पीटी जा रही है. सिगरेट, तम्बाकू, शराब वगैरह ज़रा से महंगे होंगे. नशेबाज़ी मात्रा तो कम नहीं होगी. घरों का बजट बिगड़ेगा. गृहणियों की दिक्कत बढ़ेगी. मोबाइल फोन, कम्प्यूटर जैसे उपकरण बराएनाम सस्ते होंगे. बच्चे जि़द करेंगे कि उन्हें खरीदा जाए. उससे आर्थिक प्रगति का क्या रिश्ता है?
महंगाई कम करने का कोई वायदा नहीं है. उपभोक्ता वर्ग उत्पादकों, दलालों, बिचैलियों, आढ़तियों, कालेबाज़ारियों, मुनाफाखोरों और जमाखोरों के लिए गरीब की लुगाई बनकर रह गया है. अरुण जेटली बड़े वकील और प्रधानमंत्री के प्रमुख सलाहकार हैं. गोपाल सुब्रम्ण्यम ने सरकारी वकील की हैसियत में गुजरात दंगों को लेकर अमित शाह वगैरह के खिलाफ ईमानदारी से पैरवी की. उन्हें सुप्रीम कोर्ट की राय के बावजूद उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश सरकार ने नहीं बनने दिया.
अरुण जेटली के मित्र मशहूर वकील मुकुल रोहतगी ने टू.जी. स्पेक्ट्रम सहित आर्थिक घोटालों के कई मुकदमों में देश विरोधी मुलजिमों की पैरवी की. उन्हें मोदी सरकार ने भारत का एटॉर्नी जनरल बना दिया. मनमोहन सिंह दिल्ली से लोकसभा का चुनाव हारे. वे प्रधानमंत्री बनाए गए. अरुण जेटली अमृतसर से लोकसभा का चुनाव हारे. वे एक साथ वित्त और रक्षा मंत्री बना दिए गए.
इन्कम टैक्स में नहीं के बराबर छूट मिली है. कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई. लगता है कांग्रेस का तिरंगा बजट भाजपा का दुरंगा बजट बनकर आ गया है. जनता का पारदर्शी सफेद रंग गायब है.
इस मिली जुली राजनीतिक कथा से शिक्षा मिलती है. दाल एक वक्त ही खाओ. सब्जियों को किलो के रेट से खरीदने वालों का नागरिक अभिनन्दन करो. डीज़ल और पेट्रोल पंपों को लगातार प्रणाम करो. दूध वाली चाय पीना बंद करो. उससे शरीर और बजट का नुकसान होता है. शक्कर मत खाओ. डायबिटीज़ होती है. नमक ज़रूर खाओ और हर सरकार के प्रति वफादारी बजाओ. बीमार मत पड़ो. निजी अस्पताल घर नहीं लौटने देंगे. छोटे मोटे अपराधी कुछ महीनों तक जेल में ही रहें. भरपेट भोजन और परिश्रम के कारण हालत बाहर से बेहतर रहेगी.
मंत्रियों के जनदर्शन में जाओ. फिल्में देखने का खर्च बचेगा और खलनायकों के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी. दफ्तर, स्कूल और कारखाने तक पैदल जाओ. सेहत अच्छी रहेगी. ऋषियों की तरह काली मिट्टी का लेप लगाकर स्नान करो. साबुन लगाने से शरीर में फिल्म तारिकाओं को छोड़कर जनता को त्वचा की बीमारियां होती हैं.
शादी ब्याह के निमंत्रणों पर सपरिवार जाओ. ज़्यादा खाकर जुगाली करना सीखो. सरकार पर भरोसा रखो. वैसे भी पांच साल तक सरकारों का क्या बिगड़ेगा. बुलेट ट्रेन दस साल बाद निश्चित आएगी. सरकार रहे या न रहे. दूसरी सरकार आकर वही वायदे करेगी. हर मंत्री को एक चुनाव हराओ. दूसरा जिताओ. दोनों बड़ी पार्टियों के साथ भ्रष्टाचार का बंटवारा करो. संविधान के अनुच्छेद 51-क में लिखा है कि प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय जीवन में उत्कृष्टता के लिए कार्य करना है. पांच साल में अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए बिजली का एक बटन दबा देने से क्या आप यही नहीं कर रहे हैं?