छत्तीसगढ़बाज़ार

मेक इन छत्तीसगढ़ का खोखला दावा

रायपुर | संवाददाता: आखिरकार छत्तीसगढ़ के बाकी बचे 70 मिनी स्टील प्लांट में ताला लग ही गया. छत्तीसगढ़ के बाकी बचे 70 मिनी स्टील प्लांट में बिजली की बढ़ती दरों के कारण नुकसान होने के कारण उसके मालिकों ने उत्पादन बंद कर दिया है. इन स्टील प्लांट में 50 हजार कर्मचारी काम करते हैं. मिनी प्लांट के बंद हो जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने उनके मालिकों को बुलाकर उनसे चर्चा की है.

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के मिनी स्टील प्लांट को 6.19 रुपये की दर से बिजली खरीदनी पड़ती है. वहीं रायगढ़ के जिंदल पार्क के स्टील प्लांट को 4.10 रुपये की दर से बिजली मिलती है. छत्तीसगढ़ में बिजली की दर सबसे अधिक है. जबकि पड़ोसी राज्य झारखंड में 3.81, बिहार में 4.67 तथा विदर्भ में 4.15 रुपये प्रति यूनिट की दर से मिली स्टील प्लांट को बिजली मिलती है.

कभी छत्तीसगढ़ में देश का सबसे बड़ा स्टील उद्योग था और 195 के करीब मिनी स्टील प्लांट हुआ करती थी. आज जब छत्तीसगढ़ के सभी मिनी स्टील प्लांट बंद है तो इससे आम जनता को भी जूझना पड़ेगा. मकान बनाने तथा अन्य निर्माण में लोहे की छड़ तथा दूसरी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है. जिन्हें छत्तीसगढ़ के यही मिनी स्टील प्लांट बनाते हैं. अब इनके बंद हो जाने से भवन निर्माण सामग्री का खर्च बढ़ जाना स्वभाविक है.

वैसे भी इन मिनी स्टील प्लांटों में अपनी क्षमता का पचास प्रतिशत ही उत्पादन हो रहा था. इसके उलट छत्तीसगढ़ के बड़े स्टील प्लांटों में उत्पादन बढ़ रहा है. भारत सरकार के योजना आयोग ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिये जो योजना बनाई थी उसके अनुसार छत्तीसगढ़ में बड़े स्टील प्लांटों का उत्पादन बढ़ा.

उदाहरण के तौर पर जिंदल स्टील के दोनों प्लांटों में वर्ष 2014, 2015 तथा 2016 में उत्पादन क्रमशः 2-3-3.5 मिलियन मीट्रिक टन तथा 4-4-4 मिलियन मीट्रिक टन होगा. उसी तरह मोनेट इस्पात का उत्पादन भी क्रमशः 1.5-1.5-1.5 मिलियन मीट्रिक टन रहने वाला है.

देश में ग्यारहवीं योजना के दरम्यान स्टील उद्योग का विकास 8 प्रतिशत से ज्यादा की दर से हुआ. इसी ग्यारहवीं योजना में देश के स्टील प्लांटों ने अपनी उत्पादन क्षमता का 88 से 90 प्रतिशत का उत्पादन किया. जबकि छत्तीसढ़ में मिनी स्टील प्लांट अपनी क्षमता का केवल पचास प्रतिशत ही उत्पादन कर पा रहें थे.

ऊपर के परिदृश्य से यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में छोटे तथा मझोले उद्योगों को प्रोत्साहन नही दिया जा रहा है. रमन सरकार का पूरा ध्यान बड़े उद्योंगपतियों के विकास पर है. जिनमें जिंदल तथा मोनेट जैसे घराने शामिल हैं. इनमें से तो जिंदल को कोयले की सुविधा भी प्रदान की जा रही है. जिंदल घराने को कोयले के कई खदान आबंटित किये जा चुके हैं.

यदि आप दुनिया पर नजर डालेंगे तो पायेगें कि पूरी दुनिया में छोटे तथा मझोलें उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है. हमारे देश में भी इन उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है. कारण यह है कि ये उद्योग, बड़े उद्योगों की तुलना में ज्यादा रोजगार सघन होते हैं. इससे लाखों-करोड़ों लोगो को रोजगार मिलता है. इन छोटे तथा मझोले उद्योगों से देश में विदेशी मुद्रा बड़े उद्योगों की तुलना में ज्यादा आती है.

इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद यदि छत्तीसगढ़ में इन उद्य़ोगों में तालाबंदी हो रही है तो इसे उल्टी गंगा का बहना कहा जा सकता है. छत्तीसगढ़ के मिनी स्टील प्लांटों की मांग है कि सरकार इन्हें रात के दस बजे से सुबह के छः बजे तक दी जानी वाली बिजली के दरों में तीस प्रतिशत की छूट दे.

छत्तीसगढ़ में 195 मिनी स्टील प्लांट में हर महीने 3 लाख 20 हजार मीट्रिक टन इन्गाड एवं बिलेट का उत्पादन होता था. इन प्लांटों में हर दिन 400 मेगावाट की बिजली खपत होती थी. इस बिजली का 150 करोड़ रुपए हर महीने भुगतान किया जाता था. मंदी और आर्थिक तंगी के बावजूद 50 हजार मजदूरों को रोजगार देने के लिए प्लांट संचालित किए जा रहे थे.

उदयोगपतियों का कहना है कि पिछले साल तक स्टील का प्रमुख निर्यातक रहा भारत आज इसका आयातक बन चुका है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक साल में विदेशी स्टील के आयात में 69 फीसदी की जबर्दस्त तेजी आई है. अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के बीच भारत में 81.20 लाख टन स्टील का आयात हुआ था, जिसमें सिर्फ चीन से 29 लाख टन स्टील का आयात किया गया था. आंकड़ों की बात करें तो चीन से होने वाले आयात में 205 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!