‘ग्रीन नोबल’ छत्तीसगढ़ के आलोक शुक्ला को
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला को, इस साल का ‘ग्रीन नोबल’ कहा जाने वाला प्रतिष्ठित गोल्डमैन अवार्ड दिया जाएगा. आज अमरीका में इसकी घोषणा की गई.
गोल्डमैन अवार्ड दुनिया में पर्यावरण संरक्षण का काम करने वालों को दिया जाता है.
इस साल एशिया से आलोक शुक्ला का चयन किया गया है.
हसदेव अरण्य में पिछले एक दशक से आदिवासियों के साथ कंधा से कंधा मिला कर संघर्ष कर रहे आलोक शुक्ला और उनके साथियों के प्रतिरोध के कारण राज्य सरकार को लेमरु एलिफेंट रिजर्व घोषित करना पड़ा, जिसके कारण जंगल का एक बड़ा इलाका संरक्षित हो पाया.
इसी तरह हसदेव के आंदोलन के कारण अभी तक केवल एक कोयला खदान परसा ईस्ट केते बासन ही हसदेव में शुरु हो पाया है.
हसदेव के आंदोलन के कारण दुनिया भर में पर्यावरण प्रेमियों ने हसदेव अरण्य के जंगलों को बचाने की अपील की है, जिसके कारण राज्य और केंद्र की सरकार, नए खदानों को मंजूरी देने से बचती रही हैं. हसदेव में लगातार चल रहे संघर्ष के कारण मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाने वाला हसदेव अब तक सुरक्षित है.
हसदेव के आदिवासियों ने जताई खुशी
आलोक शुक्ला को ‘ग्रीन नोबल’ कहे जाने वाला गोल्डमनैन अवार्ड दिए जाने पर हसदेव अरण्य संघर्ष समिति से जुड़े आदिवासियों ने प्रसन्नता जताई है.
समिति की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह सम्मान असल में हसदेव की संघर्षरत जनता का सम्मान है और देश और दुनिया की उस जनता का भी सम्मान है, जिन्होंने इस संघर्ष में लगातार साथ निभाया है.
इधर सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा है कि आलोक शुक्ला इस सम्मान के लिए सर्वथा योग्य नाम हैं. उन्होंने निःस्वार्थ भाव से आदिवासियों के इस आंदोलन का नेतृत्व किया है और अब तक हसदेव अरण्य की लड़ाई को इस जगह तक पहुंचाया है.
अरविंद नेताम ने कहा-“आलोक शुक्ला ने हसदेव आंदोलन को बचाने में जो भूमिका निभाई है, वह विरला उदाहरण है. राज्य के दूसरे आदिवासी आंदोलनों में भी उनकी भूमिका प्रशंसनीय है. उनका यह सम्मान, छत्तीसगढ़ की संघर्षरत जनता का सम्मान है.”
हसदेव की आवाज़ और बुलंद होगी
इधर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने एक बयान जारी कर कहा है कि हसदेव के आंदोलन ने लगातार कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ, शांतिपूर्ण तरीकों से, और संवैधानिक शक्तियों और कानूनी प्रावधानों का उपयोग कर अपनी आवाज़ बुलंद की. पिछले 12 वर्षों से लगातार प्रस्तावित 23 कोयला खदानों से होने वाले विनाश के विरुद्ध, अपने जल-जंगल-ज़मीन को बचाने, आदिवासी समुदाय, विशेष रूप से हसदेव की महिलाओं ने हर चुनौती का डट कर सामना किया और प्रत्येक खदान क्षेत्र में, प्रत्येक इंच ज़मीन पर, और प्रत्येक पेड़ के लिए मज़बूती से संघर्ष किया.
बयान में कहा गया है कि हसदेव के लोगों ने लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं से हर-संभव प्रयास किए, सारे सरकारी और राजनैतिक दरवाज़े खट- खटाए, अनेकों धरना-प्रदर्शन-सम्मेलन इत्यादि आयोजित किए और 300 किलोमीटर लंबी रायपुर तक पदयात्रा निकाली. संघर्ष के इस रास्ते में हसदेव के आंदोलन को भारी जन-समर्थन भी मिला और समाज का हर वर्ग हसदेव को बचाने की मुहीम से जुड़ा.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने अपने बयान में कहा कि इसी संघर्ष के कारण अक्टूबर 2021 में 1995 वर्ग किलोमीटर में फैले लेमरू हाथी रिज़र्व की अधिसूचना हुई. इसके बाद लेमरू रिजर्व की सीमा में आने वाले 17 कोल ब्लॉक में खदान-संबंधित सभी प्रक्रियाओं पर रोक लगाई गई जिसमें यहाँ पूर्व-आवंटित हो चुके कोरबा जिले के पतुरिया गिद्मुड़ी एवं मदनपुर साऊथ कोल ब्लॉक भी शामिल हैं. इसके पश्चात जुलाई 2022 में छत्तीसगढ़ विधान सभा में सर्व-सम्मति से अशासकीय संकल्प भी लिया गया जिसके अनुसार सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन-मुक्त रखने का निर्णय लिया गया.
बयान में कहा गया है कि हालांकि हसदेव पर संकट के काले बादल अभी छँटे नहीं हैं, सरगुजा क्षेत्र में परसा और PEKB खदानों में अभी भी जंगल-कटाई और विस्थापन की कोशिश है, जिसे बचाने के लिए यहाँ संघर्ष अभी भी जारी है और बीते 800 दिनों से अधिक से अनिश्चित धरना-प्रदर्शन और विरोध अभी भी जारी है. निश्चित ही ग्रीन नोबेल पुरस्कार से सम्पूर्ण हसदेव क्षेत्र को बचाने के अभियान को बल मिलेगा और हसदेव की आवाज़ पूरे विश्व में बुलंद होगी
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह पुरस्कार शायद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हसदेव के आन्दोलन ने दुनिया-भर में यह उम्मीद भी जगाई है कि एक शोषित-वंचित वर्ग, केवल साफ नीयत और लोकतान्त्रिक तरीकों से, दुनिया की सबसे ताकतवर कार्पोरेट की लूट और हिंसा का, मजबूती से मुकाबला कर सकता है. वह विकास के नाम पर हो रहे विनाश को चुनौती दे सकता है. यह हसदेव आंदोलन और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की बात को वैश्विक स्तर पर रखने का एक सुनहरा अवसर भी है.