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क्या आपको भी शुगर है?

नई दिल्ली | इंडिया साइंस वायर : भारत में 15 से 49 आयु वर्ग के केवल आधे वयस्क अपनी शुगर या मधुमेह की स्थिति के बारे में जानते हैं. इसके साथ ही मधुमेह ग्रस्त सिर्फ एक चौथाई लोगों को उपचार मिल पाता है और उनकी रक्त शर्करा नियंत्रण में रहती है. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आयी है.

मधुमेह से निपटने के लिए सबसे पहले लोगों को इसके बारे में जानकारी होना जरूरी है. लेकिन, इससे ग्रस्त 47.5 प्रतिशत लोगों को अपनी बीमारी के बारे में पता ही नहीं होता. इस कारण उन्हें उपचार नहीं मिल पाता. डायबिटीज से ग्रस्त ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और कम शिक्षित लोगों को देखभाल सबसे कम मिल पाती है.

इस अध्ययन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण के वर्ष 2015-16 के आंकड़ों का उपयोग किया गया है, जिसमें 29 राज्यों एवं सात केंद्र शासित प्रदेशों के 15-49 वर्ष के 7.2 लाख से अधिक लोग शामिल हैं. यह अध्ययन नई दिल्ली स्थित पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन और अन्य संस्थाओं ने मिलकर किया है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि मधुमेह से पीड़ित 52.5 प्रतिशत लोग अपनी बीमारी की स्थिति के बारे में जानते हैं. लगभग 40.5% लोगों ने बताया कि वे इससे नियंत्रण में रखने के लिए दवा ले रहे हैं. जबकि, कुल मधुमेह ग्रस्त लोगों में से सिर्फ 24.8 प्रतिशत लोगों का मधुमेह नियंत्रण में पाया गया है.

मधुमेह यानी शुगर ग्रस्त केवल 20.8 प्रतिशत पुरुषों और 29.6 प्रतिशत महिलाओं में रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रण में पाया गया है और वे मधुमेह नियंत्रण के लिए दवाएं ले रहे हैं. हालांकि, लगभग आधे मधुमेह पीड़ित अपने उच्च रक्तचाप की स्थिति से परिचित नहीं हैं.

गोवा और आंध्र प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या सबसे अधिक है, जिनमें शुगर का पता नहीं चल सका है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में डायबिटीज के मरीजों की संख्या कम है, पर ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं जो अपनी शुगर की स्थिति से अनजान होने के साथ उपचार से भी वंचित हैं.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन से जुड़े डॉ आशीष अवस्थी ने बताया कि शुगर भारत में तेजी से हुई उभरती प्रमुख चुनौती है. यह हृदय रोगों के कारण होने वाली मौतों और किडनी की बीमारियों का भी एक बड़ा कारण है.

डॉ. अवस्थी के अनुसार सीमित जागरूकता, उपचार और नियंत्रण गतिविधियों को देखते हुए प्राथमिक स्तर पर इस बीमारी की रोकथाम और नियंत्रण के उपाय किए जाने चाहिए. यह मधुमेह के बोझ को कम करने का किफायती तरीका हो सकता है.

इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका बीएमसी मेडिसिन में प्रकाशित किए गए हैं.

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