नोटबंदी की जद में केवल काली नकदी
मोदी सरकार के नोटबंदी पर जानकारों तथा अर्थशास्त्रियों की राय अलग-अलग है. नोटबंदी से केवल ग़ैरक़ानूनी ढंग से जमा बैंक नोट को निशाना बनाया जा सकता है. नोटबंदी से केवल सूटकेस में रखे नोटों को निशाना बनाया जा सकता है. यह कहना है प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज का.
उनका कहना है कि ऐसे नोट शायद बहुत ज़्यादा नहीं होंगे क्योंकि ऐसी आमदनी वाले लोग सूटकेस में पैसा रखने से बेहतर उपाय जानते हैं. वे इन पैसों को खर्च कर देते हैं, निवेश करते हैं, दूसरों को कर्ज़ दे देते हैं या फिर दूसरे तरीकों से उसे बदल लेते हैं. वे इन पैसों से ज़मीन जायदाद खरीदते हैं, शाही अंदाज़ में शादी करते हैं, दुबई जाकर ख़रीददारी करते हैं या फिर राजनेताओं का समर्थन करते हैं.
इसी तरह से नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन नोटबंदी के फैसले को सही नहीं मानते हैं. उन्होंने इसे ‘निरंकुश कार्यवाही’ जैसा कहा है.
अमर्त्य सेन के अनुसार लोगों को अचानक बताना कि उनके पास जो करेंसी है उसका इस्तेमाल नहीं हो सकता, सत्तावादी प्रवृति को जाहिर करता है. लाखों बेगुनाह लोग अपने खुद के पैसे वापस लाने की कोशिश में पीड़ा, असुविधा और अपमान झेल रहे हैं.
मनमोहन सरकार में आधार कार्य योजना के प्रमुख रहे नंदन नीलकेणी मानते हैं कि इससे डिजीटल लेन-देन बढ़ेगा. खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नोटबंदी के उद्देश्यों से अपनी असहमति नही जताई थी.
मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में कहा था मैं इन उद्देश्यों से असहमत नहीं हूं. लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि नोटबंदी की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर कुप्रबंधन किया गया है. इसके बारे में समूचे देश में कोई दो राय नहीं है.
जाने-माने अर्थशास्त्री और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया का मानना है कि नकदी की दिक्कत तीन महीने रहेगी.
पनगड़िया ने कहा केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले से देश के भीतर आर्थिक गतिविधियां और वृद्धि दर प्रभावित होंगे. और ऐसा हो रहा है. यह सिस्टम में नकदी की कमी के कारण हो रहा है. ये कमी तीन महीने तक बनी रह सकती है.
मॉर्गन स्टेनली के मुख्य वैश्विक रणनीतिकार रुचिर शर्मा का कहना है कि भले आज कुछ छिपा हुआ धन खत्म हो जाए लेकिन संस्कृति और संस्थाओं में गंभीर बदलाव नहीं होने से आने वाले कल में काले धन की अर्थव्यवस्था फिर से पैदा होगी.