कृषिछत्तीसगढ़ विशेष

छत्तीसगढ़ में 5 साल में खेती की लागत दोगुनी

रायपुर | संवाददाता: देश में बढ़ती महंगाई का असर खेती-किसानी पर भी दिखाई दे रहा है. पिछले पांच सालों में खाद-बीज, दवाई, कृषि यंत्र आदि के दाम में लगभग दोगुने हो गए हैं. कृषि कार्य से जुड़े से मजदूरों की दर तो बढ़ी ही है, साथ ही मजदूर न मिलने की समस्या से भी किसानों को दो-चार होना पड़ रहा है.

किसानों के मुताबिक, पांच साल पहले धान की खेती में प्रति एकड़ का खर्च जहां लगभग बारह हजार रुपए का तक आता था, वहीं अब यह बढ़कर 25 हजार रुपए प्रति एकड़ तक पहुंच गया है.

कृषि का यांत्रिकीकरण होने से किसानों को लाभ तो मिला है लेकिन लघु और सीमांत किसान इससे भी परेशान हैं.

पाटन ब्लाक के ग्राम परसदा के प्रगतिशील किसान भुनेश्वर प्रसाद साहू के बताते हैं- “पांच साल पहले 24 एचपी का जो ट्रैक्टर 4-5 लाख रुपए में मिल जाता था, उसकी कीमत अब 8 लाख रुपए तक पहुंच गई है. हार्वेस्टर, थ्रेसर, रोटा-वेटर, टैक्टर ट्राली, लोहे का नागर (हल) समेत लगभग सभी प्रकार के कृषि यंत्रों की कीमतें बढ़ी हैं.”

खाद-बीज की कीमतों में प्रति एकड़ की दर से काफी इजाफा हुआ है.

यूरिया की 45 किलोग्राम की बोरी सब्सिडी के बाद 266.50 रुपए में मिल रही है, वहीं बिना सब्सिडी के बाजार में इसकी कीमत 2450 रुपए तक पहुंच गई है.

पांच साल पहले 1290 रुपए में मिलने वाली डीएपी सब्सिडी के बाद 1350 रुपए और बिना सब्सिडी के 4073 रुपए प्रति (50 किलो) बोरी मिल रही है.

सब्सिडी वाली पोटास की दर प्रति बोरी (50 किलो) 1700 और एनपीके प्रति बोरी 1470 मिल रही है, वहीं बिना सब्सिडी के खुले बाजार में पोटास की कीमत 2654 और एनपीके 3291 रुपए प्रति बोरी है.

बीज के दामों में बढ़ोत्तरी की वजह से किसानों के चेहरों पर मायूसी देखी जा सकती है.

दुर्ग जिले के ग्राम अमलीडीह के किसान डगर देवांगन एवं रामजी देवांगन बताते हैं- “पांच साल पहले धान का बीज 30-40 रुपए किलो में मिल जाता था, लेकिन अब 70-80 रुपए किलो मिल रहा है. बाजार में उपलब्ध प्रमाणित बीज की कीमत प्रति 10 किलोग्राम 700-800 रुपए तक पहुंच गई है.”

रामजी देवांगन बताते हैं कि एक एकड़ में 20-30 किलोग्राम तक बीज का इस्तेमाल किया जाता है.

कीटनाशक के दाम भी पांच सालों में 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं.

मशीनों के इस्तेमाल से बढ़ी लागत

बढ़ती महंगाई का असर खेती-किसानी पर
बढ़ती महंगाई का असर खेती-किसानी पर

कृषि कार्य में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ा है. इसे छोटे और मझोले किसानों की दिकक्तें बढ़ गई हैं.

ग्राम बटंग के किसान विनोद वर्मा बताते हैं, पहले गांव-गांव में हर किसान के पास बैलगाड़ी, नागर, बैल आदि होते थे. इससे किसान अपने दम पर खेती कर लेते थे.

मगर कृषि में यांत्रिकीकरण के प्रयोग की वजह से खेतों की जुताई, मताई, मिंजाई और ढुलाई के कार्यों के लिए इन यंत्रों की निर्भरता बढ़ गई है.

अधिकांश किसानों के पास खुद का ट्रैक्टर एवं अन्य कृषि यंत्र नहीं हैं, जिसे वे किराए पर लेते हैं. इससे कृषि की लागत बढ़ जाती है.

दुर्ग जिले के ही ग्राम मोतीपुर के किसान दूजराम पटेल बताते हैं कि पांच साल पहले ट्रैक्टर से जुताई 500 रुपए प्रति घंटे थी, जो अब बढ़कर 1000-1200 रुपए प्रति घंटे हो गई है.

रोटोवेटर 1200 रुपए, हार्वेस्टर 2200-3000 और थ्रेसर 1200 रुपए प्रति घंटे की दर से मिल रहे हैं. डीजल की कीमतों में लगातार इजाफा होने से कृषि यंत्रों का भाड़े में बेतहासा वृद्धि हुई है.

मजदूरों की समस्या ने बढ़ाई परेशानी

धान की खेती में मजदूरी की लागत बढ़ी
धान की खेती में मजदूरी की लागत बढ़ी

खेती-कितानी के काम में किसानों को मजदूर न मिलने की समस्या से भी दो-चार होना पड़ रहा है. इसके कारण मजदूरी दर में भी भारी इजाफा हुआ है.

भांठागाव के किसान रमेशा शर्मा के मुताबिक, खेती-किसानों के काम में महिला मजदूरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

पौधे की रोपाई से लेकर निंदाई, कटाई आदि में महिला मजदूरों का सबसे बड़ा योगदान होता है.

पुरुष खाद, दवाई और बीज छिड़काव आदि का काम करते हैं.

पांच साल पहले महिला मजदूरों की प्रतिदिन की मजदूरी 90-120 रुपए होती थी, जो अब बढ़कर 200 से 250 रुपए प्रतिदिन हो गई है. यानी मजदूरी दोगुने से अधिक हो गई है.

पुरुष मजदूरों की मज़दूरी प्रतिदिन 200 रूपए से बढकर 350-450 तक हो गई है.

कृषि यंत्र चलाने वाले ड्राइवर 200-250 रुपए प्रतिदिन मजदूरी लेते थे, जो अब 500-600 रुपए प्रतिदिन तक पहुंच गई है.

रसायनिक खाद का इस्तेमाल बढ़ा

खाद और कीटनाशक के दाम आसमान पर
खाद और कीटनाशक के दाम आसमान पर

किसान पहले पशुपालन करते थे और अपने घरों में ही गोबर से जैविक खाद बना लिया करते थे.

खेतों में जैविक खाद के इस्तेमाल से उत्पादन भी अच्छा होता था. जैविक खाद का असर खेतों में दो-तीन साल तक रहता है.

लेकिन पशुपालन में आई कमी और जैविक खाद निर्माण न होने की वजह से रसायनिक खाद पर किसानों की निर्भरता बढ़ गई है.

अधिक उत्पादन के लिए किसान अधिक मात्रा में रसायनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं. इससे न केवल जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है, बल्कि जमीन की कठोरता भी बढ़ रही है.

रसायनिक खाद पर निर्भरता की वजह से इसके दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं.

पशु चारे की आसमान छूती कीमत की वजह से पशुपालन महंगा हो गया है.

बाजार में एक जोड़ी बैल की कीमत लाख रुपए तक पहुंच गई है.

किसानों को खाद-बीज की न हो दिक्कतः मुख्यमंत्री

विष्णुदेव साय
विष्णुदेव साय ने खाद-बीज को लेकर निर्देश दिए

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आगामी खरीफ सीजन के मद्देनजर सोसायटियों में पर्याप्त मात्रा में खाद बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं.

मुख्यमंत्री ने कृषि एवं सहकारिता विभाग के अधिकारियों को मानक स्तर के खाद-बीज का भंडारण एवं उठाव की स्थिति पर निरंतर निगरानी रखने को कहा है.

उन्होंने आगामी 15 जून तक किसानों को उनकी डिमांड के आधार पर गुणवत्तापूर्ण खाद-बीज प्रदाय किये जाने की व्यवस्था सोसायटियों के माध्यम से करने को कहा है.

मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसानों को खाद-बीज के लिए किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पड़े. इस संबंध में पहले से ही पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए.

उन्होंने सोसायटियों में खाद-बीज के भंडारण और वितरण में लापरवाही बरतने वालों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई के भी निर्देश दिए हैं.

उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों को अपने-अपने इलाके में खाद-बीज की मांग, भंडारण, उठाव एवं गुणवत्ता की मांनिटरिंग के निर्देश दिए हैं.

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