कांग्रेस का यह हाल
नंद कश्यप | फेसबुक: कांग्रेस को राष्ट्रीय आंदोलन के मूल्यों को सामने रखकर जनता के बीच जाने की जरूरत है. उसे देश के मेहनतकशों किसानों समाज के हाशिए के लोगों का साथ मिलेगा. आज की सच्चाई यही है कि विकसित पूंजीवादी देश भी जिन लोकतांत्रिक मूल्यों पर अपने को सर्वोपरि समझते थे, वहां भी ट्रंप के रुप में फासिस्ट नस्लवादी शासक बैठ गया है, हां नीचे लोकतंत्र मजबूत है. इसलिए सैकड़ों अखबार एक ही दिन ट्रंप के खिलाफ संपादकीय लिख लोकतंत्र की विश्वसनीयता कायम रखते हैं. परंतु भारत में स्थिति एकदम विपरीत है मीडिया का बड़ा हिस्सा सांप्रदायिक फासीवादी तानाशाही के पक्ष में खड़े हैं.
कारपोरेट के मददगार या स्पष्ट कहें तो बड़े कारपोरेटों के मालिकाना वाले मीडिया ने यह हालत पैदा कर दिया है, हरेक चीज को सत्ता की विचारधारा के चश्में से देखा जा रहा है और हरेक विरोध को देशद्रोह करार दिया जा रहा है. लगभग अंग्रेजों के गुलाम भारत की तरह जहां सरकार का लोकतांत्रिक विरोध देशद्रोह था, तो देश में आंदोलन भी उसी तरह से चलाकर वर्तमान तानाशाही को परास्त किया जा सकता है.
एक बात मेरे ज़ेहन में लगातार उमड़ घुमड़ रही थी कि जब आज भी आर एस एस की स्वीकार्यता भारतीय जनमानस में न्यून है, फिर एक विशाल जन आन्दोलन से निकली कांग्रेस पार्टी आर एस एस की रणनीति से पस्त कैसे हो गई? आज राजीव गांधी का जन्मदिन है और कांग्रेस को इस देश के चुनावी इतिहास में अब तक की सबसे ज्यादा सीटें 415 दिलाने वाले राजीव गांधी खुद पांच साल सरकार नही चला पाए, और उनकी ह्त्या के बाद कांग्रेस पार्टी नीतिगत मामलों में लगभग यू टर्न लेकर दक्षिणपंथी नरम हिंदुत्व की पार्टी में कैसे तब्दील हो गई?
इसका उत्तर पाने मैं तमाम सन्दर्भ, इतिहास, आयाराम-गयाराम, देख-पढ़ के इस नतीजे पर पहुंचा कि आर एस एस को जब यह समझ आ गया कि वह अपने स्वतंत्र अभियान से कभी भी सत्ता तक नहीं पहुच सकता तो उसने सभी पार्टियों में और ख़ास कर कांग्रेस में अपने लोग प्लांट करने शुरु किये.
वो राजीव गांधी जिन्हें मंदिर से कोई मतलब नही था, उनकी अपनी सोच बेहद प्रगतिशील आधुनिक तकनीक से देश के आधारभूत ढाँचे को विस्तार देने की थी, अरुण नेहरू के कहने पर अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवाकर बैठे बिठाए विवाद मोल ले लिया. फिर उस अति से दूसरी अति, शाहबानो मामले में संविधान संशोधन, जिसने हिन्दू कट्टरता को ही पोषित किया. इससे किसी मुसलमान को फायदा नही हुआ.
जिस व्यक्ति ने भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की मंशा से नौकरशाही पर हमला किया, यह बयान देकर कि दिल्ली से चलने वाला एक रुपया नीचे पहुंचते तक 15 पैसे रह जाता है, राजनीति में सेवक नही सत्ता के दलाल काबिज हो रहे, लगभग पूरे सत्ताधारी वर्ग से दुश्मनी मोल ले लिया था.
फिर आर एस एस की पृष्टभूमि वाले भूरे लाल, आर एस एस संस्कार वाले वीपी सिंह, अरुण नेहरु सहित एक पूरा जमावड़ा उतर पड़ा राजीव गांधी के खिलाफ. बोफोर्स गढ़ लिया गया. (रक्षा सौदों में दलाली एक तरह से अन्तराष्ट्रीय प्रोटोकाल है. सारे देशों की राजधानियों में हथियारों के सौदागरों की लॉबी होती है, कम्पनियां इसके लिए बकायदे धन रखतीं हैं और इनको कैसे खर्च किया जाएगा, इसका पक्का हिसाब रखतीं हैं. राजीव गांधी ने इस तरह की लॉबी को गैर कानूनी करार करने केबिनेट में प्रस्ताव भी पास करा लिया था. उधर स्वीडन में बेहद ईमानदार और सादगी से रहने वाले ओलेफ पाल्मे थे, जो प्रधानमंत्री होते हुए भी बस से आफिस और घर जाते थे, और उनकी भी ह्त्या बस में ही हुई थी. इनसे वहाँ की हथियार लॉबी नाखुश थी.) इसलिए मैंने कहा कि बोफोर्स गढ़ लिया गया और एक संभावनाशील युवा प्रधानमंत्री की तीन चौथाई बहुमत की सरकार पांच साल नही चल सकी और अंततः 91 में इनकी हत्या करवा दी गई.
खैर, मैं कह रहा था कि सीधे आर एस एस के, आर एस एस संस्कार वाले और धुर दक्षिणपंथी रणनीतिकारों ने कांग्रेस में ऐसा कब्जा जमाया कि जिन-जिन कामों को अपने पहले भाषण में राजीव गांधी ने नहीं करने कहा, वही काम होने लगे और धीरे धीरे कांग्रेस मरती गई. आज वो तमाम लोग वापस भाजपा में हैं, बाक़ी जाने की तैयारी में हैं.
यदि कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों में छिपे बैठे संघियों और शुद्ध कारपोरेट दलालों को समय रहते पहचाना नहीं गया और ऐन चुनाव के समय ये फिर कांग्रेस छोड़ेंगे तो इससे भारतीय राजनीति में एक खतरनाक शून्य निर्मित हो जाएगा. इसलिए हमें यह समझ विकसित करनी चाहिए कि जितने अधिक लोग फिर वो शरद पवार हो या ए राजा, ये भाजपा या एन डी ए में जाते हैं तो उसे विकल्प की राजनीति के लिए अवसर के रूप में देखना चाहिए और कांग्रेस से अभी और ऐसे चेहरे भाजपा में जा सकते हैं जिनके बारे में कल्पना नहीं की जा सकती.
इसलिए राहुल गांधी को पप्पू कहना बंद करना चाहिए और उसे विपक्ष को एक राजनैतिक वैचारिक धुरी देने वाले साहसी नेता के तौर पर देखना चाहिए. वैसे मोदी का कांग्रेस सफाई अभियान अब एक ऐसे मोड पर है, जहां कांग्रेस सचमुच कचरा मुक्त हो जाए और यहाँ से समेटे कचरे के बोझ से मोदी सरकार खुद दब जाए.