कोल इंडिया सीएमडी चयन और मंत्रियों की ब्लैकमेलिंग
प्रकाश चन्द्र पारख | अुनवादः दिनेश कुमार मालीः जब करियामुंडा कोयला मंत्री थे तो कोल इंडिया के तत्कालीन चेयरमैन श्री एन.के. शर्मा कैपिटल इन्वेस्टमेंट तथा एक्सप्लोजिव खरीदने में बरती गई अनियमिताओं के कारण निलंबित कर दिया गया था. श्री शर्मा नौ महीने तक निलंबित थे और कोल इंडिया के निदेशक (विपणन) श्री शशि कुमार के पास चेयरमैन का अतिरिक्त प्रभार था.
देश में कोयले का प्रचुर अभाव था. देश के लगभग सारे पावर प्लांटों में कोयले की कमी थी. कुछ तो बंद होने की कगार पर आ चुके थे.नियमित फुलटाइम चेयरमैन की अनुपस्थिति के कारण कोल-इंडिया की गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हो रही थी.
फुलटाइम चेयरमैन की नियुक्ति के लिए सीएमडी रैंक की एक सुपरन्यूमरी पोस्ट क्रिएट करने का एक प्रस्ताव सुश्री ममता बनर्जी के अनुमोदन के साथ डिपार्टमेन्ट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग को मेरे कोयला मंत्रालय में नियुक्ति के पहले ही भेजा जा चुका था. मगर सरकार बदलने के बाद इस प्रस्ताव का नए कोयला-मंत्री से अनुमोदन आवश्यक था. मैंने नए कोयला मंत्री श्री सोरेन को इस प्रस्ताव के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दी और उनका अनुमोदन लेकर फिर से एक बार उसी प्रस्ताव को डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल को भेजा.
इस प्रस्ताव को भेजे एक हफ्ता भी नहीं हुआ होगा कि श्री सोरेन के पास श्री एन.के. शर्मा की बहाली हेतु सांसद श्री टेक लाल मेहता का पत्र प्राप्त हुआ. अब श्री सोरेन चाहते थे कि जल्दी से जल्दी श्री शर्मा को बहाल किया जाए, भले ही, उनके खिलाफ जाँच चल रही थी. मैंने उन्हें सलाह दी, “ऐसा करना उचित नहीँ है.”
हालांकि वे मेरी इस सलाह पर सहमत हो गए, मगर बाद में जब उन्होंने मेरे खिलाफ प्रधानमंत्री को पत्र लिखा तो उस शिकायती पत्र में उन्होंने मेरे ऊपर गुमराह कर हस्ताक्षर ले लेने का आरोप लगाया.
अंत में, प्रधानमंत्री द्वारा कोयला मंत्रालय का चार्ज लेने के बाद सरकार ने सीएमडी रैंक की सुपर-नुमरेरी पोस्ट को मंजूरी दी.15 सितम्बर 2004 को इस पोस्ट के लिए इंटरव्यू किया गया. पब्लिक एंटरप्राइजेज सेलेक्शन बोर्ड (पीईएसबी) ने मेरिट के आधार पर दो नामों की सिफारिश की. पहला नाम कार्यकारी चेयरमैन श्री शशि कुमार का था. श्री शशि कुमार के इंटरव्यू के पहले ही श्री सोरेन और श्री दसारी नारायण राव ने मंत्रालय ज्वाइन करते ही श्री कुमार से पहले एकमुश्त 50 लाख रुपए और फिर हर महीने 10 लाख रुपए भुगतान करने की मांग की, मगर श्री शशि कुमार ने साफ मना कर दिया.
श्री राव द्वारा श्री कुमार के खिलाफ कार्यवाही की शुरूआत
सेंट्रल विजिलेंस कमीशन यानि सीवीसी से क्लियरेंस मिलने के बाद मैंने श्री कुमार की नियुक्ति वाली फाइल 15 अक्टूबर को श्रीराव, राज्यमंत्री के पास सबमिट कर दी. 29 अक्टूबर को राज्य मंत्री ने कोल-इंडिया के लिए बारूद खरीदने में श्री कुमार की संदिग्ध भूमिका को लेकर फाइल वापस लौटा दी.
पीईएसबी और सीवीसी की सिफारिशों की अवमानना
श्री कुमार की सत्यनिष्ठता पर राज्यमंत्री द्वारा संदेह प्रकट करने के कारण एक बार फिर से कोल इंडिया के मुख्य सर्तकता अधिकारी से उनके बारे में रिपोर्ट मांगी गई और फिर से उनके विजिलेंस क्लियरेंस पर सीवीसी से सलाह ली गई.
जब सीवीसी ने यह विचार व्यक्त किया कि श्री शशि कुमार के खिलाफ कोई केस नहीं बनता तो मैंने उनकी नियुक्ति की फाइल को 24 दिसम्बर को फिर से कोयला मंत्री के पास अनुमोदन हेतु भेज दी. इस समय फिर से श्री सोरेन कोयला मंत्री बन चुके थे. दोनों मंत्रियों के निजी सचिवों ने श्री कुमार को मंत्रियों को एक डिनर पर बुलाया.बातचीत के दौरान उन्हें यह सुझाव दिया गया कि यदि वे स्वयं पैसे नहीं दे सकते तो कम से कम वह कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनियों के सीएमडी लोगों से पैसे लेने में एक बिचौलिये का काम तो कर सकते है.उन्हें यह समझाया गया कि पुराने सारे चेयरमैन मंत्रियों को पैसा देते रहे हैं.
मगर श्री कुमार ने ऐसा करने से भी मना कर दिया. प्रतिक्रियास्वरूप क्रोधित होकर राज्यमंत्री ने एक लंबा चौड़ा नोट लिखा और अंत में अपना निष्कर्ष निकालते हुए यह लिख दिया कि इस मामले में उन्हें सीवीसी की सलाह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और श्री कुमार को सीएमडी के पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता. श्री सोरेन ने राज्य मंत्री के प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए फाइल मुझे लौटा दी.
मंत्रियों द्वारा उठाए गए सारे मुद्दों का मैंने सटीक जबाब दिया और वह फाइल फिर से सबमिट की. उसमें मैंने यह लिखा कि पीईएसबी एक स्वतंत्र संस्थान है, जो सरकारी उपक्रमों के डायरेक्टर और चेयरमैन का चयन करती है. इसी तरह लोक सेवकों के विजिलेंस मामलों की जाँच करने वाली सबसे ऊँची संस्था है-सीवीसी. अत: पीईएसबी और सीवीसी की सिफारिशों के आधार पर चयनित श्री कुमार की नियुक्ति निरस्त नहीँ की जा सकती, इसलिए इस मामले पर पुनर्विचार किया जाए. राज्यमंत्री ने फिर से श्री कुमार की नियुक्ति को निरस्त करने के बारे में अपने विचार दोहराए और श्री सोरेन ने उन विचारों के साथ सहमति जताते हुए फाइल लौटा दी.
मैं मंत्रियों को अपनी बात समझाने में विफल रहा. मैंने मंत्रियों के मंतव्यों पर अपने विचार लिखकर फाइल डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग को एपांइटमेट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) के निर्णय के लिए भेज दी.
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मेरे एसीसी में केस भेज देने से नाराज दोनों मंत्रियों ने इस मामले को गंभीरता से मेरा स्पष्टीकरण मांगा और पूछा गया, ‘‘पैनल में दिए गए दूसरे नाम पर विचार के बिना ही सीधे शशिकुमार का प्रस्ताव डीओपीटी को क्यों भेज दिया गया?’’
शायद मंत्री लोगों ने दूसरे नंबर के केंडीडेट से सौदेबाजी शुरू कर दी थी. मुझे उन्हें भारत सरकार के बिजनेस रुल्स के प्रावधान दिखाते हुए समझाना पड़ा, ‘‘पीईएसबी की सिफारिशों के निरस्त करने का अधिकार केवल एसीसी को है, कोयला मंत्री को नहीँ. कोयला मंत्री इस कमेटी में केवल एक सदस्य है. दूसरे सदस्य गृहमंत्री और प्रधानमंत्री होते है. सेक्रेटरी की हैसियत से मेरा यह दायित्व बनता है कि मैं बिजनेस रुल्स का अनुपालन करूँ. इसलिए मैंने अपने बिजनेस रुल्स का पालन करते हुए सारे रिकॉर्ड एसीसी के दूसरे सदस्यों के पास विचारार्थ भेज दिए हैं.’’
मेरा स्पष्टीकरण सुनने के बाद में दोनों मंत्री निरुत्तर हो गए.
श्री कुमार की नियुक्ति पर एसीसी की स्वीकृति
कुछ ही दिनों बाद श्री सोरेन ने झारखंड का मुख्यमंत्री बनने के लिए कोयला मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया था. फिर से प्रधानमंत्री ने कोयला मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला. प्रधानमंत्री ने श्री राव और श्री सोरेन की सलाह को अनदेखी करते हुए कोल इंडिया के चेयरमैन के लिए श्री शशि कुमार के नाम पर अपनी सहमति प्रकट कर दी. प्रधानमंत्री ऐसा इसलिए कर सके, क्योंकि सोरेन ने त्यागपत्र दे दिया था. अगर सोरेन कोयला मंत्री रहते तो प्रधानमंत्री शायद ही ऐसा कर पाते.
कोयला मंत्री श्री शशि कुमार पर अनुचित दबाव डालने लगे. उनकी माँगें नहीँ मानने के कारण समय-समय उन्हें या तो प्रताड़ित करते या डराते-धमकाते. इतना होने के बावजूद भी श्री कुमार ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया. कोल इंडिया के अधिकांश अधिकारियों में ऐसा साहस नहीँ होता है. मंत्रियों की अवैध मांगों को मानने से इंकार करना हर किसी के वश में नहीँ होता है.
सरकारी उपक्रमों में बोर्ड लेवल के अधिकारियों की नियुक्ति पर मंत्रियों द्वारा पैसों मांगने का यह कोई इकलौता उदाहरण नहीँ है. बहुत सारे ऐसे अधिकारी हैं, जो मंत्रियों के संरक्षण में गलत काम करते हैं और दोनों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार पनपता हैं. मैं समझता हूँ कि सरकारी उपक्रमों एवं सरकारी विभागों में यह प्रायः आम बात है. इसलिए मुझे इस बात पर कोई खास आश्चर्य नहीँ हुआ, तब तत्कालीन रेलवे मंत्री पवन कुमार बंसल का भतीजा रेलवे बोर्ड में श्री महेश कुमार की सदस्य के तौर पर नियुक्ति के लिए रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गए थे.
इतना ही नहीँ, हमारे देश के औद्योगिक घरानों की बहुत सारी ऐसी पब्लिक रिलेशन एजेंसिया है, जो नियुक्ति पाने वाले अधिकारियों की ओर से रकम भुगतान करने को इच्छुक रहती है और बदले में उनकी नियुक्ति हो जाने के बाद अपना काम निकालती है. जिनकी नियुक्ति ही भ्रष्टाचार के आधार पर हुई हो, उन उपक्रमों और विभागों के मुखिया अपने संस्थान में क्या भ्रष्टाचार मिटा सकते हैं? वे तो आते ही अपने दोनों हाथों से माल बटोरने में लगेंगे.
शिखर पर राजनेताओं की संडांधता के कारण आज पूरे देश में भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया है. वे किस हद तक नीचे गिर चुके हैं, जिसकी आप कल्पना भी नहीँ कर सकते. आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री किरण कुमार रेड्डी को ऑल इंडिया सिविल सर्विस के प्रशिक्षुओं यह कहते हुए शर्म नहीँ आई कि आप लोगों को राजनैतिक भ्रष्टाचार पर चिंता करने की कोई जरूरत नहीँ हैं, क्योंकि राजनेता अपना धन चुनाव के दौरान जनता को वापस लौटा देते हैं. हमारे देश में राजनैतिक मापदंडों में इससे ज्यादा गिरावट की आखिरी हद और क्या हो सकती हैं?