कैप्टिव कोल ब्लॉकों का आवंटन
प्रकाश चन्द्र पारख | अुनवादः दिनेश कुमार माली
स्क्रीनिंग कमेटी के द्वारा प्राइवेट सेक्टर को कैप्टिव कोल ब्लॉक आवंटन करने की प्रक्रियासन 1993 में चालू हुई. मगर कैप्टिव माइनिंग के लिए कौन-कौनसे कोल ब्लॉक आवंटित किये जायेंगे, इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीँ दी गई थी. कोल ब्लॉक की ज्योलोजिकल रिपोर्ट एक गोपनीय दस्तावेज़ था और आवेदकों को इसकी पूरी जानकारी नहीं होती थी, वे लोग सी.एम.पी.डी.आई.एल. से चोरी-छुपे जानकारी हासिल करते थे. सन 1993 से 2002 तक केवल 15 ब्लॉक प्राइवेट पार्टियों को आवंटित किये गए थे अर्थात 1.5 ब्लॉक प्रतिवर्ष की दर से. अधिकतर ब्लॉकों के लिए आवेदकों की संख्या भी सीमित थी. धीरे-धीरे आवेदकों की संख्या बढ़ने लगी. सबको ब्लॉक मिल सके, इसलिए मंत्रालय ने उन ब्लॉकों को सब-ब्लॉकों में बाँटना शुरू कर दिया.
जब मैंने मंत्रालय का चार्ज लिया तब प्रत्येक ब्लॉक के लिए आवेदकों की संख्या काफी बढ़ गई थी, यद्यपि इकाई अंक से ज्यादा नहीँ थी. बहुत सारे आवेदक हर ब्लॉक के चयन के मापदंड पूरे कर रहे थे. इस वजह से उनका निष्पक्ष चयन करना मुश्किल हो रहा था.एक ब्लॉक को अनेक सब-ब्लॉकों में बाँटकर सभी योग्य आवेदकों को आवंटित करना न केवल अव्यावहारिक बल्कि गलत भी था. खुली बोली द्वारा आवंटन करना इस समस्या का अच्छा समाधान हो सकता था. इससे न केवल निर्णय लेने में पारदर्शिता आएगी,बल्कि सरकार को अतिरिक्त राजस्व की भी प्राप्ति होगी.
सरकार के पास पहले से ही कोयले के रिजर्व और गुणवत्ता पर आधारित सही तथ्यात्मक आँकड़ों वाली जियोलोजिकल रिपोर्ट उपलब्ध थी. सी॰एम॰पी॰डी॰आई॰एल डिटेल एक्सप्लोरेशन कर चुकी थी. अगर सभी संभावित बोली-कर्त्ताओं को जियोलोजिकल रिपोर्ट देने के बाद खुली बोली लगाई जाती है तो यह कोयले के ब्लॉक आवंटित करने का समरूप, निष्पक्ष, पारदर्शी और तर्क-सम्मत तरीका रहेगा. इसके अतिरिक्त, नीलामी की यह विधि उन कंपनियों के लिए भी न्याय-संगत रहेगी, जिन्हें कैप्टिव ब्लॉक नहीँ मिले है और जिन्हें या तो कोयला आयात करना पड़ रहा है या फिर कोल इण्डिया से कोयला लेना होता है.
प्रधानमंत्री के कोयला-मंत्री का अतिरिक्त प्रभार लेने से पहले ही मैंने इस विषय पर एक डिस्कशन पेपर बना लिया था. सभी स्टेक होल्डरों को ओपन डिस्कशन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया. इस डिस्कशन में उन सभी कंपनियों को आमंत्रित किया गया,जिनके आवेदन मंत्रालय में लंबे समय से लंबित थे. इसके अलावा,कॉनफेडरेशन ऑफ़ इंडस्ट्री (CII), फेडरेशन ऑफ इन्डियन चैम्बर्स ऑफ कॉर्मस एंड इंडस्ट्री (FICCI), फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्री (FIMI) एवं एसोसियेटेड चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इण्डिया (ASSOCHAM) और संबन्धित मंत्रालयों के अधिकारी भी इस विचार-विमर्श में शामिल हुए.
केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों की नीलामी के बारे में अलग-अलग राय थी,परंतु अधिकांश उद्योगपति और उद्योग संघ इस प्रक्रिया के पक्ष में नहीं थे. उनका मत था कि ई-नीलामी से कोल ब्लॉकों की कीमत बढ़ जाएगी, लेकिन यह पूरी तरह बेबुनियाद था. खुली नीलामी में प्रतिभागी अनुभवी व्यापारी थे और वे कभी इतनी ऊँची बोली नहीँ लगा सकते थे कि उनकी खदान से निकलने कोयले की कीमत कोल इण्डिया की कीमत से ज्यादा हो जाए. स्वाभाविक है कि इंडस्ट्री वाले कोई भी मुफ्त में मिलने वाली चीज के पैसे क्यों देना चाहेगा ? वास्तव में कुछ हद तक कोर्पोरेट इण्डिया भी पारदर्शिता के खिलाफ था.
स्टेक-होल्डरों के संशय के बावजूद मेरा यह विचार था कि आवंटन प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता लाने के लिए इससे अच्छा और कोई तरीका नहीं हो सकता. अतः मैंने पॉलिसी नोट बनाकर जुलाई माह के मध्य में कोयला राज्यमंत्री श्री दसारी नारायण राव के सन्मुख प्रस्तुत कर दिया.
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कैप्टिव कोल ब्लॉकों का आवंटन
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खुली बोली की प्रक्रिया की साथर्कता की जाँच हेतु मैंने कानून विभाग से सलाह ली. साथ ही साथ,मैंने सी॰एम॰पी॰डी॰आई॰एल को निर्देश दिए कि किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थान की मदद से इस हेतु बोली दस्तावेज बनाए जाए एवं मूल्यांकन के मापदंड निर्धारित किए जाए, ताकि कैबिनेट की स्वीकृति मिलते ही खुली बोली की कार्यवाही शुरू की जा सके. ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर कैप्टिव ब्लॉकों की तालिका अपलोड कर दी गई.
इसके अतिरिक्त, अखबारों में विज्ञापन के माध्यम से भी इस बारे में अधिकाधिक प्रचार-प्रसार किया गया. मुझे विश्वास था कि कैलेंडर वर्ष खत्म होते-होते नई प्रक्रिया लागू हो सकती है. मगर इसमें आने वाली बाधाओं का मुझे अंदाज नहीं था.कोयला राज्यमंत्री ने कुछ स्पष्टीकरण मांगते हुए वह फाइल लौटा दी. 30 जुलाई 2004 को मैंने उनके सवालों का सटीक जवाब देते हुए फिर से उस फाइल को प्रधानमंत्री (तब तक कोयला मंत्री का अतिरिक्त प्रभार ले चुके थे) को प्रस्तुत कर दी.
प्रधानमंत्री द्वारा खुली बोली का अनुमोदन
20 अगस्त 2004 को प्रधानमंत्री ने खुली बोली द्वारा आवंटन की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी. उन्होंने एक कैबिनेट नोट बनाने का आदेश दिया. प्रधानमंत्री की मंजूरी मिलने के कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से एक नोट आया, जिसमें खुली बोली द्वारा होने वाली समस्याओं का जिक्र किया गया था उसके साथ ही खुली बोली के विरोध में बहुत सारे सांसदों के पत्र भी आने लगे. उनमें श्री नवीन जिंदल भी एक थे.
कानून मंत्रालय द्वारा कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट में संशोधन के सुझाव
कोल माइंस नेशनलाइजेशन एक्ट की धारा 3(ए) और धारा 34 में प्रस्तावित संशोधन पर कानून मंत्रालय ने सितंबर 2004 को अपनी सलाह प्रदान की. कैबिनेट नोट प्रस्तुत करते समय मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा उठाए गए सभी सवालों पर तर्क-संगत टिप्पणियाँ दी. मैंने आवश्यक वैधानिक सुधारों के लिए अध्यादेश जारी करने की भी सलाह दी, ताकि खुली बोली द्वारा आवंटन की प्रक्रिया जल्दी से जल्दी शुरू की जा सके.
राज्यमंत्री द्वारा प्रस्ताव को टालना
4 अक्टूबर को प्रधानमंत्री को प्रेषित करते हुए राज्यमंत्री ने इस प्रस्ताव पर निम्न टिप्पणी लिखी:- “इस प्रस्ताव पर सहमत होना कठिन है कि स्क्रीनिंग कमिटी पारदर्शिता से निर्णय लेने में सक्षम नहीँ है. प्रतिस्पर्धात्मक बोली द्वारा आवंटन का प्रस्ताव खारिज कर दिया जाए, क्योंकि इससे कोल ब्लॉक आवंटन में और ज्यादा देरी होगी. कोल माइंस नेशनलाइजेशन एमेंडमेंट बिल, जिसमें वाणिज्यिक खनन के लिए कोल ब्लॉकों का प्रतिस्पर्धात्मक बोली द्वारा आवंटन करने का प्रस्ताव है, राज्य सभा में ट्रेड यूनियनों और अन्य के कठोर विरोध के कारण लंबित पड़ा हुआ है.”
यह टिप्पणी दो कारणों से महत्त्वपूर्ण थी पहला, प्रतिस्पर्धात्मक बोली द्वारा कोल ब्लॉकों के आवंटन की पद्धति और राज्य सभा में लंबित पड़े कोल माइन्स नेशनलाइजेशन एमेंडमेंट बिल का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीँ था. कोल सेक्टर ट्रेड यूनियन का विरोध वाणिज्यिक खनन निजी क्षेत्र के लिए खोलने से संबंधित था, खुली बोली से उनका कोई विरोध नहीं था. साफ जाहिर था कि इन असंगत मुद्दों को जोड़कर राज्यमंत्री जान-बूझकर भ्रम पैदा करना चाहते थे, ताकि निर्णय प्रक्रिया में देरी हो.
दूसरा, बाद में श्री शिबू सोरेन ने इसी टिप्पणी का प्रयोग करते हुए प्रधानमंत्री का खुली बोली द्वारा आवंटन करने के निर्णय को पलट दिया.
श्री राव द्वारा भ्रामक टिप्पणी लिखने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में इस विषय पर विचार-विमर्श के लिए एक बैठक हुई. इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 28 जून 2004 तक प्राप्त सभी आवेदन पत्रों पर निर्णय स्क्रीनिंग कमेटी की प्रचलित पद्धति द्वारा लिया जाए. इस बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में कैबिनेट नोट में आवश्यक संशोधन के निर्देश देते हुए वह फाइल वापस कोयला मंत्रालय को लौटा दी.
दिसंबर के अंत में मैंने आवश्यक स्पष्टीकरणों एवं संशोधनों के साथ वह कैबिनेट नोट फिर से कोयला राज्यमंत्री को पेश किया, जिन्होंने वह नोट श्री शिबू सोरेन के पास अग्रसरित कर दिया. जो उस समय तक फिर से कोयला मंत्री बन चुके थे. जनवरी का आधा महीना निकल गया, किंतु श्री सोरेन ने कैबिनेट नोट को स्वीकार करके फाइल वापस नहीं भेजी.