हसदेव अरण्य: कोयला, मुनाफ़ा और हक़ीकत
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के इलाके में बसे साल्ही गांव के रामलाल करियाम साफगोई से कहते हैं कि अब कोयला ज़रुरत और विकास से जुड़ा मुद्दा नहीं है. वाणिज्यिक उद्देश्य से कोयला खदानों की नीलामी का मतलब ही है कि अब जो चाहे, वो कोयले की नीलामी में भाग लेकर कोयले की खुदाई कर सकता है और उसे खुले बाज़ार में बेच सकता है.
असल में रामलाल करियाम की आशंका स्वाभाविक है.
सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त और 24 सितंबर 2014 को देश भर में आवंटित 204 कोयला खदानों को अवैध घोषित कर दिया था. इनमें छत्तीसगढ़ के 42 कोयला खदान भी शामिल थे.
इसके बाद केंद्र में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कोयला खान विशेष उपबंध अधिनियम, 2015 व खान और खनिज विकास और विनियमन अधिनियम, 1957 के तहत कोयला खदानों की नीलामी और आवंटन का काम शुरु किया.
केंद्र सरकार ने दावा किया कि कोयला का राष्ट्रीय हित में और सुसंगत तरीके से उपयोग करने के लिए नीलामी की प्रक्रिया अपनाई जा रही है. इससे भारी राजस्व भी मिलेगा. लेकिन हक़ीकत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
कोयला नीलामी और आवंटन के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि केंद्र सरकार ने सर्वाधिक कोयला खदान की नीलामी, मूल रुप से वाणिज्यिक उपयोग यानी खुले बाज़ार में बेचने के लिए किया है.
कोयले की नीलामी
2015 से 2019 तक कई दौर की नीलामी के बाद कुल 85 कोयला खदानों का आवंटन और नीलामी की गई. बाद में कोरोना लॉक डाउन के बीच, 18 जून 2020 को 41 वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरु की गई,
जिसमें से 59 मिलियन टन प्रति वर्ष उत्पादन क्षमता की 20 कोयला खदानों की नीलामी हो पाई. इसके बाद 73 वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी की सूचना जारी की गई.
कांग्रेस पर अरबों रुपये का कोयला घोटाला करने का आरोप लगाते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई अवसरों पर दावा किया कि उनकी सरकार ने अप्रैल 2015 तक ही 20 कोयला खदानों की नीलामी की और केवल उन्हीं बीस कोयला खदानों की नीलामी से सरकार को दो लाख करोड़ से अधिक का राजस्व मिला है.
लेकिन लोकसभा में 4 मार्च 2020 को श्याम सिंह यादव के प्रश्न के उत्तर में कोयला एवं खान मंत्री प्रल्हाद जोशी ने पिछले पांच सालों में कोयला खान की नीलामी के माध्यम से अर्जित राजस्व का जो आंकड़ा प्रस्तुत किया है, वह केवल 5329.17 करोड़ रुपये है.
इस साल 3 फरवरी को जयंत सिन्हा के सवाल के जवाब में प्रल्हाद जोशी ने स्वीकार किया है कि 19 वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी से अभी तक कोई भी राजस्व नहीं मिला है.
जोशी के अनुसार-“51 मिलियन टन प्रति वर्ष के कुल पीक रेट क्षमता स्तर पर उत्पादन को देखते हुए इन खदानों के शुरु हो जाने पर हर साल 6656 करोड़ रुपये का राज्य मिलने का अनुमान है. वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान राज्यों को कुल 262 करोड़ रुपये की अपफ्रंट राशि प्राप्त होगी.”
कोयला और क़ानून
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला कोयला खदानों की नीलामी को, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला और औद्योगिक घरानों का मुनाफ़ा बताते हुए कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों के लिए अधिकांश जगहों में, पांचवी अनुसूची इलाकों में ज़रुरी ग्राम सभा के लिए फर्ज़ी कागजों का सहारा लिया गया.
इसकी शिकायत भी की गई लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई.
वे बताते हैं कि जिन इलाकों में वन अधिकार क़ानून के तहत दावों की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई हो वहां किसी भी तरह के भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई नहीं की जा सकती है लेकिन छत्तीसगढ़ में इस क़ानून को तार-तार कर दिया गया.
आलोक कहते हैं-“घाटबर्रा के 32 किसानों की वन अधिकार की ज़मीन भी ख़रीद ली गई. सरकारी जांच में इसकी पुष्टि भी हुई लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसी तरह विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस पार्टी की सरकार जिस एमडीओ को सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बताती थी, उसी कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आते ही अडानी समूह के साथ पतुरिया और गिधमुड़ी का एमडीओ किया. आज की तारीख़ में सात कोयला खदानों का एमडीओ अडानी के पास है और सरकार इन एमडीओ की शर्तों को अब भी सार्वजनिक करने से बच रही है.”
वे सरकारी दस्तावेज़ों को दिखाते हुए बताते हैं कि राजस्थान की कांग्रेस पार्टी की सरकार ने भी छत्तीसगढ़ में आवंटित अपनी कोयला खदान को एमडीओ के तहत अडानी को दिया और भारत सरकार के उपक्रम कोल इंडिया की तुलना में, खुद को आवंटित खदान से लगातार महंगा कोयला ख़रीदती रही.
राजस्थान सरकार ने छत्तीसगढ़ में कोल इंडिया के उपक्रम साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड से जिस महीने 3405.19 रुपये प्रति टन में कोयले की ख़रीदी की, उसी महीने अपने ही खदान से कोयला ख़रीदने के लिए 3914.57 रुपये प्रति टन चुकाया.
इन मामलों में अडानी समूह का दावा है कि अडानी समूह कम से कम लागत पर अपनी विकास सेवाओं की पेशकश करने वाला एक सफल बोलीदाता के रूप में कार्यरत है और खनन अनुबंधों को, सक्षम अधिकारियों द्वारा निर्धारित नियमानुसार आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से दिया जाता है.
हालांकि विपक्ष में रहते हुए भूपेश बघेल इन अनुबंधों पर सवाल उठाते थे और इसे सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बताते थे. लेकिन 2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता में आते ही भूपेश बघेल की सरकार ने कुछ महीने के भीतर ही इसी अडानी के साथ कोयला खदान के लिए एमडीओ कहा.
मुनाफ़ा, उसकी हिस्सेदारी, बंदरबांट और विकास के सच को केवल सतह पर नज़र आने वाली लहरों से नहीं गिना जा सकता.