कोयला उत्खनन के MDO मॉडल पर फिर उठे सवाल
आलोक शुक्ला | रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र में कोयला खदान सम्बंधित MDO अनुबंध का मामला मुखर रूप से उठाया गया. ऐसा लगा हम फिर से 2018 से पहले के दौर में पहुंच गये, जब विपक्ष ने MDO मॉडल के ज़रिए हुए कोयला घोटाले को उठाकर सरकार को आड़े हाथों लिया था.
फर्क सिर्फ इतना है कि जो भूपेश बघेल पहले सवाल उठाते रहे थे, वे बचाव की मुद्रा में थे और मुख्यमंत्री रहते हुए जिन रमन सिंह पर घोटाले के आरोप थे, वही आज सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे थे. जन-हित और देश-हित की बात दोनों तरफ से तब भी कही गई और आज भी की जा रही है.
लेकिन इन तमाम सवालों के बाद भी MDO के बहाने चल रहे घोटाले के सवाल पिछले कई सालों की तरह अब भी अनुत्तरित हैं और इन पर कोई भी गंभीरता से बात नहीं करना चाहता. असल में इन सवालों के जवाब तलाशे जाएंगे तो हमाम में सभी नंगे जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी.
वास्तव में कोयला उत्खनन को लेकर न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में व्यापक जन विरोध रहा है. कारण बहुत साफ है कि इसका उत्खनन विशेषरूप से आदिवासी, ग्रामीण समुदाय के जीवन जीने के आधार जल-जंगल–जमीन और पर्यावरण विनाश की अनिवार्य कीमत पर होता है.
इसीलिए आज पूरी दुनिया में उर्जा जरूरतों को पूरा करने वैकल्पिक उर्जा को बढावा देने की मांग तेजी से उठ रही है.
भारत सरकार के सार्वजनकि क्षेत्र के उपक्रम कोल इंडिया लिमिटेड के आंकडों के अनुसार भारत की वर्ष 2030 तक कोयला जरूरतों के लिए किसी नई खदान की आवश्यकता ही नहीं है. ऐसे में नई खदानों में MDO अनुबंध के मॉडल का उपयोग गम्भीर सवाल खड़े करता है. दरअसल कोयला खनन ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के साथ कार्पोरेट मुनाफे का बड़ा स्रोत रहा है. यही कारण है कि कोयला खनन के लिए बनाई गई नीतिया कॉरपोरेट हितों की पोषक रही है, कमरशियल माईनिंग इसका ज्वलंत उदहारण है.
MDO अनुबंध की कॉरपोरेट परस्त नीति
वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने कोलगेट घोटाले पर अपने ऐतिहासिक आदेश में इस बात पर चिंता जताते हुए लिखा था कि कोयला उत्खनन सिर्फ देश की जरूरतों के लिए ही होना चाहिए, मुनाफा के लिए नहीं.
न्यायालय ने कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए न सिर्फ पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने के लिए कहा बल्कि खनन में सत्ता और कार्पोरेट के गठजोड़ को भी ख़त्म करने के लिए नीतियाँ बनाने पर जोर दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात विशेष रूप से उस सन्दर्भ में कही थी, जिसमें विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ निजी कंपनियों को जॉइंट वेंचर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होने के वाबजूद इन प्रावधानों का उल्लंघन किया गया. जॉइंट वेंचर बनाकर निजी कंपनियों को पिछले दरवाजे से कोयले का अवैध लाभ हुआ.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम 2015 बनाया, जिसमें पूर्ण रूप से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विपरीत प्रावधान किए गए. कोयला मंत्रालय ने सिर्फ एक आदेश के जरिए MDO (माइंस डेवलपर कम आपरेटर) अनुबंध इजाद किया, जिसने पिछले दरवाजे से कुछ चुनिन्दा कम्पनियों को कोल ब्लॉक हासिल करने का रास्ता तैयार कर दिया.
आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ छत्तीसगढ़ में 14 कोल ब्लॉक केंद्र व राज्य सरकारों के सार्वजनिक उपक्रमों को आवंटित हैं, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता लगभग 134 मिलियन टन वार्षिक है. इसमें लगभग 75 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन क्षमता के कोल ब्लॉक निजी कंपनियों के साथ MDO अनुबंध किए गए हैं. दिलचस्प यह है कि ये सभी अनुबंध लगभग एक ही कम्पनी ने हासिल किए.
विधानसभा में सबने कहा- MDO अनुबंध लाभप्रद नहीं
छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में 9 मार्च 2021 को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सवाल पर वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जवाब प्रस्तुत कर रहे थे. सवाल रायगढ़ स्थित गारे पेलमा-3 कोल ब्लॉक से प्राप्त कोयले की कीमत से संबंधित था. यह कोल ब्लॉक छत्तीसगढ़ पॉवर जनरेशन कंपनी को आवंटित है, जिसके विकास व खनन के लिए वर्ष 2017 में स्वयं रमन सिंह ने MDO (माइंस डेवलेपर कम आपरेटर) का अनुबंध अडानी इंटरप्राइसेस कंपनी के साथ किया था.
सत्र में चर्चा के दरम्यान रमन सिंह ने स्वयं स्वीकार किया कि गारे पेलमा से सस्ता कोयला SECL (South eastern coal field limited ) से मिल रहा है तो हम यह महंगा कोयला अर्थात MDO कंपनी से क्यों ले रहे हैं ? इसका जबाव प्रस्तुत करते हुए वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि सारा कार्य आपके (रमन सिंह) के कार्यकाल में हुआ, MDO इनके कार्यकाल में हुआ, हम तो बस क्रियान्वित कर रहे हैंl
विधानसभा में हुए इस महत्वपूर्ण संवाद से यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि मोदी सरकार द्वारा खनन क्षेत्र में इजाद किया गया MDO अनुबंध न तो सार्वजनिक कम्पनियों के लिए लाभप्रद है और न ही उपभोक्ता के लिए. कारण भी बहुत स्पष्ट है कि इससे सस्ता कोयला, आज भी देश की नवरत्न कम्पनी कोल इण्डिया उपलब्ध करा रही है.
दरअसल केन्द्रीय PSU या राज्य सरकार की सार्वजनिक कंपनियों को कोल ब्लॉक इसलिए ही आवंटित किए जाते हैं, ताकि इन्हें सस्ते दर पर कोयला मिल सके और उपभोक्ता को सस्ती दर पर बिजली मुहैया कराई जा सके. परन्तु कंपनियों द्वारा स्वयं खनन करने के बजाए MDO अनुबंध इस पूरी मंशा को ही ख़त्म कर देता है.
विपक्ष में छत्तीसगढ़ कांग्रेस द्वारा MDO का भारी विरोध
छत्तीसगढ़ विधानसभा में जिस बात को स्वीकार किया गया, उसे विपक्ष में रहते हुए छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में भूपेश बघेल मुखरता से न सिर्फ उठाते रहे थे बल्कि उन्होंने इसे हजारों करोड़ का घोटाला भी बताया था.
भूपेश बघेल ने अपने आरोपों में कहा था कि राज्य सरकारों को आवंटन के जरिये कोल ब्लॉक देने से छत्तीसगढ़ को राजस्व की हानि हो रही है. छत्तीसगढ़ में भाजपा शासित राज्य सरकारों ने अपने कोल ब्लॉक को MDO के माध्यम से अडानी कम्पनी को सौंप दिये.
कांग्रेस द्वारा भाजपा पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को और अधिक बल मिला जब वर्ष 2018 में केरेवान पत्रिका ने एक रिपोर्ट प्रकाशित कीl इस रिपोर्ट के अनुसार सरगुजा में स्थित परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक (PEKB) से अडानी कंपनी द्वारा राजस्थान सरकार को आपूर्ति किया जा रहा कोयला, कोल इंडिया के उपक्रम SECL की तुलना में काफी महंगा है और 276 रूपये प्रति टन अतिरिक्त भुगतान किया जा रहा है.
फिर अडानी की शरण में
छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र में कुछ महत्वपूर्ण सवाल सदस्यों द्वारा पूछे गए. हालाँकि चर्चा में नहीं आने के कारण इन सवालों पर कोई विशेष ध्यान लोगों का नहीं गया और न ही मीडिया ने इस पर लिखा. “हसदेव अरण्य क्षेत्र” में स्थित पतुरिया गिदमुड़ी कोल ब्लॉक के खनन से जुड़ा मामला भी इन्हीं सवालों में से एक था.
इसका विस्तृत लिखित जवाब स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिया क्योंकि खनन विभाग उन्हीं के पास है.
जवाब में बताया गया कि पतुरिया गिदमुड़ी कोल ब्लॉक जो छत्तीसगढ़ सरकार के ही एक उपक्रम छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी को आवंटित है, विकास और खनन प्रक्रिया हेतु MDO नियुक्ति के लिए प्रतिस्पर्धात्मक निविदा बुलाई गई थी. जिसके उपरांत माइंस डेवलपर कम आपरेटर MDO के रूप में अडानी इंटरप्राइसेस लिमिटेड और सैनिक माइनिंग एंड एलायड सर्विसेस लिमिटेड का चयन किया गया.
AEL-SMASL के द्वारा संयुक्त उद्यम मेसर्स पतुरिया गिदमुड़ी कोलरीज प्राइवेट लिमिटेड एवं छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कम्पनी के मध्य कोल माइनिंग सर्विसेस एग्रीमेंट दिनांक 2 मई 2019 को निष्पादित किया गया. इसमें यह भी जानकारी दी गई कि छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कम्पनी की ओर से MDO कंपनी समस्त स्वीकृति हासिल कर, खनन कार्य कर, 848 रूपये प्रति टन की दर से कोल हेंडलिंग प्लांट तक कोयला पहुंचाएगा. परिवहन आदि भुगतान इसमें शामिल नहीं हैं.
इस अनुबंध के अनुसार कोयला उपलब्ध कराने की दर गारे पेलमा कोल ब्लॉक से लगभग दोगुनी है. यहाँ महत्वपूर्ण सवाल है कि जब 488 रूपये प्रति टन की दर से MDO कंपनी से प्राप्त कोयला SECL से भी महंगा है, उस स्थिति में 848 रूपये टन की दर उसे दोगुना अधिक महंगा नहीं कर देगा? महंगी दर पर प्राप्त कोयले से बिजली उत्पादन क्या किसी भी कंपनी या राज्य सरकार के लिए लाभप्रद होगा??
सूचना के अधिकार कानून के तहत MDO की प्रति देने से इंकार
सूचना का अधिकार कानून के तहत इन पंक्तियों के लेखक ने पतुरिया गिदमुड़ी कोल ब्लॉक के खनन अनुबंध की प्रति एक वर्ष पूर्व ही जनरेशन कम्पनी के मांगी थी, लेकिन इस आवेदन को यह कहकर अस्वीकार्य कर दिया गया कि यह व्यापार और गोपनीयता का मामला है जो व्यापक जनहित से जुड़ा नहीं है.
हालाँकि स्वयं राज्य सूचना आयोग ने रायगढ़ जिले में स्थित गारे पेलमा 3 कोल ब्लॉक के मामले में छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी को मई 2019 को आदेश दिया था कि MDO दस्तावेज सार्वजनिक हित से जुड़ा है और इसे RTI में प्रदान किया जाये. वाबजूद इसके पॉवर जनरेशन कम्पनी ने पतुरिया गिदमुड़ी के खनन अनुबंध को प्राप्त करने के आवेदन को अस्वीकार कर दिया.
किसको नफा किसको नुकसान ?
इन तथ्यों से यह बात तो बहुत साफ है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस, दोनों सरकारों द्वारा MDO नीति से जुड़े अहम तथ्यों को छुपाया जा रहा है. भाजपा–कांग्रेस दोनों ने ही इसमें पारदर्शिता तथा जनहित के अभाव को विपक्ष में रहते हुए स्वीकारा है.
ऐसे में सहज यह सवाल है कि इस नीति से कहीं चुनिंदा कॉरपोरेट समूह को लाभ पहुंचाने की कोशिश तो नहीं की जा रही है ? कहीं जन-हित का नारा देकर छत्तीसगढ़ की मासूम जनता से छलावा तो नहीं किया जा रहा ?
MDO नीति के तहत उत्खनन कंपनी को कम दाम पर खदान दिया जाता है तो इसका सीधा प्रभाव राज्य के राजस्व में कटौती के रूप में देखा जा सकता है.
वहीं दूसरी ओर अगर MDO उपबंध के ज़रिये अधिक दर पर कोयला खरीदा जाता है, जैसा कि परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक (PEKB) में देखा गया और पतुरिया गिदमुड़ी के प्रति टन दर में देखा जा सकता है, तो इसके फलस्वरूप राज्य की जनता को अधिक बिजली-दर चुकानी पड़ेगी.
लेकिन इस पूरी कवायद में सर्वाधिक नुकसान तो खदान-क्षेत्र के आदिवासी समुदाय को झेलना होगा, जिन्हें केवल कॉरपोरेट मुनाफे के लिये विस्थापित करने की तैयारी चल रही है. जनता के संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हुए, ग्राम सभा की असहमति के बावजूद किए गये अनुबंध बताते हैं कि आदिवासी अब भी हाशिये पर रहने को अभिशप्त हैं और सरकार की नीतियों का पलड़ा, अभी तो कॉरपोरेट की तरफ़ पूरी तरह और बुरी तरह, झुका हुआ है.