मीडिया ने बिछड़ों को मिलाया
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: बीबीसी की बदौलत चीन का एक बिछड़ा सैनिक अपने वतन लौट सका. करीब पांच दशक पहले चीनी सैनिक वांग छी भटक कर भारतीय सीमा में घुस आया था. उसके बाद उसने लाख कोशिशें की परन्तु अपने देश वापस न जा सका. शनिवार को ही वह अपने वतन पहुंच गया. गौरतलब है कि भारतीय सीमा में घुस आने के बाद वह पकड़ा गया था तथा पहले तो उसे जेल में रखा गया उसके बाद मध्यप्रदेश के बालाघाट में छोड़ दिया गया. वहां पर उसने अपना घर भी बसा लिया.
वांग ने अपनों से मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. इस बीच बीबीसी हिन्दी ने उसके बारें में क्रमवार खबरें छापनी शुरु की. हफ्ते भर में ही वांग अपने घर पहुंच गया. दरअसल, 77 साल के वांग को 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद भारतीय क्षेत्र में घुसते हुए पकड़ा गया था. बाद में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. बीबीसी में खबर छपने के बाद विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से उन्हें मिली मदद से यह संभव हुआ है.
जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें उम्मीद थी कि वो कभी चीन जा पायेंगे? वांग छी ने कहा, “मैंने इंदिरा गांधी के समय दरख़्वास्त की थी कि या तो मुझे चीन भेज दो या भारत का नागरिक बना दो. मैंने हज़ारों अर्ज़िया लगाईं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मैंने हाई कोर्ट में केस भी किया. चीन के राजदूत से संपर्क भी किया लेकिन कोई मदद नहीं मिली.”
बीबीसी का शुक्रिया करते हुए कहा, “बीबीसी के खरे साब को कहीं से मालूम हो गया. मेरी स्टोरी सुनी तो उन्हें बहुत दुख हुआ और वो मेरे घर आये. मेरी पूरी कहानी सुनी और छापी. उसके बाद पूरे संसार को पता चल गया. सरकार को भी लगा कि इस आदमी को ज़रूर भेजो. इससे हमारी चीन जाने की उम्मीदें ताज़ा हो गईं.”
वांग छी ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी शुक्रिया अदा किया. राज्यसभा सांसद तरुण विजय वांग छी से मिलने एयरपोर्ट पहुंचे थे.
उन्होंने कहा, “इससे बढ़कर दुनिया में मानवीय मूल्यों की कोई विजय नहीं हो सकती. ये भारत-चीन संबंधों में मैत्री की सर्वश्रेष्ठ कथा है. मैं इन्हें भारतीय जनता की ओर से शुभकामनाएं देने आया हूं. ये एक महान घर वापसी है. इसकी सुगंध हमेशा भारत-चीन संबंधों में रहेगी.”
वांग छी जिस समय भारत आया था उस समय के और आज के चीन में बहुत बदलाव आ गया है. अब पीकिंग को बीजिंग कहा जाता है. इसके अलावा भी वहां पर अब बड़ी-बड़ी इमारतें बन गई हैं. वांग छी ने तो अपने वतन वापस लौटने की उम्मीद ही छोड़ दी थी परन्तु मीडिया ने उसे अपनों से मिला दिया, करीब पांच दशक बाद. जाहिर है कि वांग छी के अपने गांव लौटने पर वहां के लोग भारतीयों के बारें में जान पायेंगे.