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छत्तीसगढ़ एनीमिया बढ़ोत्तरी में नंबर-1, 67.2% बच्चे एनीमिया ग्रस्त

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में 67 फ़ीसदी से अधिक बच्चे एनीमिया यानी ख़ून की कमी के शिकार हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में 6-59 माह के 41.6% बच्चे एनीमिया से ग्रस्त थे. लेकिन 2019-21 में यह आंकड़ा बढ़ कर 67.2% पर पहुंच चुका है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की तुलना में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में एनिमिक बच्चों की बढ़ोतरी में पूरे देश में छत्तीसगढ़ सर्वाधिक 25.6% बढ़ोतरी के साथ पहले स्थान पर है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडो अनुसार महिलाओं में 12.0 ग्राम से कम हिमाग्लोबिन की मात्रा और गर्भवती महिलाओं में 11 ग्राम से कम मात्रा एनीमिया के संकेत है. बच्चों में 6-59 माह के लिए यह मात्रा 11 ग्राम और 6-14 साल के आयु के लिए 12 ग्राम है.

हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, वर्ष (2020 -2021) के द्वितीय चरण में छत्तीसगढ़ के आकड़े जारी हुए है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में देश के 36 राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों में से 9 राज्य में 70% से अधिक 6-59 माह के बच्चों में एनीमिया पाया गया है.

सिर्फ केरल राज्य में में यह 40% से कम है और सबसे ज्यादा गुजरात में 79.7% है. छत्तीसगढ़ में यह 67.2% है.

सभी अन्य वर्गों की तुलना में 6-59 माह में एनीमिया में सर्वाधिक बढ़ोतरी हुई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की तुलना में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में, 29 राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों में 6-59 माह के एनिमिक बच्चों की संख्या बढ़ना चिंताजनक है.

लगभग 8.5 से बढ़कर यह राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (2005-06) में दर्ज आंकड़ों के बराबर हो गई है. यानि कि एनीमिया से लड़ाई में एक दशक पहले हम जहां खड़े थे, आज वापस वहीं पहुंच गए है.

आंकड़ों को देखें तो छत्तीसगढ़ में 6-59 माह के बच्चों में 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 41.6% बच्चे एनीमिया से ग्रस्त थे. ताज़ा आंकड़ों में यह बढ़ कर 67.2% हो गया है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 15 से 19 वर्ष की 45.5% किशोरी एनिमिया ग्रसित थी, जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में बढ़कर 61.4% तक पहुंच गई हैं. वहीं एनीमियाग्रस्त किशोरों का प्रतिशत 27.4% से बढ़ कर 31.5% पहुंच चुका है.

राज्य में 15-49 वर्ष की 41.5% गर्भवती किशोरी/महिला राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में एनिमिया पीड़ित थीं, उनका आंकड़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में 51.8% पहुंच गया.

2015-16 में 15-49 वर्ष की 47.3% सामान्य महिलाओं में एनिमिया था, जो 2019-21 में बढ़ कर 61.2% पहुंच गया.

यहां तक कि पुरूषों में एनिमिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 22.1% से बढ़कर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में 27.0% पहुंच गया.

ये आंकड़े बताते हैं कि एनीमिया से लड़ने में पूरे देश में छत्तीसगढ़ फिसड्डी साबित हुआ है.

सभी वर्गों में एनीमिया ग्रसित लोगों में लगभग 4 % से 25 % तक की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. खासकर 6 -59 माह के बच्चों में एनीमिया का स्तर चिंताजनक बना हुआ है.

अन्य आयु वर्गों की तुलना करे तो भी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की तुलना में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 एनिमिया से लड़ने में पीछे रह गया है. किशोरी युवती एवं गर्भवती महिलाओ में बड़ी संख्या में एनीमिया होने का सीधा असर बच्चों में एनीमिया के रूप में देखा जा सकता है.

बस्तर

वर्षभाजपाकांग्रेस
202445.5%40.02%
201941.5%51.4%
201452.8%35.8%
200944.2%26.4%

क्यों होता है एनीमिया

एनीमिया का सबसे आम कारण पोषक तत्वों की कमी है. लोहतत्वयुक्त भोजन का अपर्याप्त सेवन, शरीरद्वारा लोह के उपयोग में समस्या, खूनसंबन्धित बीमारिया, अनुवांशिक बीमारिया, संक्रमण, आतंरिक अवयवों में या किशोरी एवं महिलाओ में मासिकस्राव, एक वर्ष या कम आयु के शिशुओं में गाय या बकरी के दूध के सेवन से शरीर में खून की कमी की समस्या हो सकती है.

देश में आधे से अधिक एनीमिया का कारण कण आयरन का सेवन है. विटामिन B9 (फोलेट) और B12 का अपर्याप्त सेवन भी एक प्रमुख कारण है. ऐसे तो कोई भी व्यक्ति एनीमिया से ग्रसित हो सकता है परन्तु इसका अत्याधिक प्रभाव दो साल से कम आयु के बच्चे, किशोरी युवती अवं गर्भवती महिलाओ पर पाया जाता है.

थकान या कमजोरी होना इसका सामान्यत: पाया जाने वाला असर है. परंतु शिशुओं और बच्चों में विकास पर इसका गहरा असर पड़ता है. छत्तीसगढ़ में जहां 40 फीसदी से अधिक आबादी एनीमिया से ग्रसित है, तो यह गंभीर सार्वजनिक समस्या है.

हिमाग्लोबिन का निम्न स्तर उत्पादकता पर प्रतिकूल असर करता है और कई बार मृत्यु का कारण भी बनता है. लैंसेट के एक अध्ययन के अुनसार बच्चों विकलांगता का बड़ा कारण आयरन की कमी से एनीमिया है. साथ ही 20 फीसदी मातृमृत्यु का कारण एनीमिया होता है और 50 फीसदी मातृत्व मौतों में सहयोगी कारण होता है.

रास्ता किधर है

विशेषज्ञों का कहना है कि किशोरी युवती एवं गर्भवती महिलाओ में आयरन और फोलिक एसिड की मांग बनाने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी, शिक्षा और संचार पर जो दिया जाना चाहिए. गर्भवती माता को अपने बच्चे पर एनीमिया के प्रभाव के बारे में जानेगी तो वो निश्चित रूप से पूरक लेना नहीं भूलेंगी.

इन खुराक के संभावित दुष्प्रभाव जैसे की काला मल और मतली के बारे में पूर्वसूचित करने से अनुपालन में सुधार हो सकता है. सरकारी खाद्यान्न योजना के अंतर्गत सभी वर्गों को चावल के साथ पर्याप्त मात्रा में प्रति व्यक्ति मापदंड पर दाल का वितरण हों चाहिए.

आंगनवाड़ी एवं स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में विटमिन B9 एवं B12 दे भरपूर भोजन के वितरित करना चाहिए तथा अंडा पुनर्वितरण पर विचार होना चाहिए. आयरन एवं फोलिक एसिड सप्प्लिमेंट्स के नियमित वितरण के साथ सेवन पर जोर देना पड़ेगा.

साथ ही परजीवी से होइने वाले क्षरण से बचने डी-वर्मिंग टेबलेट्स का नियमित अन्तराल पर सेवन जरुरी है.

एनीमिया ने छत्तीसगढ़ के सभी आयु वर्गों को जकड़ में लिया है, ऐसे में पूरे परिवार के पोषण पर ध्यान देना जरुरी है. इसलिए सिर्फ खाद्यान्न एवं सप्लीमेंट्स के भरोसे इस समस्या का हल संभव नहीं है. परिवार के आय वृद्धि के लिए रोजगार सृजन पर जोर देने की अत्यधिक आवश्यकता है.

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