बेरोजगारों को रोजगार चाहिये
त्वरित टिप्पणी- योगेश साहू की खुदकुशी छत्तीसगढ़ के बेरोजगारों में व्याप्त निराशा को दिखाती है. खुद छत्तीसगढ़ के रोजगार कार्यालय के अनुसार पंजीकृत बेरोजगारों में से साल 2015 में महज 0.54 फीसदी को ही रोजगार मिल सका है. साल 2015 में छत्तीसगढ़ के रोजगार कार्यालय में 2 लाख 78 हजार 258 बेरोजगार पंजीकृत थे उसमें से केवल 1 हजार 508 को ही नियुक्ति मिल पाई है.
इसी तरह से साल 2014 में पंजीकृत 2,82,553 में से 1,043 को, साल 2013 में 2,04,583 में से 776 को, साल 2012 में पंजीकृत 2,71,986 पंजीकृत में से 296 तथा साल 2011 में पंजीकृत 2,28,417 में से 2,032 को नौकरी मिल पाई थी.
यह आकड़ा सरकार के पास पंजीकृत बेरोजगारों का है. जिन्होंने सरकारी रोजगार कार्यालय के माध्यम से रोजगार के लिये आवेदन किया था. इससे पूरे छत्तीसगढ़ के बेरोजगारों के बारें में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता क्योंकि बड़ी संख्या में नवयुवक सरकार के रोजगार कार्यालय में पंजीकरण नहीं कराते हैं. हां, इससे उन बेरोजगारों की उस संख्या तथा सरकार के पास रोजगार देने की क्षमता का जरूर आभास हो जाता है जो इसके लिये सरकार के भरोसे बैठे हैं.
केन्द्र सरकार के श्रम तथा रोजगार मंत्रालय के द्वारा साल 2013 में जारी आकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी की दर देश में सबसे कम है. इस रिपोर्ट के अनुसार उस समय छत्तीसगढ़ में 15-29 साल आयुवर्ग में 1000 में केवल 33 बेरोजगार थे जबकि कर्नाटक में 52, गुजरात में 59, मध्य प्रदेश में 60, मिजोरम में 78 तथा सिक्किम में सबसे ज्यादा 372.
बात हो रही थी छत्तीसगढ़ के बेरोगजारों में व्याप्त निराशा की जिसके फलस्वरूप योगेश साहू ने खुदकुशी की है. जरूरत है छत्तीसगढ़ में बेरोजगारों के लिये रोजगार उपलब्ध करवाने की. इसके लिये राज्य सरकार ऐसे उद्योगों को प्राथमिकता दे जिससे सघन रोजगार मिलता हो न कि राज्य के प्राकृतिक संशाधनों का दोहन करके कोई उद्योगपति मुनाफा दिगर राज्य में ले जाता हो और छत्तीसगढ़ के गांव के बेरोजगार दिगर राज्यों में नौकरी की खोज में जाकर वहां बंधुवा बना लिये जाते हों.
बेरोजगारी पर राजनीति होनी चाहिये और जमकर होनी चाहिये. परन्तु उसका उद्देश्य राज्य के बेरोजगारों को रोजगार देना हो न ही यह कहा जाना चाहिये कि इससे पहले किसी ने क्या मुख्यमंत्री निवास के सामने खुदकुशी नहीं की है या आत्मदाह एक साहसिक कदम है.