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जोगी की ‘आदिवासी एक्सप्रेस’

रायपुर | समाचार डेस्क: छत्तीसगढ़ में जोगी की ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ से दूसरे दलों को नुकसान हो सकता है. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की नई पार्टी बनाने की तैयारी का असर जहां पूरे प्रदेश की राजनीति पर पड़ने की संभावना है, वहीं पूर्व सांसद सोहन पोटाई के भाजपा छोड़कर नई पार्टी बनाने का ज्यादा असर आदिवासी बहुल इलाके यानी बस्तर और सरगुजा में हो सकता है. एक ओर जोगी एक्सप्रेस पर सवारी करने के लिए तीन दलों ने अपनी सहमति दे दी है तो वहीं पोटाई की आदिवासी एक्सप्रेस अभी भी पटरी पर नहीं आई है.

इंटरनेट पर छाये जोगी

जानकारों का मानना है कि पोटाई का असर बस्तर में अधिक पड़ सकता है, लेकिन वहां भाजपा पहले ही कमजोर है. इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है. जोगी एक्सप्रेस के बारे में कहा जा रहा है कि यह भाजपा को ज्यादा ‘डैमेज’ कर सकती है, क्योंकि अनुसूचित जाति की 10 में से 9 सीटें भाजपा के पास हैं.

कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने की राह पर चल पड़े पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने सभी छोटे दलों को उनके साथ एक जुट होने का पहले ही आह्वान कर चुके हैं. अब तक तीन दलों के लोगों ने नई पार्टी बनने पर उनके साथ विलय करने की सहमति दे दी है. वहीं आधा दर्जन पार्टियां ऐसी हैं जो जोगी की नई पार्टी बनने का इंतजार कर रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में जोगी को नकारा नहीं जा सकता

जोगी के कांग्रेस छोड़ने की घोषणा के बाद से ही छोटी पार्टियों के प्रमुख जोगी से संपर्क साधने लगे. कांग्रेस छोड़ने के पहले ही स्वाभिमान मंच के महेश देवांगन ने जोगी से मुलाकात कर उनके नेतृत्व पर आस्था जताई थी. उन्होंने नई पार्टी बनने के साथ ही समर्थकों सहित पार्टी में जाने की घोषणा पहले ही कर दी. वहीं काफी संख्या में पूर्व विधायकों ने जोगी के नेतृत्व में आस्था जताई है.

जोगी का दावा अगली सरकार उनकी

जनता दल के प्रदेश सचिव ऋषभ भगत के साथ उनके समर्थक कुछ दिनों पहले जोगी निवास अनुग्रह पहुंचे और नई पार्टी बनने के साथ ही पार्टी का विलय जोगी की नई पार्टी में विलय किए जाने की घोषणा है. कांग्रेस से अलग होकर पिछड़ा वर्ग संगठन बनाने वाले सूरज निर्मलकर ने पहले ही जोगी से जुड़ने की घोषणा कर दी.

उल्लेखनीय है कि जोगी शासन काल में निर्मलकर उनके करीबियों में शामिल थे.

छत्तीसगढ़िया पार्टी के अध्यक्ष देवराज साहू ने रविवार को जोगी से मुलाकात की थी और उन्हें नई पार्टी बनाने के लिए शुभकामनाएं दी थीं. इसके साथ ही उन्होंने जोगी से नई पार्टी में अपनी पार्टी का विलय करने की इच्छा जताई. जोगी ने उन्हें इसके लिए सहमति दे दी है.

छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ समाज पार्टी व अन्य अभी जोगी के नई पार्टी के गठन का इंतजार कर रहे हैं.

जोगी खेमे के मुताबिक, जल्द ही जोगी अपने पार्टी के नाम की घोषणा कर देंगे. पार्टी की घोषणा होने के बाद इन दलों के लोग जोगी के साथ मिलकर या गठजोड़ कर चुनाव की तैयारी कर सकते हैं.

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की नई पार्टी की सुगबुगाहट के बीच कांग्रेस और भाजपा विधानसभा चुनाव में पड़ने वाले असर का आकलन शुरू कर दिया है. भाजपा के बागी सांसद सोहन पोटाई और वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम की ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ का बस्तर में संभावित असर को लेकर दोनों पार्टियों में मंथन शुरू हो गया है.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के आलावा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की नई पार्टी महत्वपूर्ण भूमिका में रहेगी. ऐसे में ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ बस्तर की 12 विधानसभा सीट पर खासा असर डाल सकती है.

रमन के लिए खतरे की घंटी

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बस्तर की 12 सीट में से कांग्रेस को आठ और भाजपा को चार सीट पर जीत मिली थी. इसमें छह विधानसभा में हार-जीत का अंतर पांच से छह हजार वोट हैं. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो अजीत जोगी के हर विधानसभा में लगभग पांच से दस हजार वोटर हैं. ऐसे में आदिवासियों की नई पार्टी आने के बाद बस्तर के राजनीति समीकरण उलट जाएंगे.

भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, कोंटा, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, कांकेर में कांग्रेस को पांच हजार वोट से जीत मिली है. ऐसे में ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ चलने से भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा होगा. बताया जा रहा है कि बस्तर की जिन चार सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की है, वहां हार-जीत का अंतर दस हजार वोट से ज्यादा है. ऐसे में भाजपा का आंकलन यह है कि जोगी की नई पार्टी और ‘आदिवासी एक्सप्रेस’ भाजपा के लिए फायदे का सौदा हो सकती है.

#AjitJogi ममता बनर्जी बन पायेंगे ?

सोहन पोटाई और अरविंद नेताम के प्रभाव वाली विधानसभा कांकेर, केशकाल, भानुप्रतापुर, कोंडागांव और अंतागढ़ में से चार सीट पर कांग्रेस के विधायक हैं. ऐसे में यह आकलन किया जा रहा है कि इन चारों विधानसभा में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

माना जा रहा है कि मंतूराम प्रकरण के बाद कांकेर क्षेत्र में कांग्रेस अब तक उबर नहीं पाई है. विधानसभा चुनाव में झीरम कांड के असर के कारण भी कांग्रेस की सीट बढ़ी थी.

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