परेशान स्कूली बच्चों के पालक
बिलासपुर | संवादादाता: बिलासपुर शहर में इन दिनों ऑटो वालों पर कड़ाई से स्कूली बच्चों के अभिवाहक परेशान हैं. उनकी परेशानी यह है कि वे सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने तो जा सकते हैं परन्तु 12 बजे, 1 बजे दोपहर को जब उनकी छुट्टी होती है तो ऑफिस छोड़कर उन्हें लाने कैसे जाये. जी हां, इन दिनों सुबह होते ही बिलासपुर के डीएव्ही, भारत माता तथा अन्य स्कूलों के सामने जाम की स्थिति निर्मित हो जा रही है.
वजह है कि जो बच्चे पहले ऑटो में बैठकर आत-जाते थे उन्हें लाने ले जाने के लिये उनके अभिवाहक दो पहिया-चार पहिया वाहनों में आ जा रहे हैं.
पुलिस-प्रशासन ने सड़क दुर्घटनाओं पर लगाम लगाने के लिये कड़ाई से ऑटो में बच्चों को ठूंस-ठूंसकर भरे जाने के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. ऑटो में तीन से ज्यादा बच्चों को बैठाने पर रोक लगा दी गई है. पुलिस सड़कों पर स्कूल के समय में ऑटो की चेकिंग कर रही है. अब ऑटो वाले बच्चों को स्कूल लेकर नहीं जा रहें हैं तो अभिवाहकों को यह काम करना पड़ रहा है.
पुलिस-प्रशासन की मुहिम एकदम सही है कि ऑटो में ज्यादा बच्चे न बैठाया जाये. लेकिन सवाल यह है कि यदि ऑटो में 8 की जगह पर केवल 3 बच्चों की सवारी तय कर दी जाये तो क्या अभिवाहक ऑटो के बढ़े हुये भाड़े को देने की हालत में है. एक-एक ऑटो में 8-8, 10-10 बच्चों को स्कूल के लिये बैठाया जाता है.
यदि गणना के लिये मान लिया जाये कि एक ऑटो में 8 बच्चे बैठाये जाते हैं तथा प्रत्येक से 800 रुपये लिये जाते हैं तो एक माह में ऑटो वाले को मिलते हैं 6 हजार 400 रुपये. यदि 8 की जगह पर 3 बच्चे बैठाये जाये तो प्रत्येक बच्चे के अभिवाहकों को 2 हजार 133 रुपये औसतन देने पड़ेंगे. क्या आज के महंगाई के दौर में एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिये इसे दे पाना संभव है.
मामला कुछ हद तक मशीनों के आने से बेरोजगारी बढ़ जाने के समान है. जहां पर आप मशीनों का स्वागत करेंगे या बेरोजगारी से निपटेंगे. इसी तरह से सड़क दुर्घटना रोकने के लिये ऑटो में बच्चों को ठूंस-ठूंसकर भरे जाने को रोका जाना चाहिये परन्तु ऑटो में इतने बच्चों को बैठने की इजाज़त दी जानी चाहिये जिससे दुर्घटना न हो.
इस समस्या का समाधान पुलिस-प्रशासन तथा बच्चों के अभिवाहकों को मिल बैठकर निकालना चाहिये.