छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण पर लगी रोक हटी
रायपुर | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में 58 प्रतिशत आरक्षण पर लगी रोक हटा दी है. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पिछले साल सितंबर में राज्य में 58 प्रतिशत आरक्षण के राज्य सरकार के फ़ैसले को रद्द कर दिया था.
इस फ़ैसले के बाद से राज्य में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं थी. यही कारण है कि राज्य में शिक्षा और भर्ती प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित हुई थी.
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में रमन सिंह की सरकार ने 18 जनवरी 2012 को एक अधिसूचना जारी करते हुए आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 में संशोधन करते हुए आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया था.
रमन सिंह की सरकार ने अनुसूचित जनजाति को 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 12 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिया था.
आरक्षण का यह दायरा 58 प्रतिशत था.
पहले से लागू अनुसूचित जाति के 16 फीसदी आरक्षण को घटाकर 12 प्रतिशत किए जाने से काफी नाराजगी थी.
अनुसूचित जनजाति को तब तक 20 फीसदी आरक्षण ही मिलता था, जिसे रमन सिंह की सरकार ने 32 फीसदी किया था.
आरक्षण के इस फैसले के खिलाफ कई संगठनों ने याचिका दायर की थी. जिसे पिछले साल सितंबर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था.
भूपेश सरकार का फैसला भी लंबित
भूपेश बघेल की सरकार ने 15 अगस्त 2019 को आरक्षण के दायरे को 58 फीसदी से 72 फीसदी तक पहुंचा दिया.
भूपेश बघेल सरकार ने अनुसूचित जाति के आरक्षण को 12 फीसदी से बढ़ा कर 13 फीसदी कर दिया.
उन्होंने सर्वाधिक बड़ा बदलाव अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में किया. अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी था, जिसे बढ़ा कर 27 फीसदी कर दिया गया.
लेकिन इस फ़ैसले के लागू होने से पहले ही हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.
फिर आया विधेयक भी अटका
पिछले साल सितंबर में हाईकोर्ट द्वारा 58 फीसदी आरक्षण रद्द किए जाने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने विधानसभा से नया आरक्षण विधेयक पारित किया.
दो दिसंबर 2022 को विधानसभा से पारित आरक्षण से संबंधित विधेयक में आदिवासियों को 32 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्ग को 4 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया है.
लेकिन इस विधेयक पर राज्यपाल ने आज तक हस्ताक्षर ही नहीं किए हैं.