श्रद्वालुओं कि सुरक्षा भगवान भरोसे
रतनपुर | उस्मान कुरैशी: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित महामाया मंदिर में नवरात्रि पर जिला प्रशासन की सारी व्यवस्थाएं सिर्फ वीआईपी के लिए ही है. अगर ये सहीं नही है तो मंदिर परिसर के उद्यान में बेहोश हुई नाबालिग बच्ची और भंडारे में झुलसे दो लोगों को बचाने त्वरित प्राथमिक उपचार जरूर मिलता. इनको दरकिनार कर यहां मौजूद एसडीएम और प्रशासन के दूसरे अफसर कमिशनर सोनमणी वोरा की आवभगत में जुटे रहे. तो अब मानकर चलिए कि यहां हर रोज आ रहे लाखों श्रद्वालुओ कि सुरक्षा भगवान भरोसे ही है.
सोमवार की शाम संभाग के कमिशनर सोनमणी वोरा अपने परिवार के साथ मां महामाया देवी के दर्शन के लिए रतनपुर पहुंचे. यहां उनकी आवभगत के लिए एसडीएम कोटा डा. फरिहा आलम सिद्दीकी अमले के साथ जुटी थी. इस दौरान खबर आई की यहां के भंडारा में काम कर रहे दो कर्मचारी गरम पानी से गंभीर रूप झुलस गए है. प्राथमिक उपचार के लिए मदद मांगने पहुंचे यहां के चिकित्सा केद्र में कोई डाक्टर नहीं मिला. इस दौरान यहां मौजूद एसडीएम कोटा को लोगों ने घटना की खबर दी . पर वे अपने अमले के साथ कमिशनर श्रीवोरा की आवभगत को जरूरी मान मस्त रही. परेशान लोगों ने किसी तरह संजीवनी 108 की सेवा लेकर गंभीर रूप से झुलसे लोगों को उपचार के लिए अस्पताल भेजा.
इसी दौरान मंदिर परिसर के ही गार्डन में मेलापारा रतनपुर निवासी हरदेवलाल जायसवाल की बेटी निकिता अचानक बेहोश होकर गिर पड़ी . वहां मौजूद लोगों ने उसे उठाकर समीप के ज्योति कलश कक्ष के बाहर लिटा दिया. इसके उपचार के लिए भी मौके पर कोई डाक्टर मौजूद नहीं था. यहां मौजूद मीडिया के दखल के बाद आयुर्वेद डाक्टर ने मौके पर पहुंच बेहोश बच्ची को यहीं जमीन पर ही गलुकोज बाटल लगाई इस घटना की जानकारी भी एसडीएम को दी गई. पर उन्होने बेहोश बच्ची को देखना तो दूर उपचार के लिए अस्पताल भिजवाने की जहमत तक नहीं उठाई. बाद में पहुंचे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रभारी डाक्टर विजय चंदेल ने भी उपवास के कारण कमजोरी से बच्ची के बेहोश होने की बात कहके उसे वही उसके हाल पर छोड़ दिया.
उल्लेखनीय है कि नवरात्रि शुरू होने के पहले कलेक्टर सिद्वार्थ कोमल परदेशी ने जिला प्रशासन के अफसरों की बैठक ली थी . इसमें उन्होने मंदिर पहुंचे श्रद्वालुओं को बेहतर सुविधाएं देने के निर्देश दिए थे. तो क्या ये सारे निर्दश और कवायद सिर्फ वीआईपी दर्शनार्थियों के लिए है. मंदिर परिसर में व्याप्त प्रशासनिक अव्यवस्थाएं तो यही कहती है. यहां मौजूद सारा प्रशासनिक अमला सिर्फ अफसरों की आवभगत मे ही जुटे रहते हैं. जिसकी वजह से दूर दूर से हर रोज पहुंच रहे हजारों श्रद्वालुओं सिर्फ तकलीफें ही मिलती है. जरा ये इन लोगों के दर्द को समझे और कम से कम मंदिर परिसर में संवेदनशीलता का परिचय दें.
हां इस मामले में अब तक पुलिस अधीक्षक का रूख जरा काबिले तारीफ है जो श्रद्वा को अपनी निजता का विषय मानते हुए बिलकुल आम आदमी की तरह सायकल से मंदिर पहुंचे . जिसकी भनक यहां तैनात उनके पुलिस अमले तक को नहीं हुई . इसके बाद उन्होने यहां जन भावनाओं के अनुरूप व्याप्त खामियों को दूर करने संवेदनशीलता के साथ त्वरित प्रयास भी किया है. जिला प्रशासन के अफसरों को भी इनसे थोड़ी सीख लेनी ही चाहिए.