विकास यात्रा का कड़वा सच
दिवाकर मुक्तिबोध
डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिहाज से एक बड़ा काम निपटा दिया है. वे विकास रथ पर सवार थे जिसने 3 मई से 7 सितंबर के बीच दो चरणों में लगभग 6000 किलोमीटर की यात्रा की. आंकड़ों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने 109 स्वागत सभाओं और 89 आमसभाओं को संबोधित किया. विकास यात्रा के दौरान जमीनी जरुरतों एवं जनभावनाओं के अनुरुप अनेक फैसले लेने के साथ ही उन्होंने 6700 करोड़ रुपये के 6200 लोकार्पण, भूमिपूजन एवं शिलान्यास कार्यक्रम संपादित किए.
अपने 5 साल के कामकाज का हिसाब देने जनता के बीच पहुंचे मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत हजारों गरीबों को नि:शुल्क साइकिलें, सिलाई मशीनें, सोलर लैंप, साडिय़ां बांटीं तथा धान एवं तेंदूपत्ता के बोनस के रुप में करोड़ों की अनुदान राशि का वितरण भी किया. 6 मई को दंतेवाड़ा में विकास यात्रा का शानदार आगाज हुआ था उतना ही भव्यता से 7 मई को अंबिकापुर में इसका समापन भी हुआ.
भाजपा की राजनीतिक शब्दावली के अनुसार रमन की यात्रा अत्यंत सफल रही. इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रहा घोषणाएं, शिलान्यास, भूमिपूजन एवं विकास कार्यों का लोकार्पण. 6 हजार 700 करोड़ रुपये मायने रखते हैं. चुनावी वर्ष में जनता को लुभाने के लिए यह आंकड़ा किसी करिश्मे से कम नहीं बशर्ते लोग बाल की खाल न निकालें तथा घोषणा व क्रियान्वयन के बीच फर्क न करें.
इसमें दो राय नहीं कि रमन सिंह अपनी तीसरी पारी के लिए जबदस्त मेहनत कर रहे हैं. उनकी स्वच्छ और निर्मल छवि उन्हें बहुत सहारा दे रही है. दरअसल पूरी पार्टी में रमन के अलावा भाजपा में कोई ऐसा शख्स नहीं है जिसका पूरे प्रदेश में जनाधार हो. लिहाजा पार्टी रमन सिंह पर आश्रित है. मुख्यमंत्री इसलिए दबाव में भी है लेकिन वे अच्छे रणनीतिकार भी है. विकास के मुद्दे को उन्होंने अपना सबसे बड़ा हथियार बना रखा है.
विकास यात्राओं के जरिए उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि यदि उन्हें तीसरी पारी मिलती है तो विकास की दृष्टि से अगले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ देश में अव्वल राज्य बनेगा. दरअसल तीन नवगठित राज्यों उत्तराखंड, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ की स्थिति निश्चय ही बेहतर है लेकिन इतनी भी अच्छी नहीं कि आदर्श कहा जाए.
भाजपा के वरिष्ठ नेता तारीफ के पुल इसलिए बांधते रहे है क्योंकि यह उनका नैतिक दायित्व है. वे गुजरात के साथ-साथ छत्तीसगढ़ को भी विकास का मॉडल बताते है. सुषमा स्वराज तो यहां तक कहती है कि छत्तीसगढ़ न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी जनकल्याणकारी नीतियों के लिए एक आदर्श राज्य के रुप में पहचाना जा रहा है.
यकीनन यह पूरा सच नहीं है. राज्य बनने के बाद बीते दशक में छत्तीसगढ़ ने प्रगति की है. विकास के नए आयाम भी गढ़े है लेकिन सवाल है कि क्या राज्य ने वास्तव में इतनी तरक्की की है कि वह आदर्श राज्य का दर्जा पा सकें? क्या सर्वत्र अमन-चैन है? क्या राज्य में गरीब से गरीब आदमी को भी दाना – पानी मिल रहा है? क्या कोई भूखे पेट नहीं है? क्या राज्य से बेरोजगारी खत्म हो गई है तथा प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित, काम मिल रहा है? क्या राज्य में स्वास्थ्य की कोई समस्या नहीं है.
क्या छोटे से छोटे गांवों, देहातों, कस्बों एवं शहरों के स्वास्थ्य केंद्र संसाधनों से लैस है? जिस सार्वजनिक वितरण प्रणाली की केंद्र के मंत्री भी तारीफ करते हैं क्या वाकई इतनी सटीक है कि बस्तर – सरगुजा संभाग के दूर-दराज के आदिवासी क्षेत्रों में उसकी आसान पहुंच है? क्या नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों को राशन लेने मीलों पैदल नहीं चलना पड़ता?
फिर जो प्रदेश नक्सल समस्या से ग्रस्त हो और जहां आदिवासी पुलिस की फर्जी मुठभेड़ों एवं नक्सली कहर से बेमौत मारे जा रहे हो, वह आदर्श राज्य कैसे हो सकता है? जिस राज्य में राजनेताओं एवं नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की अनंत गाथा हो, वह बेशुमार प्रगति का उदाहरण कैसे बन सकता है?
जहां प्रशासनिक भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की दर्जनों फाइलें मुकदमें दर्ज कराने के लिए तरस रही हों और जिन्हें प्रशासनिक स्वीकृति नहीं मिल पा रही हो, वह स्वस्थ और पारदर्शी नौकरशाही की दुहाई कैसे दे सकता है? जो राज्य गुणवत्ताविहीन शिक्षा के बड़े बाजार के रुप में तब्दील हो गया हो, वह देश के चोटी के विकासशील राज्यों में कैसे शामिल हो सकता है? ऐसे और भी बहुत सारे सवाल हैं जो आम आदमी के दिमाग में कौंधते हैं जिनका जवाब उन्हें नहीं मिलता.